लता/80 स्वर उत्सव मे जिक्र हो रहा है अलग-अलग संगीतकारों के साथ लता जी के काम का । आप समझ सकते हैं कि ये कितना दुरूह काम है । लता जी के इतने विराट काम में से हमें चुनना है कुल पंद्रह संगीतकार । कल 'श्रोता बिरादरी' पर आपसे कहा गया था कि आज किसी कम चर्चित संगीतकार का जिक्र होगा । लेकिन शाम होते होते हमारा इरादा बदल गया और हमने संगीतकार रवि के काम का रूख कर लिया ।
संगीतकार रवि दिल्ली के रहने वाले हैं । और डाक तार विभाग में नौकरी करते हुए भी उनके मन में विकलता थी गायक बनने की । मुंबई आना चाहते थे पर कोई उपाय समझ नहीं आ रहा था । रफ़ी साहब जब दिल्ली गए तो किसी तरह जुगत भिड़ाकर उनसे मुलाक़ात की । बताया कि हमें बंबई आना है । फिर लंबा संघर्ष किया । सहायक संगीत निर्देशक रहे, हेमंत कुमार के । मौक़ा आया तो रवि और चंद्रा ने संगीत भी दिया जोड़ी बनाकर । फिर बी आर फिल्म्स की कई फिल्मों में ऐसा संगीत दिया कि रवि का नाम चारों तरफ गूंजने लगा । बस यही दिक्कत रह गयी कि संगीत के कद्रदान अकसर महत्त्वपूर्ण संगीतकारों की फेहरिस्त में उन्हें शामिल करना भूल जाते हैं । लता जी ने रवि के साथ अपने कई बेमिसाल गाने गाए हैं । जैसे 'ऐ जाने वफा ये जुल्म ना कर', 'तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजा' वग़ैरह ।
आज हम आपके लिए एक ऐसा गाना लेकर आए हैं जिसकी बात ही अलग है । क्यों अलग है ये आगे बताएंगे । पहले ये जान लीजिये कि 1960 में आई इस फिल्म के सितारे थे भारतभूषण, बीना राय, प्रदीप कुमार और आशा पारेख । ये रहा इस गाने का वीडियो ।
शकील बदायूंनी ने इस गाने को लिखा है और संगीतकार हैं रवि । रवि अकसर बेहद सरल और सादा लेकिन असरदार धुनों पर काम करते रहे हैं । ये गीत प्रेम में विह्वल नायिका का गीत है । उस ज़माने की नायिकाएं प्यार हो जाने पर इसी तरह सकुचाते हुए और लजाते हुए अपनी खुशी का इज़हार करती थीं । साठ के ज़माने में आए इस गाने में लता जी ने एक अजीब सी मासूमियत का शुमार किया है । ये तो तय है कि जज़्बात की अदायगी के मामले में हर युग की गायिकाओं को लता जी से सीख लेनी चाहिए ।
इस गाने में रवि ने रिदम सेक्शन से गाने को एक खास गति दी है । मुखड़े के बाद मेन्डोलिन की तरंग रखी गयी है । जो अब गानों में बहुत कम सुनाई पड़ती है । पहले अंतरे के बाद जो इंटरल्यूड आता है उसमें बांसुरी की तरंग है । जाहिर है कि रवि मेन्डोलिन को रिपीट नहीं करना चाहते थे । दो मिनिट पचास सेकेन्ड का ये गीत इतना असरदार है कि आपके मन में महीनों अनायास गूंजता रहेगा । यही तो है खासियत लता जी के सुर-संसार की ।
ये रहे इस गाने के बोल---
मोरी छम छम बाजे पायलिया
आज मिले हैं सांवरिया ।।
बड़ी मुद्दत में दिल के सहारे मिले
आज डूबे हुए को किनारे मिले
कभी मुस्कुराए मन, कभी शर्माए मन
कभी नैनों की छलके गागरिया
मोरी छम छम ।।
चांद तारों के गहने पिन्हा दो मुझे
कोई आके दुलहनिया बना दो मुझे
नहीं बस में जिया कैसा जादू किया
पिया आज हुई रे मैं तो बावरिया ।
मोरी छम छम ।।
संगीतकार रवि दिल्ली के रहने वाले हैं । और डाक तार विभाग में नौकरी करते हुए भी उनके मन में विकलता थी गायक बनने की । मुंबई आना चाहते थे पर कोई उपाय समझ नहीं आ रहा था । रफ़ी साहब जब दिल्ली गए तो किसी तरह जुगत भिड़ाकर उनसे मुलाक़ात की । बताया कि हमें बंबई आना है । फिर लंबा संघर्ष किया । सहायक संगीत निर्देशक रहे, हेमंत कुमार के । मौक़ा आया तो रवि और चंद्रा ने संगीत भी दिया जोड़ी बनाकर । फिर बी आर फिल्म्स की कई फिल्मों में ऐसा संगीत दिया कि रवि का नाम चारों तरफ गूंजने लगा । बस यही दिक्कत रह गयी कि संगीत के कद्रदान अकसर महत्त्वपूर्ण संगीतकारों की फेहरिस्त में उन्हें शामिल करना भूल जाते हैं । लता जी ने रवि के साथ अपने कई बेमिसाल गाने गाए हैं । जैसे 'ऐ जाने वफा ये जुल्म ना कर', 'तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजा' वग़ैरह ।
आज हम आपके लिए एक ऐसा गाना लेकर आए हैं जिसकी बात ही अलग है । क्यों अलग है ये आगे बताएंगे । पहले ये जान लीजिये कि 1960 में आई इस फिल्म के सितारे थे भारतभूषण, बीना राय, प्रदीप कुमार और आशा पारेख । ये रहा इस गाने का वीडियो ।
शकील बदायूंनी ने इस गाने को लिखा है और संगीतकार हैं रवि । रवि अकसर बेहद सरल और सादा लेकिन असरदार धुनों पर काम करते रहे हैं । ये गीत प्रेम में विह्वल नायिका का गीत है । उस ज़माने की नायिकाएं प्यार हो जाने पर इसी तरह सकुचाते हुए और लजाते हुए अपनी खुशी का इज़हार करती थीं । साठ के ज़माने में आए इस गाने में लता जी ने एक अजीब सी मासूमियत का शुमार किया है । ये तो तय है कि जज़्बात की अदायगी के मामले में हर युग की गायिकाओं को लता जी से सीख लेनी चाहिए ।
इस गाने में रवि ने रिदम सेक्शन से गाने को एक खास गति दी है । मुखड़े के बाद मेन्डोलिन की तरंग रखी गयी है । जो अब गानों में बहुत कम सुनाई पड़ती है । पहले अंतरे के बाद जो इंटरल्यूड आता है उसमें बांसुरी की तरंग है । जाहिर है कि रवि मेन्डोलिन को रिपीट नहीं करना चाहते थे । दो मिनिट पचास सेकेन्ड का ये गीत इतना असरदार है कि आपके मन में महीनों अनायास गूंजता रहेगा । यही तो है खासियत लता जी के सुर-संसार की ।
ये रहे इस गाने के बोल---
मोरी छम छम बाजे पायलिया
आज मिले हैं सांवरिया ।।
बड़ी मुद्दत में दिल के सहारे मिले
आज डूबे हुए को किनारे मिले
कभी मुस्कुराए मन, कभी शर्माए मन
कभी नैनों की छलके गागरिया
मोरी छम छम ।।
चांद तारों के गहने पिन्हा दो मुझे
कोई आके दुलहनिया बना दो मुझे
नहीं बस में जिया कैसा जादू किया
पिया आज हुई रे मैं तो बावरिया ।
मोरी छम छम ।।
लता/80 स्वर उत्सव की अब तक की कडियों के लिंक
छठी कड़ी--बस रोती जवानी ले के चले संगीतकार सी रामचंद्र
पांचवी कड़ी--दुनिया हमारे प्यार की यूं ही जवां रहे संगीतकार श्याम सुंदर
चौथी कड़ी--ना जिया लागे ना / ना मोनो लागे ना हिंदी और बांगला दोनों संस्करण सलिल
तीसरी कड़ी--खेलो ना मेरे दिल से संगीतकार मदनमोहन
दूसरी कड़ी--पंछी बन में पिया पिया गाने लगा संगीतकार नौशाद
पहली कड़ी--चंदा रे जा जा । संगीतकार खेमचंद प्रकाश
जारी है लता/80 स्वर उत्सव
कल संभवत: अनिल बिस्वास की बारी होगी ।
5 टिप्पणियाँ:
सही कहा आपने रवि साहब को कभी वो मान नही मिला जिसके वो हक़दार थे, फ़िल्म ऑंखें में उनका संगीत लाजावाब था, एक और बेहतरीन प्रस्तुति जारी रहे...
बेहतरीन है यह ...लता जी की आवाज़ के बारे में क्या कहे ..मोह लेती है वह हर रूप में
बहुत बढ़िया प्रस्तुति रही!!
Sham ban gai meri
Sanjaybhai.....
mithi mithi badhai!
awdhesh p singh
indore
Another nice song. Is it from Ghunghat?
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
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