सादी धुन से जादू जगाना किसे कहते हैं जानना हो तो लताजी को सुनिये. सन 1951 की फ़िल्म है मल्हार । संगीतकार हैं रोशन साहब इसी फ़िल्म के दो गीत बड़े अरमानो से रख्खा है बलम तेरी क़सम और कहाँ हो तुम ज़रा आवाज़ दो हम याद करते हैं ख़ासे लोकप्रिय हुए थे. नग़मानिगार थे इंदीवर और क़ैफ़ इरफ़ानी. समीक्षित गीत कैफ़ साहब का लिखा है. व्यावसायिक दृष्टि से मल्हार एक असफल तस्वीर थी लेकिन रोशन साहब का संगीत गाँव-गाँव गली-गली गूँजा था.एक और जानकारी नोट कर लें मल्हार का साउंडट्रेक गायक मुकेश ने तैयार किया था.
मुहब्बत की क़िस्मत बनाने से पहले ...ये गीत चित्रपट संगीत की दुनिया में लोकप्रिय पंजाब स्कूल या पंजाबी तर्ज़ों की रिवायत का निर्वाह था. लेकिन इसके बावजूद रोशन साहब अपना रंग छोड़ने में क़ामयाब रहे हैं.शास्त्रीय और लोक संगीत पर गूढ़ काम करने वाले रोशन साहब रूमानी संगीत रचने वाले अपने समय के संगीत-मनीषी थे. शिवरंजनी,मियाँ मल्हार,यमन,भैरवी जैसे रागों का जिस ख़ूबसूरती से उपयोग रोशन साहब ने किया है वह मन को छू सा जाता है. वाद्यवृंद के मामले में भी रोशन साहब अतिरिक्त सतर्कत बरतते थे.पं.रामनारायण,हरिप्रसाद चौरसिया,ज़रीन दारूवाला,पं.शिवकुमार शर्मा की क़ाबिलियत का इस्तेमाल भी बड़ी ख़ूबी से करते थे संगीतकार रोशन.जहाँ जैसी रिद्म चाहिये बस वहाँ वैसी ही बजी है.न कम ..न ज़्यादा. इस गीत में भी देखिये ताल का कमाल कितना सादा है. अंतरों को भी वैसे ही रचा गया जैसा हमारे लोकगीतों में होता है.बिना किसी अतिरिक्त वर्ज़िश के गा रहीं हैं लता जी. जैसे जीवन का सारा दु:ख इस गीत में आन समाया है और निर्मल मोगरे सा पावन लताजी क स्वर जैसे पूरी शिद्दत से अपने ग़म में शरीक़ कर रहा है.ए
ख्यात स्तंभकार अजातशत्रु बजा फ़रमाते हैं कि लता की आवाज़ का दर्द निर्माता के नोटों,पात्र या सिचुएशन के लिये नहीं,ज़माने को राहत बख़्शने के लिये बना है
.मुखड़े को सुनते वक्त ध्यान दीजियेगा कि क़िस्मत और ज़ुल्म शब्दों को लताजी ने जिस तरह सम्हाला है वह गीत की बहर (मीटर) को सहेजने के लिये कितना ज़रूरी था.करिश्माई श्वास संतुलन और लाजवाब टाइमिंग की खिलाड़ी हैं.(वैसे ही जैसे सचिन तेंडुलकर शोएब अख़्तर की गेंद को को स्लिप से चार रन के लिये बाउंड्री के बाहर कर दिया करते थे...कोई ताक़त नहीं ,बस परफ़ेक्ट टाइमिंग)गीत को सुनते हुए आप भी गुनगुनाना चाहें तो बोल हाज़िर हैं...देखियेगा रोशन की धुन का जादू दो बार सुनने पर धुन याद हो जाती है...
मुहब्बत की क़िस्मत बनाने से पहले
ज़माने के मालिक तू रोया तो होगा
ज़माने के मालिक तू रोया तो होगा
मुहब्बत पर ये ज़ुल्म ढाने से पहले
ज़माने के मालिक तू रोया तो होगा.
ज़माने के मालिक तू रोया तो होगा.
तुझे भी किसी से अगर प्यार होता
हमारी तरह तू भी क़िस्मत को रोता
ये अश्क़ो के मेले लगाने के पहले
ज़माने के मालिक तू रोया तो होगा
मेरे हाल पर ये जो हँसते हैं तारे
ये तारे हैं तेरी हँसी के इशारे
हँसी मेरे ग़म की उड़ाने के पहले
ज़माने के मालिक तू रोया तो होगा
मुहब्बत को तूने दिलों में बसाया
मुहब्बत ने ग़म का ये तूफ़ाँ उठाया
ये तूफ़ान दुनियाँ में लाने से पहले
ज़माने के मालिक तू रोया तो होगा.
हर संगीतकार और गीतकार अपनी ओर से हमेशा सर्वश्रेष्ठ रचते हैं लेकिन आख़िरी कारनामा गायक का होता है और यहीं काम लता मंगेशकर जिस सहजता से कर गुज़रतीं हैं उसके लिये शब्दकोश के शब्द कम पड़ते हैं.यक़ीन न आए तो ये गीत सुन लीजियेगा...हमारी अम्मी,मौसी,अक्का,चेची,जीजी,ख़ाला,बेन,ताई और आपा की जवानी का गीत है यह जो उन्होनें कभी ज़रूर गुनगुनाया होगा...आप भी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ
4 टिप्पणियाँ:
जानकारी पूर्ण लेख के साथ एक सुन्दर गीत सुन्वानें के लिए आभार।
रोशन साब का यह गीत अनसुना था | जानकारी के साथ उत्तम गीतों का यह सिलसिला कभी खत्म न हो |
आभार और धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
हमारी लता दी का गाया
ये गीत बहुत बढिया लगा !
अजातशत्रु जी की
सँगीत समीक्षा हमेशा
बहुत पसँद आतीँ हैँ ..
आभार व बधाई !
- लावण्या
वाह वाह क्या शब्द है और क्या आवाज़, रोशन जी का संगीत उफ़ कमाल, माफ़ कीजिये संजय भाई ये तो मुझे कल ही सुनलेना चाहिए था....खैर देर आए....
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