लता/80 स्वर उत्सव की इस श्रृंखला में आज हम एक अहम पड़ाव पर आ पहुंचे हैं । हमारा ये स्वर उत्सव लता जी के गायन के अलग अलग पहलुओं को समझने और परखने का सिलसिला है । आज इस स्वर उत्सव की तेरहवीं कड़ी में हम जा रहे हैं हिंदी सिने संगीत के पितामह कहे जाने वाले दादा अनिल विश्वास के संगीत ख़ज़ाने की ओर । बारीसाल बंगाल में पैदा हुए दादा अनिल विश्वास की सबसे बड़ी खासियत थी उनका ज्ञान और उनका समर्पण, उन्होंने ऐसा कोई गाना नहीं बनाया जो उनकी मरज़ी के खिलाफ हो ।
अनिल विश्वास की संगीत-यात्रा पर कुबेर दत्त की एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक भी आई है । इस वक्त हमें उसका नाम याद नहीं आ रहा है । अनिल दा ही वो संगीतकार हैं जिन्होंने तलत महमूद को विश्वास दिलाया कि उनकी आवाज़ की लरजिश ही उनकी दौलत है । अनिल दा ही वो संगीतकार हैं जिन्होंने डांट-डपटकर कई प्रतिभाओं को संवारा । और लता मंगेशकर भी उन्हीं प्रतिभाओं में से एक हैं । लता जी बड़े ही सम्मान के साथ अनिल बिस्वास का जिक्र करती हैं । ( इस तस्वीर में लता जी और मीना कपूर हैरत से देख रही हैं और दादा अनिल बिस्वास पकौड़े तल रहे हैं )
आज श्रोता-बिरादरी जिस गीत का जिक्र कर रही है वो फिल्म आराम का है । जो सन 1951 में आई थी । इस गाने को चुनने की एक वजह और है । आज है अभिनेता-निर्माता-निर्देशक देव आनंद का 85 वां जन्मदिन ।
ये गाना देव आनंद और मधुबाला पर फिल्माया गया है । इसे प्रेम धवन ने लिखा है । इस गाने को सुनकर आप सहज ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि लता जी का रियाज़ कितना कड़क है ।
बालमवा नादान
समझाए ना समझे दिल की बतियां
बालमवा नादान ।।
बालमा जा जा जा । अब कौन तुझे समझाए ।
मैं चंदा की चांदनी हूं, मैं तारों की रानी
मेरे मतवाले नैनों से छलके मस्त जवानी
इन नैनों की बलमा तूने कोई क़दर ना जानी
बलमा जा जा जा ।।
एक रात की महफिल है ये झूम ले मस्ताने
देख शमा पर आकर कैसे मरते हैं परवाने
जी के मरना मर के जीना पगले तू क्या जाने
बलमा जा जा जा ।।
अनिल विश्वास की संगीत-यात्रा पर कुबेर दत्त की एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक भी आई है । इस वक्त हमें उसका नाम याद नहीं आ रहा है । अनिल दा ही वो संगीतकार हैं जिन्होंने तलत महमूद को विश्वास दिलाया कि उनकी आवाज़ की लरजिश ही उनकी दौलत है । अनिल दा ही वो संगीतकार हैं जिन्होंने डांट-डपटकर कई प्रतिभाओं को संवारा । और लता मंगेशकर भी उन्हीं प्रतिभाओं में से एक हैं । लता जी बड़े ही सम्मान के साथ अनिल बिस्वास का जिक्र करती हैं । ( इस तस्वीर में लता जी और मीना कपूर हैरत से देख रही हैं और दादा अनिल बिस्वास पकौड़े तल रहे हैं )
आज श्रोता-बिरादरी जिस गीत का जिक्र कर रही है वो फिल्म आराम का है । जो सन 1951 में आई थी । इस गाने को चुनने की एक वजह और है । आज है अभिनेता-निर्माता-निर्देशक देव आनंद का 85 वां जन्मदिन ।
ये गाना देव आनंद और मधुबाला पर फिल्माया गया है । इसे प्रेम धवन ने लिखा है । इस गाने को सुनकर आप सहज ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि लता जी का रियाज़ कितना कड़क है ।
बालमवा नादान
समझाए ना समझे दिल की बतियां
बालमवा नादान ।।
बालमा जा जा जा । अब कौन तुझे समझाए ।
मैं चंदा की चांदनी हूं, मैं तारों की रानी
मेरे मतवाले नैनों से छलके मस्त जवानी
इन नैनों की बलमा तूने कोई क़दर ना जानी
बलमा जा जा जा ।।
एक रात की महफिल है ये झूम ले मस्ताने
देख शमा पर आकर कैसे मरते हैं परवाने
जी के मरना मर के जीना पगले तू क्या जाने
बलमा जा जा जा ।।
4 टिप्पणियाँ:
युनुस भाई
आप ने जो लता जी की ये गीतों भरी श्रृखला शुरू की है वो ब्लॉग जगत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जायेगी...मैंने आप के हर एपिसोड का भरपूर मजा लिया है..आप का चयन और विषय सामग्री कमाल है...कभी खोपोली आए तो आप को फूलों के हार से नवाजुंगा...मेरा वादा है ये.
नीरज
अद्भुत. मस्त कर दिया है ... क्या सुना दिया ... वाह !
अति मधुर और कसा हुआ गीत सुन कर आनंद आ गया |
निरजभाई आपके फूलों के हार में मेरी तरफ़ से भी थोड़े पुष्प ज़रूर लगाइयेगा |
सच बात है - यह ब्लॉग स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
श्री अनिल बिस्वास जी सँगीत निर्देशकोँ के भीष्म पितामह थे ..दीदी ने अद्`भुत गीत गाया है उनके निर्देशन मेँ ..बहुत भाया ..
आप सभी का धन्यवाद !
- स्नेह,
- लावण्या
Post a Comment