सुर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर के जन्मदिन पर श्रोता-बिरादरी ने एक महा-उत्सव शुरू किया है ।
अब से लेकर 28 सितंबर तक आप श्रोता बिरादरी पर रोज़ सुनेंगे लता जी के गीत अलग-अलग संगीतकारों के साथ ।इस श्रृंखला को हमने नाम दिया है--लता/80 स्वर-उत्सव
कल पहली कड़ी में हमने लता जी का वो गाना सुनवाया जिसे खेमचंद-प्रकाश ने स्वरबद्ध किया था ।
आज नौशाद साहब की बारी है ।
लता और नौशाद के इतने सारे अनमोल गाने हैं कि चुनना मुश्किल हो जाता है ।
आप समझ सकते हैं कि हमें कितनी दिक्कत हुई होगी । पहले लगा कि वो गाना चुना जाए--'फिर तेरी कहानी याद आई फिर तेरा फ़साना याद आया' । फिर अचानक ख्याल आया कि लता जी के बहुत ही बेमिसाल गानों में से एक ये गीत चुना जाये--'बेकस पे करम कीजिए सरकार-ए-मदीना' । फिर...फिर...फिर...
जाने दीजिये इतनी लंबी फेहरिस्त है कि आप अश अश करते हुए थक जायेंगे ।
बहरहाल नौशाद ने लता मंगेशकर से संभवत: पहली बार फिल्म 'अंदाज़' में गवाया था । ये 1949 की बात है । लता जी ने इस फिल्म में 'उठाए जा उनके सितम और जिये जा' जैसा गाना गाया था । आज जो गाना सुनवाया जा रहा है वो इसके अगले साल का है ।
फिल्म संसार में शायद ही ऐसी कोई मिसाल मिले । नौशाद ने हर बार नई सरहद, नई चुनौती गढ़ी और लता जी ने हर बार लंबी छलांग लगाई और उस चुनौती को पार कर लिया । कभी शास्त्रीय रचना थी तो कभी एकदम ठेठ ग्रामीण, कभी एकदम वेस्टर्न । ढम ढमा ढम धुन । लता जी ने कितने कितने रंग हैं । ज्यादा तारीफ करें तो आजकल दिक्कत है, लोग कहते हैं कि हम संगीत के क़द्रदान इन दोनों सुरीली बहनों के चारण बन गए हैं । पर सरकार....संगीत के जुनूनी, संगीत के पुजारी बनकर देखिए । जिंदगी की खींचमतान में से जरा सा वक्त निकालिये और अच्छे और सच्चे मन से लता जी के कई गाने सुन लीजिये । फिर सोचिए कि हमारी जिंदगी में ये आवाज नहीं होती तो क्या होता । सारे विवाद और आरोप एक तरफ रख दीजिये । व्यक्तित्व को छोडिये कृतित्व की बात कीजिए ।
चलिए हम थोड़ा बहक गए । फिर से पटरी पर आते हैं ।
सवाल ये है कि हमने ये गाना क्यों चुना ।
कल के गाने से आपको लता जी के शुरूआती दौर की महक आई होगी ।
जब लता जी की आवाज़ में कच्चे नारियल सी मासूमियत थी । मानो चौदह साल की एक किशोरी की मासूम और चंचल आवाज़ हो । बस इसलिए हमने ये गाना चुना है ।
अगर आप इसकी धुन सुनेंगे और बोलों को पढ़ेंगे तो पायेंगे कि कोई कलाबाज़ी नहीं है दोनों में ।
बल्कि एक सादगी है । एक सरलता है । एक मासूमियत है जिसका जिक्र हमने पहले भी किया ।
गाना टिपिकल नौशादी है ।
बांसुरी की तान पर जरूर ध्यान दीजिये । और पंछी की कूहू पर भी ।
गाने का ऐसा रिदम नौशाद के काम में हर जगह सुनाई देता है ।
इस गाने की सबसे बड़ी खासियत है लता जी की आवाज़ । आज अट्ठावन साल भी इस गाने का असर तो देखिए ।
हाय कहां गयी वो मासूमियत ।
आज के किसी गाने में ऐसी 'अदा' मिलेगी आपको । किसी नायिका में ये अदाएं मिलेंगी आपको ।
पंछी बन में पिया पिया गाने लगा ।
सखी हाथों से दिल मेरा जाने लगा ।
सुन पापी की धुन मेरा दिल धड़के है जी
मिले नैना किसी से हुई मैं बावरी
मज़ा जीने का अब मुझे आने लगा
पंछी बन में ।।
गई तन-मन मैं हार लड़ी ऐसी नज़र
दिल दे के रही ना मुझे अपनी खबर
मेरा नन्हा सा जिया बल खाने लगा ।
पंछी बन में ।।
इस गाने को यहां देखिए ।
बताईये इस गाने को सुनकर आपको कैसा लगा ।
कल की कड़ी में बारी होगी एक और संगीतकार की; और स्वर उत्सव
में हमारे मेहमान होंगे मदनमोहन.
जारी है लता/80 स्वर-उत्सव ।
लता/80 स्वर उत्सव की पहली कड़ी-चंदा रे जा रे जा
अब से लेकर 28 सितंबर तक आप श्रोता बिरादरी पर रोज़ सुनेंगे लता जी के गीत अलग-अलग संगीतकारों के साथ ।इस श्रृंखला को हमने नाम दिया है--लता/80 स्वर-उत्सव
कल पहली कड़ी में हमने लता जी का वो गाना सुनवाया जिसे खेमचंद-प्रकाश ने स्वरबद्ध किया था ।
आज नौशाद साहब की बारी है ।
लता और नौशाद के इतने सारे अनमोल गाने हैं कि चुनना मुश्किल हो जाता है ।
आप समझ सकते हैं कि हमें कितनी दिक्कत हुई होगी । पहले लगा कि वो गाना चुना जाए--'फिर तेरी कहानी याद आई फिर तेरा फ़साना याद आया' । फिर अचानक ख्याल आया कि लता जी के बहुत ही बेमिसाल गानों में से एक ये गीत चुना जाये--'बेकस पे करम कीजिए सरकार-ए-मदीना' । फिर...फिर...फिर...
जाने दीजिये इतनी लंबी फेहरिस्त है कि आप अश अश करते हुए थक जायेंगे ।
बहरहाल नौशाद ने लता मंगेशकर से संभवत: पहली बार फिल्म 'अंदाज़' में गवाया था । ये 1949 की बात है । लता जी ने इस फिल्म में 'उठाए जा उनके सितम और जिये जा' जैसा गाना गाया था । आज जो गाना सुनवाया जा रहा है वो इसके अगले साल का है ।
फिल्म संसार में शायद ही ऐसी कोई मिसाल मिले । नौशाद ने हर बार नई सरहद, नई चुनौती गढ़ी और लता जी ने हर बार लंबी छलांग लगाई और उस चुनौती को पार कर लिया । कभी शास्त्रीय रचना थी तो कभी एकदम ठेठ ग्रामीण, कभी एकदम वेस्टर्न । ढम ढमा ढम धुन । लता जी ने कितने कितने रंग हैं । ज्यादा तारीफ करें तो आजकल दिक्कत है, लोग कहते हैं कि हम संगीत के क़द्रदान इन दोनों सुरीली बहनों के चारण बन गए हैं । पर सरकार....संगीत के जुनूनी, संगीत के पुजारी बनकर देखिए । जिंदगी की खींचमतान में से जरा सा वक्त निकालिये और अच्छे और सच्चे मन से लता जी के कई गाने सुन लीजिये । फिर सोचिए कि हमारी जिंदगी में ये आवाज नहीं होती तो क्या होता । सारे विवाद और आरोप एक तरफ रख दीजिये । व्यक्तित्व को छोडिये कृतित्व की बात कीजिए ।
चलिए हम थोड़ा बहक गए । फिर से पटरी पर आते हैं ।
सवाल ये है कि हमने ये गाना क्यों चुना ।
कल के गाने से आपको लता जी के शुरूआती दौर की महक आई होगी ।
जब लता जी की आवाज़ में कच्चे नारियल सी मासूमियत थी । मानो चौदह साल की एक किशोरी की मासूम और चंचल आवाज़ हो । बस इसलिए हमने ये गाना चुना है ।
अगर आप इसकी धुन सुनेंगे और बोलों को पढ़ेंगे तो पायेंगे कि कोई कलाबाज़ी नहीं है दोनों में ।
बल्कि एक सादगी है । एक सरलता है । एक मासूमियत है जिसका जिक्र हमने पहले भी किया ।
गाना टिपिकल नौशादी है ।
बांसुरी की तान पर जरूर ध्यान दीजिये । और पंछी की कूहू पर भी ।
गाने का ऐसा रिदम नौशाद के काम में हर जगह सुनाई देता है ।
इस गाने की सबसे बड़ी खासियत है लता जी की आवाज़ । आज अट्ठावन साल भी इस गाने का असर तो देखिए ।
हाय कहां गयी वो मासूमियत ।
आज के किसी गाने में ऐसी 'अदा' मिलेगी आपको । किसी नायिका में ये अदाएं मिलेंगी आपको ।
पंछी बन में पिया पिया गाने लगा ।
सखी हाथों से दिल मेरा जाने लगा ।
सुन पापी की धुन मेरा दिल धड़के है जी
मिले नैना किसी से हुई मैं बावरी
मज़ा जीने का अब मुझे आने लगा
पंछी बन में ।।
गई तन-मन मैं हार लड़ी ऐसी नज़र
दिल दे के रही ना मुझे अपनी खबर
मेरा नन्हा सा जिया बल खाने लगा ।
पंछी बन में ।।
इस गाने को यहां देखिए ।
बताईये इस गाने को सुनकर आपको कैसा लगा ।
कल की कड़ी में बारी होगी एक और संगीतकार की; और स्वर उत्सव
में हमारे मेहमान होंगे मदनमोहन.
जारी है लता/80 स्वर-उत्सव ।
लता/80 स्वर उत्सव की पहली कड़ी-चंदा रे जा रे जा
3 टिप्पणियाँ:
deadly combination, great song, congrats to the team of shrota biradari, special thanks to yunus bhai
महा उत्सव लता - ८०. अहा....
कच्चे नारीयल की तरह मासूमियत लिये हुए इस आवाज़ का जादू इतने साल गुज़र गये, अभी तक चल रहा है. (१९४९-५०)
संजय भाई का कहीं कहा गया एक कथन याद आया. लोगों ने पूछा आप हमेशा पुराने गीतों की तरफ़ क्यों मेहरबान होतें हैं? तो जवाब मिला-
मेलोडी शाश्वत है. यह कभी पुरानी नही होती, और ना कभी होगी.
इस बात की तसदीक करने के लिये मैने भी कुछ लिखा है अपने ब्लोग पर- मुकेश और आतंकवाद.
पूरी टीम को फ़िर से बधाई !!
बाबुल का यह गीत बेहद मधुर और सुरीला है |
दीदी का स्वर मनभावन है |
नर्गिस जी की अदायें देखकर मन मोहित हो उठता है |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
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