Monday, September 8, 2008
'जश्ने आशा' ---कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझसे' । आशा भोसले की आवाज़ और कलाम मिर्जा गालिब का ।
श्रोता-बिरादरी की इस पेशकश को पढ़ने से पहले ज़रा सोचिए---
1. ये वही स्वर है जिसने 'दम मारो दम' और 'पिया तू अब तो आजा' जैसी मादक गीत गाए हैं ।
2. ये वही स्वर है जिसे घर में लता मंगेशकर जैसे जाज्वल्यमान सूरज का सामना करना पड़ा और अपनी चमक अलग से कायम करनी पड़ी ।
3. ये वही स्वर है जिसने प्रयोग के रास्ते पर क़दम रखे और संघर्षों के बीच अपना एक अलग मुकाम, अपनी एक अलग हस्ती कायम की ।
4. ये वही स्वर है जिसने अपनी आवाज़ से जितने प्रयोग किये उतने किसी और गायिका ने शायद ही किये हों ।
5. ये वही स्वर है जो आज की अठारह उन्नीस साल की गायिकाओं को भी 'कॉन्पलेक्स' में डाल देता है ।
गवा लीजिये हुज़ूर जिस तरह की हो आपकी कम्पोज़िशन. तैयार हैं वह आवाज़ गीत,ग़ज़ल,भजन,नज़्म,नाट्य-गीत या शास्त्रीय संगीत की कोई बंदिश.धुन बनीं नहीं कि आपका काम पूरा हो गया क्योंकि गायिका का नाम है आशा भोंसले.छह दशकों से भारतीय चित्रपट और सुगम संगीत का सबसे अज़ीम स्वर.जहाँ जाकर संगीत या ज़िन्दगी की मोनोटनी या एकरसता ख़त्म होती है वहीं ये मुबारक स्वर आपको खड़ा नज़र आता है. आशा भोंसले देश के सबसे सुरीले और बड़े संगीत कुनबे मंगेशकर का सतरंगी मोरपंख हैं.आज श्रोता बिरादरी पर उनके जन्म दिन पर आइये हम सब मिल कर तसदीक कर दें कि जहाँ जहाँ भी संगीतकार को लगा होगा कुछ ऐसा क्लिष्टतम रचा जाए जो कोई न गा सके तो वहाँ आमद होती है आशा भोंसले की. जब जब भी कोई गीत कार तय करे कि मुझे मेरी कविता या नज़्म में ऐसा कुदरती अहसास चाहिये जो सुनने वाले के मन पर छा जाए तो इंतेख़ाब होता है आशा भोंसले की आवाज़ का.
अपनी तमाम फ़िल्म संगीत व्यस्तताओं के बावजूद आशा जी ने सुगम संगीत या कहें प्रायवेट एलबम्स के लिये हमेशा वक़्त निकाला है. वह मानती भी हैं कि शास्त्रीय संगीत और ग़ज़ल उनके लिये हमेशा ऑक्सीजन का काम करते रहे हैं.श्रोता-बिरादरी ने आज के इस रविवार की पेशकश के ज़रिये एक ग़ैर-फ़िल्मी रचना को चुना है. संगीतकार जयदेव की इस कम्पोज़िशन को आशाजी ने क्या ख़ूब गाया है. चित्रपट गीत में परदे पर होंठ हिला रहे हीरो-हीरोइन भी गीत की क़ामयाबी में सहायक होते हैं लेकिन प्रायवेट गीत में तो अंतत: गायक का हुनर ही बोलता है. यहाँ देखिये किस शिद्दत से आशा भोंसले इस रचना को अपनी लाजवाब आवाज़ का चोला पहनाया है.
शब्द की सफ़ाई पर बरक़रार रहते हुए अंदाज़े बयाँ को स्थापित करना हर एक की बात नहीं लेकिन जहाँ आशा हैं वहाँ संगीत अपने सरलतम स्वरूप में आपसे रूबरू है
आईये अब ज़रा इसी शीरीं आवाज़ में मिरज़ा असदउल्लाह ख़ां ग़ालिब के अशआर सुनें और खुद को खुशनसीब समझें कि हमने उस दौर में जन्म लिया जब ऐसी आवाज़ इस धरती पर गूंज रही थी । ये जयदेव की तर्ज है ।
कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझसे
जफ़ायें करके अपनी याद शर्मा जाये है मुझसे
ख़ुदाया! ज़ज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उलटी है
कि जितना खेंचता हूँ और खिंचता जाये है मुझसे
वो बदख़ू और मेरी दास्ताने-इश्क़ तूलानी
इबारत मुख़्तसर, क़ासिद भी घबरा जाये है मुझसे
उधर वो बदगुमानी है, इधर ये नातवानी है
ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझसे
सँभलने दे मुझे ऐ नाउमीदी, क्या क़यामत है
कि दामाने-ख़याले यार छूटा जाये है मुझसे
तकल्लुफ़ बर तरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही, लेकिन
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझसे
हुए हैं पाँव ही पहले नवर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी
न भागा जाये है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझसे
क़यामत है कि होवे मुद्दई का हमसफ़र "ग़ालिब"
वो काफ़िर, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझसे ।।
हमें अंदाजा है कि कलाम-ऐ-गालिब समझने में आपको खासी दिक्कत आई होगी । पर जान-बूझकर एक खास मकसद से कठिन शब्दों के मायने नहीं दिये जा रहे हैं । ताकि आप कलाम-ए-गालिब खरीदें जो देवनागरी में खूब बिकता है । और गालिब को पढ़ने समझने की कोशिश-कवायद करें ।
शायद हमारी जिंदगी में इस सबकी गुंजाईश अभी बाकी हो ।
Posted by यूनुस खान, संजय पटेल, सागर चन्द नाहर at 9:00 AM
श्रेणी आशा भोसले, कभी नेकी भी उसके, जयदेव, मिर्जा गालिब
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6 टिप्पणियाँ:
एक एक पोस्ट श्रोता बिरादरी की एक लजाब प्रस्तुति है, पूरी टीम को मैं जितनी भी बधाई दूँ कम है, क्या ग़ज़ल सुनाया है आपने जयदेव जी का संगीत और उस पर ये अंदाज़ उफ़ कमाल है भाई, आभार आभार आभार
बहुत रोचक .आशा जी की शख्सियत ही अपनी तरफ़ आकर्षित कर लेती है .शुक्रिया
आशाजी के जन्मदिन पर इतना मधुर तोहफा देने के लिए आप की पुरी मंडली विशेष धन्यवाद की हकदार है | विभिन्न प्रकार के गीतों की गायिका आशाजी एक निराली प्रतिभा है |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा युएसए
आपका साधुवाद हमारे सुनने की क्षमता से ज़्यादा हमें सुनवाने की, ताकि हम सराबोर हो सकें इस सुरों की बारीश से, इसके अलग अंदाज़ से, अलग मिज़ाज़ से..अब तिशनगी कहां?
मायने नही दिये तो कोई बात नही, बात में दम है.हमें भी तो गा़लिब तक पहुंचने के लिये qualify तो करना ही चाहिये. खुदा का शुक्र है की दिवाने गा़लिब, उग्र की उस पर टिप्पणी, और बाकी साज़ो सामां है ही , तो लुत्फ़ और उठायेंगे...
Spelling mistake !!कृपया 'दीवान-ए-गा़लिब 'पढीयेगा. मुआफ़ी चाहूंगा.
आशाजी की आवाज़ में ऐसा जादू है जो मदहोश कर देता है...
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