Tuesday, September 16, 2008

लता/८० :स्वर-उत्सव :तीसरी कड़ी : खेलो ना मेरे दिल से




स्वर-उत्सव की तीसरी कडी पेश है.आज इस महफ़िल संगीतकार मदनमोहन की बंदिश को स्वर देने वाली लता मंगेशकर अपने कोकिल कंठ से जो करिश्मे किए हैं ये गीत उसका बेजोड़ नमूना है.हकीकत फ़िल्म का ये तराना मदनजी के संगीत को अप्रतिम परवाज़ दे रहा है.मदनमोहन और लताजी का साथ शायद परमात्मा का बनाया हुआ है १९६४ में निर्मित इस फ़िल्म के गीत कैफी आज़मी साहब ने लिखे हैं

इस गीत पर लिखें उसके पहले लताजी के बारे में सिर्फ़ इतना कहना चाहेंगे कि आवाज़ को मधुर या मीठी कहने या मानने से ज्यादा लता जी का गायन अपने आप में एक विशिष्ट चरित्र है .उनके स्वर में भारतीय नारी की समग्र वेदना समाई है ये वेदना उदासियों और विरह का एक खामोश जंगल रचती है


मदनजी का ये कम्पोजीशन हमें पिघलाकर पानी कर देने के लिए काफी है मदन जी के संगीत में लताजी दीनानाथजी की यशस्वी बेटी ही नहीं बिरहन मीरा बन गा रही हैं मदनजी की ये धुन कातरता , तनहाई , बेकसी,और दर्द का सोपान है


अब कहाँ सुनाई देता है ऐसा लाजवाब काम ओर्केस्ट्रा का ऐसा संयोजन और स्वर का ऐसा निबाह गुज़रे कल की बात हो गयी ज़माने चले गए सुरीलेपन के और हमारे पास बाकी है बेरहम समय का दंश काश घड़ी के कांटे पीछे घूम सकते


खेलो ना मेरे दिल से ओ मेरे साजना 
मुस्‍कुराते देखते हो तो मुझे 
गम है किसलिए निगाह में 
मंजिल अपनी तुम अलग बसाओगे 
मुझको छोड़ दोगे राह में 
प्‍यार क्‍या दिल्‍लगी प्‍यार क्‍या खेल है 
खेलो ना ।। 
क्‍यों नजर मिलाई थी लगाव से 
हंसके दिल मेरा लिया था क्‍यों 
मुझको आसरा दिया था क्‍यों 
प्‍यार क्‍या दिल्‍लगी प्‍यार क्‍या खेल है 
खेलो ना मेरे दिल से ।। 


लता/80 स्‍वर उत्‍सव की पुरानी कडि़यां 
कल स्वर उत्सव में लता मंगेशकर और सलिल चौधरी का संगसाथ

1 टिप्पणियाँ:

Harshad Jangla said...

हकीकत का यह गीत हकीकत में एक अति खुबसूरत गीत बन पाया है |
मदनजी की मधुर धुन और दीदी का मोहित स्वर दोनों ने मिलके संवेदन शील शब्दोको एक यादगार तोहफा बनाकर हमें दिया है |
धन्यवाद |

-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए

 
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