Friday, September 19, 2008

लता/८०:स्वर उत्सव : छटी कड़ी :बस रोती जवानी ले के चले

लता मंगेशकर के अस्सी वें जन्मोत्सव की बेला का स्वर-उत्सव शबाब पर है और आपसे मिल रहा फ़ीडबैक हमें उत्साहित कर रहा है. शुक्रिया; हमारे साथ बने रहियेगा २८ सितम्बर तक.
आज की इस पेशकश में आमद है एक विलक्षण संगीतकार सी.रामचन्द्र की जिन्होंने चितलकर के नाम से गीत भी गाए हैं और जिन्हें प्रेम से अण्णा भी संबोधित किया जाता रहा है.अनारकली,आशा,अलबेला,आज़ाद और यास्मीन जैसी फ़िल्मों से चर्चा में आए इस फ़ितरती संगीतकार ने अपने मूड और तेवर को हमेशा क़ायम रखा. अनारकली में अमर और मर्मस्पर्शी रचनाएँ देने के बाद जब अलबेला का संगीत रचा गया तो वह पूरे देश में एक जादू सा छा गया. हालाँकि अण्णा ईमानदारी से स्वीकारते थे कि अलबेला की रचनाएँ एक कमर्शियल फ़िल्म की मांग के अनुरूप गढ़ी गईं थी.लेकिन फ़िर भी धीरे से आना री अखियन में और बलमा बड़ा नादान रे में सी.रामचंद्र का ख़ालिस स्टाइल बरक़रार रहा.
बहरहाल आज स्वर उत्सव में बात करेंगे फ़िल्म झांझर(1953) की.प्रमुख भूमिका थी मोतीलाल,कामिनी कौशल,उषा किरण,सज्जन और ओमप्रकाश की. निर्देशन किया था केदार शर्मा ने और गीत लिखे राजेन्द्र कृष्ण ने.इसमें कोई शक नहीं कि गायक और संगीतकार का रिश्ता बेहद रूहानी होता है. अण्णा के लिये गाते वक़्त लताजी की एकाग्रता और तन्मयता बेजोड़ होती रही है. ये बात महज़ आज श्रोता-बिरादरी पर बजने वाले इस गीत नहीं ;सी.रामचन्द्र और लता मंगेशकर की तमाम जुगलबंदियों में प्रतिध्वनित होती आई है.इसमें कोई शक नहीं कि एकाधिक संगीतकारों ने लता मंगेशकर की गायकी को तराशा लेकिन सी.रामचंद्र ने इस महान गायिका के गायन में आत्मा,भावना और जज़बातों के स्पर्श को जगाया. यही कारण है कि एक अदभुत मेलडी इन दो गुणी कलाकारों के मेल से बनी. अण्णा को आप विद्रोही संगीतकार भी कह सकते है. कभी उन्होंने पश्चिम का संगीत रचा तो कहीं बहुत लाजवाब अंदाज़ में भारतीय शास्त्रीय संगीत के का रंग जमाया.
सी.रामचंद्र के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर कहीं कहीं काल के परे गा गईं हैं .इस बात की तसदीक राग खमाज में निबध्द में गीत तुम क्या जानों तुम्हारी याद में हम कितना रोए(शिन शिनाकी बूबला बू ) या राग बागेश्री में जाग दर्दे इश्क़ जाग (अनारकली) और कटते हैं दु:ख में ये दिन पहलू बदल के (परछाईं)अपने आप कर देते है.
सी.रामचंद्र स्फ़ूर्तता के पर्याय थे.झांझर के गीत रचते समय ही उन्हें अनारकली का काम मिला था और समय की मर्यादा में उन्होंने दोनो फ़िल्मों के साथ न्याय किया. ऊंचे पिच लताजी ने जिस बेक़रारी से गाई वह सुननेवाले को अजीब नैराश्य में ले जाती है.
ऐ प्यार तेरी दुनिया से हम बस इतनी निशानी लेके चले,
एक टूटा हुआ दिल साथ रहा ,बस रोती जवानी ले के चले.
मतले में ही लताजी ने सारा दर्द उड़ेल दिया है.किसी संगीतकार ने यदि किसी एक गायक से अत्यधिक एकल गीत गवाए हैं तो वह हैं सी.रामचंद्र और गायिका बिला शक लता मंगेशकर और इन गीतों की संख्या 200 से कम नहीं है. लता-सी.रामचंद्र का संगीत ऐसे सोपान रच गया है जिसका एक छोर तो है लेकिन दूसरा नहीं;कारण महज़ यह कि जहाँ इस जोड़ी की रचना समाप्त होती है वहाँ से किसी दूसरे घराने के संगीत की ओर रूख़ करना बड़ा कठिन प्रतीत होता है.सी.रामचंद्र के संगीत में लताजी ने जो विकलता रची है उसकी पराकाष्ठा है ये ग़ज़ल.पूरा समय जैसे ठाठे मार कर रो पड़ा है. बेकसी,बेक़रारी,तिश्न्गी...चाहे जितने लफ़्ज़ इस्तेमाल कर लें ; कम पड़ेंगे इस ग़ज़ल को सुनने के बाद . मतले सहित बमुश्किल दो शेर हैं लेकिन लगता
जैसे लताजी इन छह मिसरों में पूरी ज़िन्दगी के आँसू बरसा गईं हैं.कौन याद आ रहा है
कोल्हापुर या पण्डित दीनानाथ मंगेशकर ?
ये शेर पढ़ लें और फ़िर सुनें झांझर फ़िल्म की ग़ज़ल.....
बस अब ये हैं बैसाखियाँ अपाहिज शामों की
चंद नग़्माते-माज़ी और यादों के उठे ग़ुबार



कल की कड़ी में होंगे एक कम चर्चित संगीतकार ।
जारी है लता/80 स्‍वर उत्‍सव ।
खुद भी शामिल होईये और दूसरों को भी बताईये ।
हमारे साथ मनाईये लता/ 80 स्‍वर उत्‍सव

4 टिप्पणियाँ:

Sajeev said...

वाह वाह कमाल का गीत मेरा बहुत पसंदीदा, शुक्रिया इसे इस उत्सव में शुमार करने का

Harshad Jangla said...

मधुर गीत और मंजुल स्वर रचना |
दीदी के यादगार गीतों में से एक |
आज शब्दों को न पाके सोच में पड़ गए |
खूब आभार |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दीदी के लम्बे सँगीत सफर का एक नायाब मोती लेकर आये हैँ आज आप लोग - बहुत सुँदर !

- लावण्या

Manish Kumar said...

achcha laga lata ki aawaz mein is ghazal ko sunna . aap logon ka ye prayas shandaar hai

 
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