जैसा कि आप जानते हैं कि 28 सितम्बर को भारत-रत्न लता मंगेशकर अपने जीवन के 80 वर्ष पूर्ण करने जा रहीं हैं।
बहुत पुरानी बात है निर्माता एस मुखर्जी ने फिल्म शहीद 1948 के लिये लता जी को यह कह कर नापसंद कर दिया था कि उनकी आवाज बहुत ज्यादा पतली है। उस समय संगीतकार गुलाम हैदर ने मुखर्जी को चेतावनी दी थी कि देखियेगा एक दिन यह लड़की सबसे आगे निकलेगी, और वाकई एक दिन गुलाम हैदर की भविष्य वाणी सच निकली और लताजी ने अपनी आवाज से सब का मन मोह लिया।
लता जी को अगर सबसे ज्यादा प्रसिद्धी मिली तो वो थी संगीतकार खेमचन्द प्रकाश की संगीतबद्ध फिल्म जिद्दी 1948 के गीत चंदा रे जा रे जारे से। और आगे चल कर इन्हीं खेमचन्द प्रकाशजी ने लता जी से महल1949 फिल्म में गाना गवाया, आयेगा आने वाला... । यह गीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज ७० साल बाद भी अगर कहीं बज रहा हो तो सुनने वाले के कदम ठिठक जाते हैं।1949 में चार फिल्म ऐसी आई जिनसे लता जी सबसे आगे निकल गई और वे फिल्में है बरसात, अन्दाज, दुलारी और महल!
आयेगा लता जी ने अपना पहला गीत भले ही मराठी में सदाशिव राव नार्वेकर और हिंदी में दत्ता दावजेकर के निर्देशन में गाया हो पर प्रसिद्धी तो आयेगा आने वाला से ही मिली। इन्ही खेमचन्द्रजी ने जिद्दी फिल्म में किशोरकुमार को पहला ब्रेक दिया और किशोर दा ने गीत गाया . जीने की दुवाय़ें क्यूं मांगू मरने की तमन्ना कौन करे कौन करे.....
फिलहाल, आपको खेमचंद प्रकाशजी की इस पहली कड़ी में आज श्रोता बिरादरी आपको वही गीत सुनवा रही है जिससे लता, स्वर कोकिला, स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर बनी।
और वह गीत है गीत है चंदा रे जा रे जा रे।
प्रस्तुत गाने में बिरहन नायिका अपने प्रीतम की शिकायत कर रही है और चंदा से कह रही है कि मेरा यह संदेश मेरे प्रियतम को जा कर सुनाओ। हिन्दी फिल्मों में इस थीम पर कई गाने बने हैं इसमें कभी मैना, कभी चंदा तो कभी वर्षा के पहले बादलों के माध्यम से नायिका अपना संदेश भेज रही है। परन्तु इस गाने की तो बात ही निराली है। राग छाया नट में बना यह गीत एक बार सुनने से लताजी के चाहकों का मन नहीं भरता।
गीतकार प्रेम धवन ने इतना बढ़िया गीत लिखा कि उसके बारे में लिख पाना बहुत ही मुश्किल काम है।
पहले पैरा में नायिका कह ( गा) रही है किसके मन में जाय बसे हो हमरे मन में अगन लगाये .. हाय इस मासूमियत पर कौन ना मर जाये! नायिका आगे कहती है हमने तोरी याद में बालम , दीप जलाये दीप बुझाये और
आगे नायिका दूसरे अंतरे में कहती है घड़ियां गिन गिन दिन बीतत हैं अंखियों में कट जाये रैना, तोरी आस लिये बैठे हैं हंसते नैना रोये नैन, यहां हम आपको एक बात बताना दाहेंगे कि दोनों अंतरे की तीसरी पंक्तियों में संगीत अपनी लय से थोड़ा अलग होता है ( पहली बार फिर भी तेरा मन ना पिघला और दूसरी बार अब) हमने तोरी याद में प्रीतम पग पग पे है नैन बिछाये, चंदा रे.. और यह थोडा सा अलग लय से हटना ही इस गीत का सबसे मजबूत पहलू है। यही गीत को ज्यादा प्रभावशाली बनाता है।
दो अंतरों के बीच में संगीतकार ने जल तरंग का बहुत सुंदर उपयोग किया है। वह बहुत ही सुंदर है। उस जमाने के संगीतकारों ने खेमचन्द्र जी से एक बात यह सीखी होगी कि गीत में वाद्ययंत्रों का उपयोग एक सीमा में ही होना चाहिये। आपने ध्यान दिया होगा कि इस गीत में भी वाद्ययंत्र बहुत कम होते हुए भी गीत में सही तरीके से उपयोग होने से गीत इतना सुंदर बन पाया है।
इस गीत में जितना कमाल संगीतकार और गायिका ने किया है उतना ही कमाल गीतकार प्रेम धवन ने किया है। शब्दों को गीत में इतनी खूबसूरती से पिरोना हरेक के बस की बात नहीं।
आइये गीत सुनते हैं
कल की कड़ी में बारी होगी संगीतकार नौशाद की ।
लगातार जारी है लता/80 स्वर-उत्सव
श्रोता-बिरादरी लता जी के इस जन्मोत्सव को अविस्मरणीय बनाने के लिये लाई है, लता/80:स्वर-उत्सव...पन्द्रह नामचीन और रचनाधर्मी संगीतकारों के साथ लताजी की जुगलबंदी। हर दिन एक नया संगीतकार और आवाज़ हमारी जानी पहचानी। ये है इस उत्सव की पहली कड़ी
बहुत पुरानी बात है निर्माता एस मुखर्जी ने फिल्म शहीद 1948 के लिये लता जी को यह कह कर नापसंद कर दिया था कि उनकी आवाज बहुत ज्यादा पतली है। उस समय संगीतकार गुलाम हैदर ने मुखर्जी को चेतावनी दी थी कि देखियेगा एक दिन यह लड़की सबसे आगे निकलेगी, और वाकई एक दिन गुलाम हैदर की भविष्य वाणी सच निकली और लताजी ने अपनी आवाज से सब का मन मोह लिया।
लता जी को अगर सबसे ज्यादा प्रसिद्धी मिली तो वो थी संगीतकार खेमचन्द प्रकाश की संगीतबद्ध फिल्म जिद्दी 1948 के गीत चंदा रे जा रे जारे से। और आगे चल कर इन्हीं खेमचन्द प्रकाशजी ने लता जी से महल1949 फिल्म में गाना गवाया, आयेगा आने वाला... । यह गीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज ७० साल बाद भी अगर कहीं बज रहा हो तो सुनने वाले के कदम ठिठक जाते हैं।1949 में चार फिल्म ऐसी आई जिनसे लता जी सबसे आगे निकल गई और वे फिल्में है बरसात, अन्दाज, दुलारी और महल!
आयेगा लता जी ने अपना पहला गीत भले ही मराठी में सदाशिव राव नार्वेकर और हिंदी में दत्ता दावजेकर के निर्देशन में गाया हो पर प्रसिद्धी तो आयेगा आने वाला से ही मिली। इन्ही खेमचन्द्रजी ने जिद्दी फिल्म में किशोरकुमार को पहला ब्रेक दिया और किशोर दा ने गीत गाया . जीने की दुवाय़ें क्यूं मांगू मरने की तमन्ना कौन करे कौन करे.....
फिलहाल, आपको खेमचंद प्रकाशजी की इस पहली कड़ी में आज श्रोता बिरादरी आपको वही गीत सुनवा रही है जिससे लता, स्वर कोकिला, स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर बनी।
और वह गीत है गीत है चंदा रे जा रे जा रे।
प्रस्तुत गाने में बिरहन नायिका अपने प्रीतम की शिकायत कर रही है और चंदा से कह रही है कि मेरा यह संदेश मेरे प्रियतम को जा कर सुनाओ। हिन्दी फिल्मों में इस थीम पर कई गाने बने हैं इसमें कभी मैना, कभी चंदा तो कभी वर्षा के पहले बादलों के माध्यम से नायिका अपना संदेश भेज रही है। परन्तु इस गाने की तो बात ही निराली है। राग छाया नट में बना यह गीत एक बार सुनने से लताजी के चाहकों का मन नहीं भरता।
गीतकार प्रेम धवन ने इतना बढ़िया गीत लिखा कि उसके बारे में लिख पाना बहुत ही मुश्किल काम है।
पहले पैरा में नायिका कह ( गा) रही है किसके मन में जाय बसे हो हमरे मन में अगन लगाये .. हाय इस मासूमियत पर कौन ना मर जाये! नायिका आगे कहती है हमने तोरी याद में बालम , दीप जलाये दीप बुझाये और
श्रोता-बिरादरी लता जी के इस जन्मोत्सव को अविस्मरणीय बनाने के लिये लाई है, लता/80:स्वर-उत्सव...पन्द्रह नामचीन और रचनाधर्मी संगीतकारों के साथ लताजी की जुगलबंदी। हर दिन एक नया संगीतकार और आवाज़ हमारी जानी पहचानी|
यहाँ शिकायत करते हुए कहती है फिर भी तेरा मन ना पिघला हमने कितने नीर बहाये.. नायिका जब यह पंक्तियां गाती है हमारी आंखों के सामने खेमचन्द्रजी और और लताजी वह प्रभाव पैदा करने में सफल होते हैं। मानो हमारी आंखो के सामने ही नायिका अपने प्रियतम से यह शिकायत कर रही है।
आगे नायिका दूसरे अंतरे में कहती है घड़ियां गिन गिन दिन बीतत हैं अंखियों में कट जाये रैना, तोरी आस लिये बैठे हैं हंसते नैना रोये नैन, यहां हम आपको एक बात बताना दाहेंगे कि दोनों अंतरे की तीसरी पंक्तियों में संगीत अपनी लय से थोड़ा अलग होता है ( पहली बार फिर भी तेरा मन ना पिघला और दूसरी बार अब) हमने तोरी याद में प्रीतम पग पग पे है नैन बिछाये, चंदा रे.. और यह थोडा सा अलग लय से हटना ही इस गीत का सबसे मजबूत पहलू है। यही गीत को ज्यादा प्रभावशाली बनाता है।
दो अंतरों के बीच में संगीतकार ने जल तरंग का बहुत सुंदर उपयोग किया है। वह बहुत ही सुंदर है। उस जमाने के संगीतकारों ने खेमचन्द्र जी से एक बात यह सीखी होगी कि गीत में वाद्ययंत्रों का उपयोग एक सीमा में ही होना चाहिये। आपने ध्यान दिया होगा कि इस गीत में भी वाद्ययंत्र बहुत कम होते हुए भी गीत में सही तरीके से उपयोग होने से गीत इतना सुंदर बन पाया है।
इस गीत में जितना कमाल संगीतकार और गायिका ने किया है उतना ही कमाल गीतकार प्रेम धवन ने किया है। शब्दों को गीत में इतनी खूबसूरती से पिरोना हरेक के बस की बात नहीं।
आइये गीत सुनते हैं
चंदा रे जा रे जा रे
पिया से संदेसा मोरा कहियो ना
मोरा तुम बिन जिया लागे रे पिया
मोहे इक पल चैन ना आए ।।
पिया से संदेसा मोरा कहियो ना
मोरा तुम बिन जिया लागे रे पिया
मोहे इक पल चैन ना आए ।।
किसके मन में जाय बसे हो
हमरे मन में अगन लगा के
हमने तोरी याद में बालम
दीप जलाए दीप बुझाए
फिर भी तेरा मन ना पिघला
हमने कितने नीर बहाए ।।
चंदा रे ।।
हमरे मन में अगन लगा के
हमने तोरी याद में बालम
दीप जलाए दीप बुझाए
फिर भी तेरा मन ना पिघला
हमने कितने नीर बहाए ।।
चंदा रे ।।
घडि़यां गिन गिन दिन बीतत है
अंखियों में कट जाये रैना
तोरी आस लिए बैठै हैं
हंसते नैना रोते नैना
हमने तोरी राह में पीतम
पग पग पे है नैन बिछाए
चंदा रे ।।
अंखियों में कट जाये रैना
तोरी आस लिए बैठै हैं
हंसते नैना रोते नैना
हमने तोरी राह में पीतम
पग पग पे है नैन बिछाए
चंदा रे ।।
कल की कड़ी में बारी होगी संगीतकार नौशाद की ।
लगातार जारी है लता/80 स्वर-उत्सव
5 टिप्पणियाँ:
वाह ! आज दिन भर में न जाने कितनी बार सुना जायेगा ये गीत.
बहुत शुक्रिया. अब तो हर रविवार की सुबह सुरमयी होगी.
क्या आप जिद्दी का ही लता का गाया "जादू कर गए किसी के" सुनवा सकते हैं? आपका उपकार मानेगे.
बहुत खूब,
आपके परिश्रम से हम सभी लताजी के उन सभी गीतों का रसास्वादन कर सकेंगे जो अमूमन कम सुनाई देते है. साथ ही आपकी वाणी की सुमधुरता... वाह.
बरसों बाद , यह गाना पडोसन में एक चतुर नार में प्रयोग किया गया था.
शानदार शुरुवात
यह सुरमयी यात्रा कभी पूर्ण न हो |
दीदी के जन्मदिन पर इससे बहतरीन तोहफा कोई हो ही नहीं सकता |
शुभ शुरुआत करने के लिए सेंकडो शुभ कामनायें |
अंत: करण से धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
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