Sunday, September 28, 2008

जुग जुग जिये दुनिया का सबसे सुरीला स्वर : लता मंगेशकर

28 सितम्बर आ ही गई. कैसा बेहतरीन संयोग है इस बरस की लताजी के जन्मदिन के आसपास ही रमज़ान महीना विदाई की ओर है और नवरात्र महापर्व की धूम शुरू होने वाला है. स्वयं लताजी भी तो सर्वधर्म समभाव की शानदार मिसाल हैं.यदि उन्होंने गाया है मुझे जाना है मैया के द्वार (एलबम:जगराता) तो बेकस पे करम कीजिये सरकारे मदीना (फ़िल्म:मुग़ले आज़म) जैसे भावभीने प्रार्थना गीतों को भी अपनी आवाज़ देकर निहाल किया है.

........तो सबसे पहले हम सब की सबसे सुरीली दीदी को जन्मदिन की ढेर सारी बधाई;टीम श्रोता बिरादरी और उसके ढेरों पाठक/श्रोता मित्रों की ओर से.जुग जुग जियें दुनिया का यह सबसे सुरीला स्वर.
बहरहाल आज समापन की बेला है स्वर उत्सव की. बीते पन्द्रह दिनों में हम तीनों ने लताजी की स्वर-यात्रा को सुना,गुना और लिखा. आपने पसंद किया नवाज़िश आपकी. हाँ हमने अपने तईं इस तरह के पहले अनुष्ठान में काफ़ी कुछ सीखा है और वादा करते हैं कि श्रोता-बिरादरी संगीत के इस सफ़र को और खूबसूरत बनाने की कोशिश करती रहेगी.आपका समर्थन,सहयोग और प्रतिसाद सर-आँखों पर. आइये अब स्वर उत्सव की समापन प्रविष्टि के बारे में बात कर लें.हमारी कोशिश थी कि हम तीनों की पसंद के संगीतकारों की बानगियाँ आप तक पहुँचे.चौदह संगीतकारों को कवर कर लेने के बाद ये ख़याल आया कि मौक़ा भी और दस्तूर भी.यानी समापन क़िस्त भी है और लता दीदी का जन्मदिवस भी सो आज एक से ज़्यादा संगीतकार श्रोता-बिरादरी की बिछात तशरीफ़ लाएं..आयडिया अच्छा है न ? तो हुज़ूर तशरीफ़ ला रहे हैं देश के जाने माने संगीतकार और उनके अप्रतिम गीत.... अपने समय के सबसे समर्थ और रचनाधर्मी संगीतकार. एक से बढ़कर एक. चित्रपट संगीत के आन और शान को बढ़ाने के साथ इन सब ने नयेपन को ईजाद किया.ज़िन्दगी की तमाम ज़िल्लतों से बचने के लिये यदि इंसान सुरों के साये में आता है तो इसकी बड़ी वजह हमारे संगीतकारों के करिश्माई कारनामें हैं.हमें अफ़सोस है कि हम इन मौसीक़ारों के बारे में आज तफ़सील से नही लिख पा रहे हैं इसका मतलब ये न लीजे कि ये हमारे लिये दीगर संगीतकारों से कमतर हैं. बस समय और स्थान की मर्यादा के कारण ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा है.आगे कभी इस कमी को भी पूरा करेंगे या इन संगीतकारों के दूसरे गीत अपनी नियमित रविवारीय पोस्ट में शरीक़ करेंगे.
सचिन देव बर्मन - साजन बिन नीन्द ना आवे- मुनीमजी


 चित्रगु‍प्‍त- छुपाकर मेरी आँखों को: भाभी


 वी डी वर्मन- बदनाम ना हो जाऊं ए आस्मां: चार पैसे
 

पं. हृदयनाथ मंगेशकर- निस दिन बरसत नैन हमारे




 एक बार फ़िर स्वर उत्सव में साथ निभाने के लिये आपके साथी यूनुस ख़ान,सागर नाहर और संजय पटेल आपके प्रति शुक्रिया अदा करते हैं और चलते चलते ख्यात लेखक श्री अजातशत्रु द्वारा रचित और लता मंगेशकर पर एकाग्र 80 अनसुने गीतों के ग्रंथ –बाबा तेरी सोनचिरैया- से संकलित शब्द आप तक पहुँचा रहे हैं.ये संगीत संचयन शीघ्र प्रकाशित होने जा रहा है जिसकी सूचना श्रोता-बिरादरी पर भी दी जाएगा...लता मंगेशकर के बारे में अनूठे शब्द-शिल्पी अजातशत्रुजी क्या कहते हैं.....

लता की आवाज़ में से भाव पैदा होते जाना,जैसे पौधे में से फूल खिलते हैं.बड़ी बात यह है कि लता कभी भी गाती हुई प्रतीत नहीं होती.ऐसा लगता है जैसे गाना उनके भीतर से उठता जाता है,जैसे नर्तकी के भीतर से नृत्य उठता है.गायन में से हवा जैसी सहजता या स्वयं गायन का ख़ुद को गा पड़ना यही लता मंगेशकर है.यह कहना पर्याप्त नहीं कि स्वर की माधुरी लता के गले में है.जी नही,आवाज़ के माधुर्य के साथ गायन में मेलड़ी कहाँ पैदा करना,कैसे करना,यह लता को स्वयं अपनी सूझ से मिलता है.लता गीत को बातचीत की सहजता से गा देती है.लता श्रोताओं की ज़िन्दगी में सुगंध की ऐसी एक किरण है जो हमें ज़िन्दा रखती है.
लता हर जगह पारस ही पारस है.


हमारे साथी यूनुस खान ने पिछले साल लताजी के जन्म दिन पर एक पोस्ट लिखी थी
लता दीदी के जन्मदिन पर उनके कंसर्ट के कुछ वीडियोज़
_______________________________________________________________________________________
चित्र यूनुस खान और लावण्या शाह जी के ब्लॉग से साभार
________________________________________________________________________________________

5 टिप्पणियाँ:

दिलीप कवठेकर said...

आपने सही लिखा है- ज़िन्दगी की तमाम ज़िल्लतों से बचने के लिये यदि इंसान सुरों के साये में आता है,तो इसकी बड़ी वजह हमारे संगीतकारों के करिश्माई कारनामें हैं.इनमें सृजन से जुडे सभी घटकों - गायक ,संगीतकार,और कवि का पूर्ण योगदान होता है. मगर गायक का श्रोता से तो सीधा मूर्त मिलन है .इसके सर्वव्यापिता या Omnipresence का व्यक्तिगत अनुभव मुझ जैसे संगीत प्रेमी को होना बड़ी बात नही, वरन एक आम आदमी को भी है जिसने इन पुराने मेलोडियस गीतों को आज तक प्रश्रय दिया है.

लता के इन सुमधुर गीतों को पसंद नही करने वाला आज तक ढूंढने से नही मिला और ना ही इस समूचे आकाशगंगा में मिलेगा भी.

लता के गीत इतने दिनों तक आपने सुनाये, हम धन्य हुए. कोई शब्द शुक्रिया के लिये कम ही होंगे.यहां यह बात काबिल-ए-इंदिराज़ है कि आप लोगों ने हमें लता को और समझनें मदद की है . हमारे दिल और जज़बात में उनको, उनकी मौसिकी की सुरीली यादों को और भी ज़्यादा बुन दिया है.

उनके ये गीत इतने दिन लगातार कानों में घुल गये है कि उन्हे सुनकर, आनंद विभोर हो, इस सत्यम् ,शिवम्, सुंदरम् के साक्षात Manifestation से हम सभी बाहम हो यही कह उठे हैं-

निस दिन बरसत नैन हमारे.....

दिलीप कवठेकर said...

जब मूसीका़रों की बात चली है, तो यह नमूद करना शायद अच्छा ही होगा कि लता मंगेशकर भी स्वयं एक आला दर्ज़े की संगीतकार थीं.मूसीक़ी के विश्व में उनका योगदान मात्र गायिका के रूप में ही नहीं.

आनंदधन के नाम से मराठी और हिन्दी फ़िल्मों में उन्होनें कई सुरीली स्वर रचनायें दी है.इसके Details देगा कोई ?

नितिन | Nitin Vyas said...

लताजी के जीवन के इतने पहलूओं से साक्षात्कार कराने और अमृत के समान सुमधर गीतो को सुनवाने का शु्क्रिया!!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जुग जुग जियो , मेरी लाडली बड़ी दीदी !

आप सदा स्वस्थ व खुश रहें और मनमोहक गीतों से सृष्टि को संवारतीं रहें .....बहुत बधाई हो !
आपकी बहन लावण्या के चरण स्पर्श !

Please Read the entire article on my BLOG - Post -
http://www.lavanyashah.com/2008/09/blog-post_27.html

Harshad Jangla said...

A great musical journey!

Thanx to the team.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

 
template by : uniQue  |    Template modified by : सागर नाहर   |    Header Image by : संजय पटेल