स्वर उत्सव आज अपने ग्याहरवें पड़ाव पर आ पहुंचा है। आज हम एक ऐसे संगीतकार के गाने के बारे में बताना चाहेंगे जो फिल्मों में अनायास ही संगीतकार बन गये.... यानि वसंत देसाई।
वसंत देसाई के बारे में हम सब जानते हैं कि वे व्ही. शांताराम जी के प्रिय संगीतकार थे। व्ही. शांताराम जी की फिल्में अपनी गुणवत्ता, निर्देशन, नृत्य और कलाकारों के साथ अपने मधुर गानों के लिये भी जानी जाती है। उनकी लगभग सभी फिल्मों में वसंत देसाई ने संगीत दिया।
फिल्म खूनी खंजर में अभिनय भी कर चुके थे और गाने भी गा चुके थे। बाद में वे संगीतकार गोविन्द राव टेम्बे (ताम्बे) के सहायक बने और कई फिल्मों में गोविन्द राव के साथ संगीत दिया। बाद छिपी संगीत प्रतिभा को शांतारामजी ने पहचाना और अपनी फिल्मों में संगीत देने की जिम्मेदारी सौंपी और वसंत देसाई इस काम को बखूबी निभाय़ा और राजकमल की फिल्मों को अमर कर दिया।
दो आँखे बारह हाथ, तीन बत्ती चार रास्ता, डॉ कोटनीस की अमर कहानी, सैरन्ध्री, तूफान और दिया आदि कुल ४५ फिल्मों में संगीत दिया। वसंत देसाई के बारे में ज्यादा जानकारी के लिये यहाँ देखें।
आज हम जिस गीत की बात करने जा रहे हैं वह गीत फिल्म जनक झनक पायल बाजे फिल्म का नैन सो नैन नाही मिलाओ .... है। इस गीत को वसंत देसाई ने राग मालगुंजी में ढ़ाला था। इस फिल्म में लता जी ने कई गीत गाये उनमें से प्रमुख है मेरे ए दिल बता, प्यार तूने किया पाई मैने सज़ा, सैंया जाओ जाओ तोसे नांही बोलूं, जो तुम तोड़ो पिया मैं नाहीं तोड़ूं आदि थे परन्तु हमारा मानना है कि लता जी को प्रसिद्धी के इस मुकाम पर पहुंचाने में जिन गानो का हाथ है वे गाने सिर्फ लताजी ने अकेले नहीं गाये थे। कई ऐसे भी गाने हैं जिनमें लताजी का साथ अन्य गायक,गायिकाओं ने साथ दिया और उन गीतों के साथ लता जी प्रसिद्ध हुई।
चूंकि यह फिल्म ही संगीत/नृत्य के विषय पर बनी है तो इसमें संगीत तो बढ़िया होना ही था साथ ही इस फिल्म का विशेष आकर्षण थे सुप्रसिद्ध नृत्यकार गोपीकृष्ण जिन्होनें एक नायक के रूप में इस फ़िल्म में अभिनय भी किया है।
जैसा की हमने पहले बताया प्रस्तुत गीत राग मालगुंजी में ढ़ला है और इसमें गोपीकृष्ण -संध्या की अप्रतिम नृत्य बानगियाँ भी हैं। आज श्रोता बिरादरी पर सुने जा रहे गीत में लताजी का साथ दिया है हेमंत कुमार ने। अब वसंत देसाई का संगीत, गोपी कृष्ण- संध्या का नृत्य और लताजी-हेमंत दा की शांत-गम्भीर आवाज में यह गीत देखने-सुनने वालों को सम्मोहित कर देता है।
इस गीत को सुनते वक़्त यह ज़रूर ख़याल रखें कि फ़िल्म विधा के व्यावसायिक मापदंण्ड होने के बावजूद शांतारामजी जैसे फ़िल्मकारों ने शास्त्रीय संगीत के शानदार कारनामें अपनी तस्वीरों में इस्तेमाल किये। ये भी ख़याल रहे कि इस गीत को महज़ मेलोडी कह देना नाकाफ़ी होगा,ये सौदंर्य के साथ माधुर्य की जुबलबंदी है जिसमें इस गीत को सादा मनोरंजन से आगे ले जाकर पवित्रता का बाना पहनाया है। इस तरह यह गीत कई युगल गीतों से मीलों आगे चला गया है. कामदेव की भावना को पावनता की हद में शांतारामजी ने क्या कमाल का दृष्य रचा है। कहना चाहेंगे पं.वसंत देसाई (महज़ वसंत देसाई इस गीत के साथ थोड़ा ठीक नहीं लगता) ने इस गीत के ज़रिय आध्यात्मिक की पराकाष्ठा को छुआ है। हाँ ये भी जान लें कि इस गीत को भरत व्यास,शैलेन्द्र या कवि प्रदीप ने नहीं हसरत जयपुरी ने रचा है. नज़ाकत और भाव पक्ष देखिये , क्या कमाल कर गए हैं हसरत साहब।
हेमंतकुमार और लता मंगेशकर इस गीत को गाते हुए एक ख़ास क़िस्म का एस्थेटिक रच गए हैं जिसमें गरिमा है,भावों की तर्जुमानी है और एक संदली पावनता की सृष्टि है। जिन कोमल स्वरों को वसंत देसाई जी ने इस मालगुंजी बंदिश में साधा है लता-हेमत उससे इक्कीसा गा गए हैं.धीर गंभीरता के साथ जब लता गा रही हैं तो लगता है पूर्णिमा की रात को राधा जी रास कर रही हैं। भाव-प्रणवता के साथ आध्यात्मिकता को जगाते ये दो स्वर सुरों की दुनिया के देवता बन गए हैं।
बेसुरी रिवायतों को रचने वालों शुक्र है मनुष्य को जिलाने के लिये लता इस धरती पर आई और गा गई ऐसे चोखे गीत।
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नैन सो नैन नाही मिलाओ
देखत सूरत आवत लाज, सैय्यां
प्यार से प्यार आके सजाओ
मधुर मिलन गावत आज, गुइयां
नैन सो नैन
आऽऽऽऽऽ
खींचो कमान मारो जी बाण
रुत है जवान ओ मेरे प्राण
रुक क्यों गये?
तुमने चोरी कर ली कमान
कैसे मारूं प्रीत का बाण, गुइयां
नैन सो नैन
रिम झिम झिम गाये झरनों की धार
दिल को लुभाये कोयल पुकार
नहीं!
तो फिर?
झरनों की धारों में तेरा संगीत
गाये कोयल तेरा ही गीत, गुइयाँ
नैन सो नैन
नीले गगन पे झूमेंगे आज
बादल का प्यार देखेंगे आज
बादल नय्या है बिजली पतवार
हम-तुम चल दें दुनिया के पार, सैय्यां
नैन सो नैन
चित्र डाउनमेलोडी लेन और गौरव कुमार के जाल स्थल से से साभार
वसंत देसाई के बारे में हम सब जानते हैं कि वे व्ही. शांताराम जी के प्रिय संगीतकार थे। व्ही. शांताराम जी की फिल्में अपनी गुणवत्ता, निर्देशन, नृत्य और कलाकारों के साथ अपने मधुर गानों के लिये भी जानी जाती है। उनकी लगभग सभी फिल्मों में वसंत देसाई ने संगीत दिया।
फिल्म खूनी खंजर में अभिनय भी कर चुके थे और गाने भी गा चुके थे। बाद में वे संगीतकार गोविन्द राव टेम्बे (ताम्बे) के सहायक बने और कई फिल्मों में गोविन्द राव के साथ संगीत दिया। बाद छिपी संगीत प्रतिभा को शांतारामजी ने पहचाना और अपनी फिल्मों में संगीत देने की जिम्मेदारी सौंपी और वसंत देसाई इस काम को बखूबी निभाय़ा और राजकमल की फिल्मों को अमर कर दिया।
दो आँखे बारह हाथ, तीन बत्ती चार रास्ता, डॉ कोटनीस की अमर कहानी, सैरन्ध्री, तूफान और दिया आदि कुल ४५ फिल्मों में संगीत दिया। वसंत देसाई के बारे में ज्यादा जानकारी के लिये यहाँ देखें।
आज हम जिस गीत की बात करने जा रहे हैं वह गीत फिल्म जनक झनक पायल बाजे फिल्म का नैन सो नैन नाही मिलाओ .... है। इस गीत को वसंत देसाई ने राग मालगुंजी में ढ़ाला था। इस फिल्म में लता जी ने कई गीत गाये उनमें से प्रमुख है मेरे ए दिल बता, प्यार तूने किया पाई मैने सज़ा, सैंया जाओ जाओ तोसे नांही बोलूं, जो तुम तोड़ो पिया मैं नाहीं तोड़ूं आदि थे परन्तु हमारा मानना है कि लता जी को प्रसिद्धी के इस मुकाम पर पहुंचाने में जिन गानो का हाथ है वे गाने सिर्फ लताजी ने अकेले नहीं गाये थे। कई ऐसे भी गाने हैं जिनमें लताजी का साथ अन्य गायक,गायिकाओं ने साथ दिया और उन गीतों के साथ लता जी प्रसिद्ध हुई।
चूंकि यह फिल्म ही संगीत/नृत्य के विषय पर बनी है तो इसमें संगीत तो बढ़िया होना ही था साथ ही इस फिल्म का विशेष आकर्षण थे सुप्रसिद्ध नृत्यकार गोपीकृष्ण जिन्होनें एक नायक के रूप में इस फ़िल्म में अभिनय भी किया है।
जैसा की हमने पहले बताया प्रस्तुत गीत राग मालगुंजी में ढ़ला है और इसमें गोपीकृष्ण -संध्या की अप्रतिम नृत्य बानगियाँ भी हैं। आज श्रोता बिरादरी पर सुने जा रहे गीत में लताजी का साथ दिया है हेमंत कुमार ने। अब वसंत देसाई का संगीत, गोपी कृष्ण- संध्या का नृत्य और लताजी-हेमंत दा की शांत-गम्भीर आवाज में यह गीत देखने-सुनने वालों को सम्मोहित कर देता है।
इस गीत को सुनते वक़्त यह ज़रूर ख़याल रखें कि फ़िल्म विधा के व्यावसायिक मापदंण्ड होने के बावजूद शांतारामजी जैसे फ़िल्मकारों ने शास्त्रीय संगीत के शानदार कारनामें अपनी तस्वीरों में इस्तेमाल किये। ये भी ख़याल रहे कि इस गीत को महज़ मेलोडी कह देना नाकाफ़ी होगा,ये सौदंर्य के साथ माधुर्य की जुबलबंदी है जिसमें इस गीत को सादा मनोरंजन से आगे ले जाकर पवित्रता का बाना पहनाया है। इस तरह यह गीत कई युगल गीतों से मीलों आगे चला गया है. कामदेव की भावना को पावनता की हद में शांतारामजी ने क्या कमाल का दृष्य रचा है। कहना चाहेंगे पं.वसंत देसाई (महज़ वसंत देसाई इस गीत के साथ थोड़ा ठीक नहीं लगता) ने इस गीत के ज़रिय आध्यात्मिक की पराकाष्ठा को छुआ है। हाँ ये भी जान लें कि इस गीत को भरत व्यास,शैलेन्द्र या कवि प्रदीप ने नहीं हसरत जयपुरी ने रचा है. नज़ाकत और भाव पक्ष देखिये , क्या कमाल कर गए हैं हसरत साहब।
हेमंतकुमार और लता मंगेशकर इस गीत को गाते हुए एक ख़ास क़िस्म का एस्थेटिक रच गए हैं जिसमें गरिमा है,भावों की तर्जुमानी है और एक संदली पावनता की सृष्टि है। जिन कोमल स्वरों को वसंत देसाई जी ने इस मालगुंजी बंदिश में साधा है लता-हेमत उससे इक्कीसा गा गए हैं.धीर गंभीरता के साथ जब लता गा रही हैं तो लगता है पूर्णिमा की रात को राधा जी रास कर रही हैं। भाव-प्रणवता के साथ आध्यात्मिकता को जगाते ये दो स्वर सुरों की दुनिया के देवता बन गए हैं।
बेसुरी रिवायतों को रचने वालों शुक्र है मनुष्य को जिलाने के लिये लता इस धरती पर आई और गा गई ऐसे चोखे गीत।
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देखत सूरत आवत लाज, सैय्यां
प्यार से प्यार आके सजाओ
मधुर मिलन गावत आज, गुइयां
नैन सो नैन
आऽऽऽऽऽ
खींचो कमान मारो जी बाण
रुत है जवान ओ मेरे प्राण
रुक क्यों गये?
तुमने चोरी कर ली कमान
कैसे मारूं प्रीत का बाण, गुइयां
नैन सो नैन
रिम झिम झिम गाये झरनों की धार
दिल को लुभाये कोयल पुकार
नहीं!
तो फिर?
झरनों की धारों में तेरा संगीत
गाये कोयल तेरा ही गीत, गुइयाँ
नैन सो नैन
नीले गगन पे झूमेंगे आज
बादल का प्यार देखेंगे आज
बादल नय्या है बिजली पतवार
हम-तुम चल दें दुनिया के पार, सैय्यां
नैन सो नैन
राग मालगुंजी पर आधारित अन्य गीत:
घर आजा घिर आये बदरा- छोटे नवाब- आर डी बर्मन
जीवन से भरी तेरी आँखें- सफर
ना, जिया लागे ना
उनको ये शिकायत है- अदालत- मदनमोहन
चित्र डाउनमेलोडी लेन और गौरव कुमार के जाल स्थल से से साभार
5 टिप्पणियाँ:
पंसदीदा गानों में से एक है यह मेरे ..जितना सुंदर यह गाया गया है उतना ही सुंदर इसको फिल्माया भी गया है
सौदंर्य के साथ माधुर्य की जुबलबंदी...
कितना चोख और खालिस जुमला है ये. यह गीत तो फ़िल्म संगीत के इतिहास में बने सर्वश्रेष्ठ युगल गीतों की फ़ेहरिस्त में अग्रिम पंक्ति में रखने लायक है.
हसरत जयपुरी साहब, जिनकी पुण्यतिथी १७ सेप्टेम्बर को थी, ऐसे गीत रच जायेंगे यह हम कल्पना नही कर सकते, क्योंकि उनका झुकाव उर्दु आधारित शब्दों पर ज़्यादा था.(उनपर मेरा आलेख मेरे ब्लॊग पर)
उन दिनों की पावनता , platonic traits, आज कहां दिखेगी? जहां मात्र सूरत देखने से भी नायिका को लाज आती है.इस मधुर मिलन के सदके.
मुझे याद आ रहा है वह वक्तव्य, जिसे आप की टीम के एक सदस्य श्री संजय पटेल नें कहीं किसी कार्यक्रम की एंकरिंग के समय कही थी.कोशिश करूंगा वही पंक्तियां आप तक पहूंचाऊं , जो अपने आप में भी एक साहित्यिक वज़न लिये हुए है.
स्व. व्ही शांतारामजी की फिल्मोंमें वसंत देसाई के अलावा स्व सी. रामचंदजी का भी काफ़ी फिल्मोंमें योगदान रहा है और जल बीन मछली नृत्य बीन बिजली का संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलालजी का था । गीत गाया पथ्थरोंने तथा सेहरा में रामलालजी, बूंद जो बन गये मोतीमें सतीश भाटीया का संगीत था ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001
स्व. व्ही शांतारामजी की फिल्मोंमें वसंत देसाई के अलावा स्व सी. रामचंदजी का भी काफ़ी फिल्मोंमें योगदान रहा है और जल बीन मछली नृत्य बीन बिजली का संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलालजी का था । गीत गाया पथ्थरोंने तथा सेहरा में रामलालजी, बूंद जो बन गये मोतीमें सतीश भाटीया का संगीत था ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001
I totally agree with Dilipbhai-it is an extremely memorable duet of old time.The picturisation of the song was done in Mysore garden and after the release of the movie, the visitors to this beautiful garden increased to manifolds.
Thanks for the wonderful presentation.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
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