पिछले शनिवार को पार्श्व-गायक महेंद्र कपूर ने इस संसार को अलविदा कह दिया । महेंद्र कपूर एक विविध रंगी गायक थे । ये अलग बात है कि उनके करियर के दूसरे हिस्से में उन्हें केवल देशभक्ति गीतों का गायक मान लिया गया था । अगर आप सिने-संगीत के क़द्रदान हैं और ध्यान से संगीत सागर में डुबकी लगाते आए हैं तो आपको भली-भांति पता होगा कि महेंद्र कपूर केवल देशभक्ति गीतों का स्वर नहीं थे । उनके कुछ फुसफसाते बेहद धीमे स्वर वाले गीत बड़े ही अनमोल रहे हैं । आप आये तो ख्याले दिले नाशाद आया, दिल के भूले हुए ज़ख्मों का पता याद आया । जैसा गाना इसी की मिसाल है ।
महेंद्र कपूर ने सन 57 में मुंबई में मेट्रो मरफी प्रतियोगिता में हिस्सा क्या लिया, वो इस प्रतियोगिता के निर्णायकों की नज़र में 'चढ़' गए । प्रतियोगिता में ये पहले से तय था कि विजेता गायक गायिका को निर्णायक अपनी फिल्मों में गायन का मौक़ा देंगे । निर्णायकों के नाम तो देखिए--नौशाद, वसंत देसाई, सी रामचंद्र और रवि । नौशाद ने महेंद्र कपूर से सोहनी महिवाल में गवाया । तो अण्णा यानी सी. रामचंद्र ने गवाया नवरंग में ।
'नवरंग' पेशकश थी राजकमल कला मंदिर की । इस फिल्म का संगीत भी इसकी अनगिनत खासियतों में से एक था । नवरंग का संगीत हमें दिखाता है कि कलात्मकता किसे कहते हैं । गीतों का लालित्य क्या होता है । शुद्ध हिंदी शब्दों से रस-भीनी कविता को जब स्वर दिया जाता है तो उसका प्रभाव कितना दूरगामी और कितना सुरीला होता है । यही कारण है कि आज श्रोता बिरादरी महेंद्र कपूर को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आपके लिए प्रस्तुत कर रही है ये गीत । जिसे भरत व्यास ने लिखा । सी रामचंद्र की धुन और आवाज महेंद्र कपूर की । इसके बोले सुनिए और गायकी पर ध्यान दीजिये ।
खासतौर पर वाद्य संयोजन देखिए । आपको बाकायदा पश्चिमी जैज़ वाद्य सुनाई देंगे ठेठ ग्रामीण वाद्यों के साथ । रविवार की इस सुबह इस गाने को धीरे धीरे अपने भीतर उतरने दीजिये और फिर हमें बताईये आप पर इसका क्या असर हुआ ।
7 टिप्पणियाँ:
वाह जी वाह क्या गीत सुनाया...आनंद आ गया
बहुत सुंदर दोस्तों ..... महेंद्र कपूर के कुछ गीत मैं भी पोस्ट किए थे २८ सितम्बर को ... यहाँ :
http://kisseykahen.blogspot.com/2008/09/blog-post_28.html
जिस में ये गीत भी था. फिर से सुनवाने का शुक्रिया.
अरे साहब कुछ कहने को बचा ही क्या है? जब तीन ग्रेट लोग इस ब्लॉग को चला रहे हैं तो हम सिर्फ़ सुनेंगे, कहेंगे कुछ नहीं… ऐसे ही महान गीत सुनवाते रहिये, आप तीनों की इस अकिंचन पर कृपा होगी :)
२८ जुन कि पहली प्रस्तुति से लेकर आज तक जो प्रतिष्ठा बिरादरी ने अर्जित की है, उसके ही अनुरूप ही यह गीत और आलेख है.साधुवाद..
गीत तो सभी सुनाते है. मगर गीत को, उसके संगीत को यहां हम लाईव्ह अनुभव करते है.
दूसरों का यहां ज़िक्र मात्र प्रसंगवश, कोई कमतर आकलन नही , या आशय नही, क्योकि वे भी तो यही निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं. वे भी उतने सन्माननीय और ग्राह्य है.संगीत प्रेमी जीवों की ये एक बृहद बिरादरी ही तो है. वसुधैव कुटुम्बकम की तर्ज़ पर.
यहां मुश्किल यह है, कि पिछले दिनों लंबे चले लता उत्सव नें आदत बिगाड़ दी, कि अब शनिवार तक रुकना नितांत कठीण होता जा रहा है.मगर हर उत्सव का समापन भी तो विधि नियम है.
बहारें फिर भी आयेंगी..
सुबह सुबह पढ़ सुन कर आनन्द आ गया.
वाह बंधुवर
क्या बात है
बढ़िया पोस्ट
महेन्द्र कपूर अद्वितीय थे
वाह! आनंद आ गया।
महेन्द्रजी को श्रद्धांजली।
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