Saturday, September 24, 2011

उस्ताद अली अकबर ख़ाँ साहब के साथ सुकंठी लता

शास्त्रीय संगीत लताजी को घुट्टी में मिला है. चित्रपट संगीत से फ़ारिग़ होकर लताजी अपना सर्वाधिक समय क्लासिकल म्युज़िक सुनने में लगातीं आईं हैं. वे ख़ुद भिंडी बाज़ार वाले अमानत अली ख़ाँ साहब की शाग़िर्द रहीं हैं. उन्हें बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब का गायन बहुत पसंद है और वे समकालीन शास्त्रीय संगीत पर सतत नज़दीकी नज़र रखतीं हैं.पं.दीनानाथ मंगेशकर ख़ुद एक समर्थ गायक रहे हैं और ये क़िस्सा तो बहुत बार कहा जा चुका है कि एक बार कोल्हापुर में पण्डितजी अपने विद्यार्थेयों को किसी बंदिश का अभ्यास करने का कह कर कुछ देर के लिये बाहर गये थे और जब लौटे तो देखा बमुश्किल ६ -७ बरस की लता राग भीमपलासी गाकर अपने उम्र में बड़े विद्यार्थियों की क्लास ले रहीं हैं. संभवत: यह पहली घटना थी जब पं.दीनानाथ मंगेशकर को अपने घर में छुपे हीरे की जानकारी मिली और वे उसी दिन से अपनी लाड़ली हेमा(लताजी के बचपन का नाम) को तराशने में जुट गये.
“लता की आवाज़ मीठी शमशीर सी हमारा कलेजा चीरती जाती है और आनंद के अतिरेक से हम कराह पड़ते हैं.मन होता है लता को समूची क़ायनात से छिपाकर,डिबिया में बंद करके सितारों में रख दिया जाए.उनका सिरजा सुख कहाँ बरदाश्त होता है.-अजातशत्रु

आज श्रोता-बिरादरी पर मैहर घराने के चश्मे चराग़ उस्ताद अली अकबर ख़ाँ साहब मरहूम के संगीत निर्देशन में निबध्द फ़िल्म आंधियाँ की रचना सुनवा रहे है.आप जानते ही होंगे कि ख़ाँ साहब मैहर के बाबा अल्लाउद्दीन ख़ाँ साहब के सुपुत्र-शिष्य थे और एक विश्व-विख्यात सरोद वादक. फ़िल्म आंधियाँ के बारे में ख़ाँ साहब ने एक रोचक क़िस्सा सुनाया था कि
जब उन्हे चेतन आनंद ने बतौर संगीत निर्देशक अनुबंधित करने मुम्बई बुलाया तो ख़ाँ साहब ने कहा मैं पहले अपने वालिद साहब से इजाज़त लेना चाहूँगा क्योंकि हम क्लासिकल मौसीक़ी वाले लोग हैं और फ़िल्म संगीत के लिये उनका ऐतराज़ हो सकता है. अली अकबर मुम्बई से मैहर आए और फ़िल्म संगीत के बारे में आज्ञा मांगी. बाबा बोले अली अकबर संगीत देने में तो कोई बुराई नहीं लेकिन मैं चाहूँगा कि तुम एक गीत की धुन बना कर मुझे सुनाओ. अगर मुझे लगा कि ये तुम्हारे बलन का काम है तो ठीक वरना तुम इस फ़िल्म का प्रस्ताव ठुकरा देना.ख़ाँ साहब ने वैसा ही किया. पहला गाना तैयार हुआ. उन दिनों कैसेट रेकॉर्डर जैसा कोई इंतज़ाम नहीं था सो बाबा को मुम्बई लाया गया और स्टुडियो में धुन सुनाई गई.बाबा ने धुन पसंद की और इस तरह से आंधियाँ फ़िल्म का संगीत निर्देशन अली अकबर ख़ाँ साहब ने किया.
लताजी के बारे में रोज़ बात हो रही है सो आज चाहेंगे इस सृष्टि के इस पावन स्वर के बारे में आज कुछ विशेष न कहा जाए और सीधे गीत सुना जाए.महसूस करने की बात ये है कि उस्ताद अली अकबर ख़ाँ साहब फ़िल्म माध्यम में काम कर रहे हैं तो चित्रपट संगीत के अनुशासन से बाख़बर हैं और फ़िर भी अपना जुदा अंग परोस पाए हैं.




फिल्म : आँधियाँ
संगीत: उस्ताद अली अकबर खाँ
गीत : पण्दित नरेन्द्र शर्मा


है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ
आती हैं दुनिया में सुख-दुख की सदा यूँ आँधियाँ, आँधियाँ -२
है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ

क्या राज़ है, क्या राज़ है- क्या राज़ है, क्या राज़ है
आज परवाने को भी अपनी लगन पर नाज़ है, नाज़ है
क्यों शमा बेचैन है, ख़ामोश होने के लिये -२
आँसुओं की क्या ज़रूरत -२
दिल को रोने के लिये -२
तेरे दिल का साज़ पगली -२
आज बेआवाज़ है -२
है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ

आऽहै कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ -२
आती हैं दुनिया में सुख-दुख की सदा यूँ आँधियाँ, आँधियाँ

आईं ऐसी आँधियाँ
आईं ऐसी आँधियाँ, आँधियाँ
बुझ गया घर का चिराग़
धुल नहीं सकता कभी जो पड़ गया आँचल में दाग़ -२
थे जहाँ अरमान -थे जहाँ अरमान
उस दिल को मिली बरबादियाँ, बरबादियाँ
है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ -२

ज़िंदगी के सब्ज़ दामन में -२
कभी फूलों के बाग़
ज़िंदगी के सब्ज़ दामन में
ज़िंदगी में सुर्ख़ दामन में कभी काँटों के दाग़ -२
कभी फूलों के बाग़ कभी काँटों के दाग़
फूल-काँटों से भरी हैं ज़िंदगी की वादियाँ

है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ
आती हैं दुनिया में सुख-दुख की सदा यूँ आँधियाँ, आँधियाँ -२
है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ


(अजातशत्रु का वक्तव्य लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय,इन्दौर के प्रकाशन बाबा तेरी सोन चिरैया से साभार)

2 टिप्पणियाँ:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

wonderful post
with a rare and less heard song .
All time Legends are together here.

इन्दु पुरी said...

सुन रही हूँ। पुराने गीतों वाली महक है इसमें जो कान और मन को सुहाती है

 
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