Saturday, July 30, 2011

तेरे बगैर-तेरे बगैर


कुछ बरस पहले मदनमोहन के बेटे संजीव कोहली ने उनके अन-रिलीज्ड गानों को एक सीडी में पिरोकर रिलीज़
किया था। इसे नाम दिया गया 'तेरे बगैर'।


इस सीडी में लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, तलत मेहमूद और किशोर कुमार के गाए अनमोल गीत हैं। सबसे ज़्यादा चौंकाते हैं दो गीत । एक रफ़ी साहब का गाया हुआ शीर्षक गीत "कैसे कटेगी ज़िंदगी तेरे बग़ैर-तेरे बग़ैर (राजा मेहंदी अली ख़ॉं-१९६५)' दूसरा गीत लताजी ने गाया है बोले हैं "खिले कमल सी काया (इंदीवर-१९७२) 'दोनों गायक महान क्यों हैं यदि जानना हो तो इन दो गीतों को सुनिये और अगर यह समझना हो कि कोई संगीतकार किसी गीत की घड़ावन कैसे करता है तब भी इन दोनों गीतों सुनिये। इन गीतों को सुनने के बाद आपको ये भी अंदाज़ा हो जाता है कि मदनमोहन के भीतर महज़ एक संगीतकार नहीं एक कवि और शायर भी हर पल ज़िंदा रहा। यही वजह है कि जब आप इन दोनों गीतों को सुनते हैं तो समझ में आता है कि कविता को सुरीली ख़ुशबू कैसे पहनाई जाती है।



चूँकि हम इन दिनों रफ़ी उत्सव मना रहें हैं सो आज श्रोता बिरादरी में हम रफ़ी साहब को ख़ासतौर पर याद कर रहे हैं 'तेरे बग़ैर' अलबम के शीर्षक गीत के ज़रिए।

song: kaise kategi zindagi tere bagair.
lyrics: raja mehdi ali khan
singer: mohd. rafi
duration: 4 28


कैसे कटेगी जिन्दगी तेरे बगैर-तेरे बगैर
पाऊंगा हर शै में कमी तेरे बगैर-तेरे बगैर
फूल खिले तो यूँ लगा फूल नहीं ये दाग़ हैं
तारे फ़लक पे यूं लगे जैसे बुझे चिराग हैं।
आग लगायें चाँदनी तेरे बगैर- तेरे बगैर
कैसे कटेगी जिन्दगी-तेरे बगैर-तेरे बगैर
चाँद घटा में छुप गया सारा जहाँ उदास है
कहती है दिल की धड़कने तू कहीं आस-पास है।
आ के तड़प रहा है कि जी तेरे बगैर-तेरे बगैर
पाऊंगा हर शै में कमी तेरे बगैर-तेरे बगैर
कैसे कटेगी जिन्दगी तेरे बगैर-तेरे बगैर

Thursday, July 28, 2011

उनके स्वर ने रचा था सुगम संगीत का शास्त्र


रफ़ी साहब को श्रोता-बिरादरी की संगीतमय स्वरांजलि की दूसरी क़िस्त में आज फ़िर लाए हैं एक सुमधुर ग़ैर फ़िल्मी रचना. जब रफ़ी साहब की आवाज़ को सुनते हैं तो लगता है कहीं दूर से आ रहा ये स्वर हमारी आत्मा का सत्व क़ायम रखने आया है. रफ़ी साहब का एक गीत या ग़ज़ल सुन लो जीवन सँवरा हुआ सा लगता है.क्या विलक्षण गायकी है उनकी कि हम उनको सिर्फ़ सुर का आसरा लेकर मुहब्बत करने लगते हैं.

रफ़ी साहब के आरंभिक कालखण्ड को छोड़ दें तो उनका स्वर अंतिम गीत तक जस का तस सुनाई देता है. हाँ धुन या सिचुएशन या अभिनेता के मूड़ को रिफ़्लेक्ट करते हुए वे अपनी आवाज़ को करिश्माई तरीक़े से बदल ज़रूर लेते हैं. ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं में भी वे अदभुत समाँ रचते हैं. कविता या शायरी की पावनता पर क़ायम रहते हुए वे कुछ ऐसा गा गये हैं जो सुगम संगीत की दुनिया के लिये एक शास्त्र सा बन गया है.

रफ़ी साहब तो चले गये लेकिन ..... हमारे दिलों में सुरीले संगीत की एक स्थायी अगरबत्ती जला गये हैं. मुलाहिज़ा फ़रमाएँ ये रचना....



गज़ल: दिल की बात कही नहीं जाती....
शायर: मीर तकी "मीर"
मौसिकी: ताज अहमद खान

रफी साहब का चित्र से साभार

Tuesday, July 26, 2011

श्रोता-बिरादरी पर मोहम्मद रफ़ी का भावपूर्ण स्मरण



३१ जुलाई को हरदिल अज़ीज़ गायक मोहम्मद रफ़ी साहब की बरसी आती है. शायद ही देश का कोई ऐसा भाग हो जहाँ रफ़ी साहब को इस दिन पूरी शिद्दत से याद न किया जाता हो. श्रोता-बिरादरी एक लम्बे अंतराल के बाद आपसे रूबरू है और इसका नेह बहाना बन गये हैं मोहम्मद रफ़ी साहब।

आज से ३१ जुलाई तक प्रतिदिन एक गाना और रफ़ी सा.के जीवन से जुड़ा कोई रोचक तथ्य श्रोता-बिरादरी पर जारी होगा. कोशिश होगी कि इन नग़मों में वे हों जो कम सुने जाते हैं। उम्मीद करते हैं कि एक बार फ़िर श्रोता-बिरादरी अपने सुरीलेपन के साथ आपके मन-आँगन में बनी रहे।

तो आज शुरू करते हैं संगीतकार नौशाद साहब द्वारा सिरजे गये ऐसे शब्दों से महान रफ़ी साहब को समर्पित हैं। जग-ज़ाहिर है कि मो.रफ़ी के करियर को बनाने में नौशाद की धुनों का बहुत बड़ा योगदान है. मुलाहिज़ा फ़रमाएँ:
अल्लाह अल्लाह रफ़ी की आवाज़
रूहे-महमूदो-जान-ए-बज़्मे अयाज़
उसकी हर तान,उसकी हर लय पर
बजने लगते थे ख़ुद दिलो के साज़

महफ़िलों के दामनों में साहिलों के आसपास
यह सदा गूँजेगी सदियों तक दिल के आसपास
मोहम्मद रफ़ी,मोहम्मद रफ़ी,मोहम्मद रफ़ी.



कितनी राहत है दिल टूट जाने के बाद-२
जिंदगी से मिले मौत आने के बाद..
कितनी राहत है....
लज्जते सज़दा-ए-संग-ए-डर क्या कहें
होश ही कब रहा सर झुकाने के बाद
क्या हुआ हर मसर्रत अगर छिन गई
आदमी बन गया ग़म उठाने के बाद
रात का माज़रा फिर से पूछो शमीम
क्या बनी बज़्म पर मेरे आने के बाद
जिंदगी से मिले मौत आने के बाद
शायर: शमीम जयपुरी
संगीत: ताज़ अहमद खान

कल फ़िर मिलते हैं;रफ़ी साहब के एक और लाजवाब गीत के साथ.अल्ला-हाफ़िज़.

चित्र मो. रफ़ी.कॉम से साभार

फ़िर आ गई है श्रोता-बिरादरी

मित्रो;
नमस्कार। सावन के भीगे भीगे मौसम में ये ख़ुशख़बर आपको देते हुए अपार प्रसन्नता है। एक लम्बे समय की ख़ामोशी के बाद आपका सुरीला और मनपसंद ब्लॉग श्रोता-बिरादरी फिर शुरू हो रहा है. अब ये क्यों बंद रहा और एकदम क्यों शुरू हो गया ये ना पूछिये....ज़िन्दगी है..और उसके पीछे हज़ार ज़िल्लतें,विवशताएं और अड़चनें।


बहरहाल ! श्रोता-बिरादरी फिर मुख़ातिब हो रही है. और एक नेक बहाना बनी है मोहम्मद रफ़ी साहब की याद। जुलाई का महीना और इसकी ३१ तारीख़ हम सबको इस सर्वकालिक महान गायक की रूहानी स्मृतियों की सैर करवाती है। सोचा रफ़ी साहब को याद करते हुए ही श्रोता-बिरादरी की जाजम बिछा दी जाए। रफ़ी साहब का चित्रपट संगीत इतना सुदीर्घ और विस्तृत है कि उसमें क्या चुना जाए....और क्या नहीं, दुनिया का सबसे मश्किल काम है।

सो श्रोता-बिरादरी की स्वरांजली कुछ अलग ही है और इसमें फ़िल्मी गीतों से अलहदा कुछा ग़ैर फ़िल्मी गीतों का शुमार किया गया है. हो सकता है इस बहाने कई नये श्रोता मो. रफ़ी के इस फ़न से रूबरू हों। तो साथ बने रहियेगा..

श्रोता बिरादरी आपकी मुहब्बत की मुंतज़िर है।


यूनुस ख़ान, सागर नाहर, संजय पटेल

 
template by : uniQue  |    Template modified by : सागर नाहर   |    Header Image by : संजय पटेल