लताजी की संगीतयात्रा के गलियारे में जितना पीछे जाओ,मेलोड़ी पसरी पड़ी मिलेगी. श्रोता-बिरादरी के इस मजमें में कोशिश है कि प्रतिदिन एक नये गीत और संगीतकार से
आपको रूबरू करवाया जाए. एक घराने में रह कर, तालीम हासिल कर और परम्परा का अनुसरण कर तो कई कलाकारों ने सुयश पाया है लेकिन लताजी अलग-अलग तबियत,तासीर और तेवर वाले गुणी संगीतकारों को सुन कर हर बार करिश्मा कर जातीं हैं. अजातशत्रुजी एक जगह लिखते हैं कि लताजी भीतर से एकदम विरक्त हैं. स्वभाववश भी और बचपन से भुगत चुके तल्ख़ अनुभवों के कारण. असल में लता सिर्फ़ स्वयं से बात करतीं हैं या भगवान से. अजातशत्रुजी की बात की पुष्टि प्रस्तुत गीत से हो जाती है. मुखड़े में ही लताजी परमपिता से शिकायत भरे लहजे या पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुए जब गीतकार आई.सी.कपूर की पंक्तियों को स्वर देतीं हैं तो लगता है सारे जहान का दर्द इस आवाज़ में सिमट आया है. तमाम बेबसी,दु:ख की तीव्रता और अपने कष्ट में शिकायतों का बयान क्या ख़ूबसूरती कर गईं है हमारे समय की यह स्वर-किन्नरी.
लता स्वर उत्सव के बहाने हम संगीत के सुनहरे दौर की जुगाली कर रहे हैं. इन तमाम गीतकारों,संगीतकारों और लता मंगेशकर के प्रति हमारी सच्ची आदरांजली यही है कि किसी तरह से हम इस अमानत को नये ज़माने के श्रोताओं तक ले जाने का प्रयास करें. इंटरनेट के उदभव के बाद ये थोड़ा आसान हुआ है. सुनकार मित्रों से गुज़ारिश है कि अपने तईं आप भी श्रोता-बिरादरी के इस उत्सव को प्रचारित करें.अपने ट्विटर अकाउंट या फ़ेसबुक दीवार पर इस संगीत समागम का ज़िक्र करें.क्योंकि जब तक यह ख़ज़ाना युवा पीढ़ी तक नहीं पहुँचेगा तब तक इन कोशिशों का अंतिम मकसद पूरा न होगा.
फ़िल्म:माँ का प्यार
वर्ष: १९४९
गीतकार:आई.सी.कपूर
संगीतकार:गोविंदराम
(अजातशत्रुजी का वक्तव्य लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय प्रकाशित ग्रंथ बाबा तेरी सोन चिरैया से साभार)
लता स्वर उत्सव 2011
पहला गीत: वो चाँदनी, वो चाँद वो सितरे बदल गए
दूसरा गीत: रात जा रही है नींद आ रही है
आपको रूबरू करवाया जाए. एक घराने में रह कर, तालीम हासिल कर और परम्परा का अनुसरण कर तो कई कलाकारों ने सुयश पाया है लेकिन लताजी अलग-अलग तबियत,तासीर और तेवर वाले गुणी संगीतकारों को सुन कर हर बार करिश्मा कर जातीं हैं. अजातशत्रुजी एक जगह लिखते हैं कि लताजी भीतर से एकदम विरक्त हैं. स्वभाववश भी और बचपन से भुगत चुके तल्ख़ अनुभवों के कारण. असल में लता सिर्फ़ स्वयं से बात करतीं हैं या भगवान से. अजातशत्रुजी की बात की पुष्टि प्रस्तुत गीत से हो जाती है. मुखड़े में ही लताजी परमपिता से शिकायत भरे लहजे या पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुए जब गीतकार आई.सी.कपूर की पंक्तियों को स्वर देतीं हैं तो लगता है सारे जहान का दर्द इस आवाज़ में सिमट आया है. तमाम बेबसी,दु:ख की तीव्रता और अपने कष्ट में शिकायतों का बयान क्या ख़ूबसूरती कर गईं है हमारे समय की यह स्वर-किन्नरी.
“सच तो यह है कि इस ज़माने में जब चारों तरफ़ नाउम्मीदी,उदासी और तन्हारी पसरी हुई है और ख़ुशी –चहक की लौ धुँधलाती जा रही है,भले और कोमल गीत दिल को राहत और सुक़ून दे जाते हैं.अतीत के सिनेमा का हम पर यह बड़ा अहसान है”-अजातशत्रु
पंकज राग के सुरीले ग्रंथ (प्रकाशक:राजकमल) में लिखा है कि आज पूर्णत: विस्मृत गोविंदराम एक ज़माने में इतने महत्वपूर्ण संगीतकार थे कि जब के.आसिफ़ ने ’मुग़ल-ए-आज़म’फ़िल्म की योजना बनाई थी तो संगीतकार के रूप में गोविंदराम को ही चुना था. जब के.आसिफ़ साहब ने अपनी तस्वीर का निर्माण शुरू की तब तक गोविंदरामजी इस दुनिया से कूच कर चुके थे. संगीतकार सी.रामचंद्र के काम में सज्जाद साहब के बाद सबसे ज़्यादा गोविंदराम ही प्रतिध्वनित हुए हैं.इस गुमनाम संगीतकार ने १९३७ में फ़िल्म जीवन ज्योति से अपने कैरियर की शुरूआत की. उनकी आख़िरी फ़िल्म थी मधुबाला-शम्मी कपूर अभिनीत नक़ाब (१९५५) जिसमें लताजी के कई सुरीले गीत हैं.लता स्वर उत्सव के बहाने हम संगीत के सुनहरे दौर की जुगाली कर रहे हैं. इन तमाम गीतकारों,संगीतकारों और लता मंगेशकर के प्रति हमारी सच्ची आदरांजली यही है कि किसी तरह से हम इस अमानत को नये ज़माने के श्रोताओं तक ले जाने का प्रयास करें. इंटरनेट के उदभव के बाद ये थोड़ा आसान हुआ है. सुनकार मित्रों से गुज़ारिश है कि अपने तईं आप भी श्रोता-बिरादरी के इस उत्सव को प्रचारित करें.अपने ट्विटर अकाउंट या फ़ेसबुक दीवार पर इस संगीत समागम का ज़िक्र करें.क्योंकि जब तक यह ख़ज़ाना युवा पीढ़ी तक नहीं पहुँचेगा तब तक इन कोशिशों का अंतिम मकसद पूरा न होगा.
फ़िल्म:माँ का प्यार
वर्ष: १९४९
गीतकार:आई.सी.कपूर
संगीतकार:गोविंदराम
(अजातशत्रुजी का वक्तव्य लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय प्रकाशित ग्रंथ बाबा तेरी सोन चिरैया से साभार)
लता स्वर उत्सव 2011
पहला गीत: वो चाँदनी, वो चाँद वो सितरे बदल गए
दूसरा गीत: रात जा रही है नींद आ रही है


8 टिप्पणियाँ:
कैसे सुनु इस ब्लॉग पर दिए इन खूबसूरत गानों को ?दिए गए 'प्लग इन' को डाऊनलोड करने के बाद भी मैं नही सुन पा रही हूँ.प्लीज़ मुझे सीखिए जिससे मैं इन अनमोल गीतों का मजा ले सकूँ
गोविन्दराम जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद!
Yunus Ji,
Aap jo anmol khazana share karte hai uske liye bahut bahut dhynawaad.
"तूने जहाँ बनाकर
एहसान क्या किया है..."
फिल्म:माँ का प्यार - का यह गाना बेहद सुरिला, अविस्मरणीय... लता जी की युगान्तरकारी आवाज़ जो हमें लतामय बना दे. गुनी संगीतकार श्री गोविंद रामजी के बारे में श्री पंकज राग जी ने जो कहा करीब-करीब पूरा सच कहा. फिल्म:माँ का प्यार का लता जी का यह गाना सुनते-सुनते सी.रामचन्द्र की धुनें याद हो आई और सज्जाद साहब भी(वो तो चले गए ए दिल, याद से उनकी प्यार कर).
लता जी को सालों से देखते-परखते सुनते चले आ रहे हैं ...और श्री आजातशत्रु जी ने लता जी
के बारे में जो कहा 'स्वयं-स्फूर्त' कहा कि 'लता जी भीतर से विरक्त है. स्वभाववश भी और बचपन से भुगत चुके तल्ख अनुभवों के कारण भी..."
बेहतरीन पोस्ट यूनुस जी. पहले गुलज़ार जी, फिर शुभ्रा शर्मा जी और अब के "लता स्वर उत्सव".
यूनुस जी का काम कलास्सिक... विशिष्ट... दस्तावेज़ी रेकोर्ड-सा ...
"तूने जहाँ बनाकर
एहसान क्या किया है..."
फिल्म:माँ का प्यार - का यह गाना बेहद सुरिला, अविस्मरणीय... लता जी की युगान्तरकारी आवाज़ जो हमें लतामय बना दे. गुनी संगीतकार श्री गोविंद रामजी के बारे में श्री पंकज राग जी ने जो कहा करीब-करीब पूरा सच कहा. फिल्म:माँ का प्यार का लता जी का यह गाना सुनते-सुनते सी.रामचन्द्र की धुनें याद हो आई और सज्जाद साहब भी(वो तो चले गए ए दिल, याद से उनकी प्यार कर).
लता जी को सालों से देखते-परखते सुनते चले आ रहे हैं ...और श्री आजातशत्रु जी ने लता जी
के बारे में जो कहा 'स्वयं-स्फूर्त' कहा कि 'लता जी भीतर से विरक्त है. स्वभाववश भी और बचपन से भुगत चुके तल्ख अनुभवों के कारण भी..."
बेहतरीन पोस्ट यूनुस जी. पहले गुलज़ार जी, फिर शुभ्रा शर्मा जी और अब के "लता स्वर उत्सव".
यूनुस जी का काम कलास्सिक... विशिष्ट... दस्तावेज़ी रेकोर्ड-सा ...
sorry, aadatan do baar click karne se double comments lag gae.
पहली बार सुना यह गीत...
आभार इस नायाब गीत से परिचय करने हेतु ...
लाजवाब प्रस्तुति !
बहुत खूब...
नूरजहाँ प्रभावित दौर की
दानेदार मुरकियओं का आनंद आ गया...
अजातशत्रुजी की टिप्पणी लाजवाब है।
शुक्रिया भाई...
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