Wednesday, September 14, 2011

मीठी लोरी : रात जा रही है नींद आ रही है

लता स्वर उत्सव के दूसरे दिन और और हिन्दी दिवस प्रसंग पर प्रस्तुत गीत पं.नरेन्द्र शर्मा का जैसे महान हिन्दी सेवी के प्रति श्रोता-बिरादरी की भावपूर्ण आदरांजली है. चित्रपट गीतों में हिन्दी गीतिधारा और विविध भारती जैसे लोकप्रिय संस्थान की स्थापना में पण्डितजी का अवदान अविस्मरणीय है. स्वयं लताजी पण्डितजी को पापाजी जैसा आदर संबोधन देतीं थीं और हिन्दी गीतों के बोलों की अदायगी और उच्चारण के लिये हमेशा मशवरा किया करतीं थीं. इस गीत में लताजी के गायन पर मराठी नाट्य संगीत और नूरजहाँ प्रभाव स्पष्ट सुनाई देता है. रात जा रही है के “है” को जिस खरज से लताजी गा रही हैं वह नूरजहाँ युग की मीठी याद ही तो है. अंतरें में झर रहीं और आदोंलित करने वाली मुरकियाँ मराठी नाट्य संगीत में सदैव सुनाई देती हैं.
“कुदरत ने लता की टेर फ़िल्मों और निर्माताओं के नोटों या पात्र या सिचुएशन के लिये नहीं बनाई. वह ज़माने को राहत बख़्शने के लिये भेजा गया पावन स्वर है”
-अजातशत्रु
मूलत: यह एक लोरी गीत है .इंसानी रिश्तों और भक्ति भाव के गीतों को तो लताजी कुछ अधिक समर्पित भाव से गातीं रहीं हैं.सुनने में लताजी का हरएक गीत आसान सुनाई देता है लेकिन कभी आप उसे आज़मा कर देखें तो महसूस करेंगे कि जो गीत लताजी ने जितनी सरलता से गाया है उसे दोहराना उतना ही कठिन है. लताजी के ऐसे गीतों की महास्वामिनी हैं. इस गीत में पं.नरेन्द्र शर्मा के प्रति भी श्रध्दा से मन जाता है. वे एक समर्थ कवि होते हुए भी चित्रपट गीत माध्यम को कितनी विशेषज्ञता से निभाते हैं.

संगीतकार वसंत देसाई के किसी भी गीत को सुनना यानी शास्त्रीय संगीत के अलौकिक आरोह-अवरोह का आचमन करना है लेकिन वे लोकरूचि को समझने वाले भी बेजोड़ निर्देशक थे. प्रार्थना और राष्ट्र-भक्ति को अभिव्यक्त करने वाले गीतों में वे महाराष्ट्र के लोक संगीत का बखूबी इस्तेमाल करते थे.तीन मिनट की संगीत विधा में जो मधुरता वसंत देसाई ने जगाई है वह हम सुनकारों की अनमोल धरोहर है. संयोग है कि लता स्वर उत्सव के प्रथम एवं द्वितीय दोनों गीतों में गिटार सुनाई दी है.
तो आनंद लीजिये आधी सदी से ज़्यादा लता मंगेशकर;प.नरेन्द्र शर्मा और पं.वसंत देसाई(देसाईजी के नाम के आगे पण्डित लगाना बनता है) की इस इस तिकड़ी से सिरजे गये गीत का.हाँ नेक मशवरा है कि इस गीत को रात्रि बेला में सुने और कुछ देर के लिये भूल जाएँ कि फ़िलहाल कौन सा साल चल रहा है.



फ़िल्म : उध्दार
गीतकार:पं.नरेन्द्र शर्मा
संगीतकार:पं.वसंत देसाई
वर्ष:१९४९


(एक दुर्लभ चित्र स्मृति : महाराष्ट्र दिवस की प्रस्तुति में साफ़ा बांधे हुए संगीतकार वसंत देसाई और माइक्रोफ़ोन पर लता मंगेशकर.यह चित्र एवं श्री अजातशत्रु की टिप्पणी लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय प्रकाशित पुस्तक “बाबा तेरी सोन चिरैया” से साभार)

3 टिप्पणियाँ:

mukti said...

मैं इस बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ "जो गीत लताजी ने जितनी सरलता से गाया है उसे दोहराना उतना ही कठिन है. लताजी के ऐसे गीतों की महास्वामिनी हैं." ये अनमोल गीत सुनवाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया!

Archana Chaoji said...

शुक्रिया...

shabdnidhi said...

"तू स्वर की देवी ये संगीत तुझसे,हर शब्द तेरा हर गीत तुझसे"लताजी के लिए माँ सरस्वती की वन्दना की पंक्ति अर्पित है लताजी के जन्म उत्सव पर यह प्रयास अनुकरणीय है अजात्शत्रुजी ने सही कहा है कि ज़माने को राहत देने के लिए लताजी को टेर दी गई है

 
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