हमारे चित्रपट संगीत में कुछ ऐसी बेजोड़ बंदिशें रचीं गईं हैं कि कहीं कहीं वे संवाद और दृश्य से ज़्यादा महत्वपूर्ण काम कर गुज़रती है . फ़िल्म देवदास तीन बार बनी है.सबसे पहले इसके नायक के.एल.सहगल रहे, निर्देशन किया प्रमथेश चंद्र बरूआ ने । ,दूसरी बार नायक रहे दिलीपकुमार और निर्देशन किया पहली बार की देवदास में कैमेरामैन रहे बिमल रॉय ने । तीसरी बार इस दशक के मेगा-स्टार शाहरूख़ ख़ान नायक रहे और निर्देशन किया संजय लीली भंसाली ने । एक संयोग देखिये तीनों संस्करणों के संगीत ने लोकप्रियता के झंडे गाड़े. आज श्रोता-बिरादरी पर समीक्षित गीत महज़ एक अंतरे भर का गीत है लेकिन नग़मानिगार साहिर लुधियानवी,संगीतकार सचिनदेव बर्मन और गायक तलत महमूद द्वारा किये गये इस सांगीतिक कारनामे एक विचित्र क़िस्म की वेदना है .यहाँ ग़ौर करने लायक बात ये है कि देवदास की पीड़ा को आवाज़ देते हुए तलत साहब दर्द के शहज़ादे बन गए हैं.उनकी आवाज़ का क़ुदरती कंपन यहा क्या कहर ढा रहा है ज़रा ग़ौर करियेगा. तलत साहब द्वार उड़ेले गये दर्द को सुनते हुए महाकवि ग़ालिब का ये शेर भी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ.......
नीम बख़्शीश अज़ाब है यारब
दिल दिया है तो उसमें दर्द भी दे
माना ये जाता है कि बिमल रॉय की बनाई देवदास अपने संगीत और अपने प्रभव की दृष्टि से बेहद प्रभावी थी । और आज भी उसका असर कम नहीं हुआ है । बिमल रॉय ने अपनी 'देवदास' के लिए बड़ी नामी हस्तियां जुटाई थीं । क्या आपको पता है कि इस फिल्म की पटकथा और संवाद जाने माने कहानीकार राजिंदर सिंग बेदी ने लिखे थे । छायांकन कमल बोस का था । दिलीप कुमार, सुचित्रा सेन, वैजयंती माला और मोतीलाल जैसे कलाकारों ने देवदास को कालजई बना दिया । अब इस गाने को सुनते हुए ये भी सोचिए कि आप आज से तकरीबन तिरेपन साल पहले आई थी ।
तलत साहब ने कितना कम गाया है संख्या की दृष्टि से , लेकिन कितना बेजोड़ गाया है. जनश्रुति है कि इस गीत की सिचुएशन में सचिन दा ने तलत साहब को स्टुडियो में ज़मीन पर लिटा कर ही ये पंक्तियाँ रेकॉर्ड कीं थीं . दिलीपकुमार नशे में धुत सड़क पर पड़े गा रहे हैं सो वह इफ़ेक्ट लेटे लेटे गाने का सचिन दा द्वारा वैसे ही क्रिएट करवाया गया है. साज़ बहुत कम हैं ; महज़ सारंगी है जो तलत साहब की वेदना को विराट कर रही है और गीत अंत होते होते एक टुकड़ा भर सितार बजी है.रिद्म है ही नहीं और हौले हौले से फ़ैलता इस गीत या कहें कविता का जादू आपको एक लम्हा नैराश्य के साक्षात दर्शन करवा देता है.
ये रहे इस गाने के बोल---
मितवा लागी रे ये कैसी अनबुझ आग
व्याकुल जियरा, व्याकुल नैना
इक इक चुप में, सौ सौ बैना
रह गए आंसू लुट गये राग ।।
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चित्र रीडिफ.कॉम और गुयाना फ्रेंड्ज़ से साभार
Sunday, August 31, 2008
एक अंतरे के गीत में समोया पूरी क़ायनात का दर्द
Posted by यूनुस खान, संजय पटेल, सागर चन्द नाहर at 9:00 AM
श्रेणी तलत महमूद, दिलीप कुमार, देवदास, विमल रॉय., सचिनदेव बर्मन, साहिर लुधियानवी
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6 टिप्पणियाँ:
बहुत अदभुत जानकारी देते हैं आप इन लेखों के माध्यम से ..तलत महमूद का एक गाना ,"छुपा लो यूँ दिल में प्यार मेरा'' के बारे में जरुर कुछ बताये और सुनाये आगे आने वाले लेखों में ..शुक्रिया ..
जानकारी ही नहीं गीत भी अद्बुत है।
geet ke sath sath rachana badhiya hai .dhanyawad.
वाकई ४ पंक्तियों में जैसे सारे जहाँ का दर्द भर दिया हो तलत ने ....कमाल
Wonderful song,great info, excellent language.
Ranjanaji is probably referring the song from film Mamta which is subg by Hemantda and Didi. Sanjaybhai may correct me plz.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
रंजनाजी ने जो बोल बताये है वे स्व. हेमंतदा और लताजी का फिम ममता का रोशनजी के संगीत निर्देषनमें गाया हुआ युगल गीत है । अगर इसी बोल को लेकर इस गाने के पहेले तलत साहब के स्वरमें कोई गाना आया भी हो तो इसकी जानकारी मूझे नहीं है । कोई और वाचक इस पर प्रकाश डाले तो मेहरबानी होगी ।
पियुष महेता
सुरत-395001.
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