वेदना,पीड़ा,दु:ख़ या ग़म ज़िन्दगी को एक नया मेयार देते है.
भारतीय कथा-कथन के सर्वकालिक हिट पात्र को अभिव्यक्त करता एक अनमोल गीत
श्रोता-बिरादरी की रविवासरीय जाजम पर आ रहा है. बरसात,पर्व,राष्ट्रप्रेम और शास्त्रीय संगीत की दावतों में तो श्रोता-बिरादरी ने आपको आमंत्रित किया ही है आइये एक दर्द भरा गीत भी सुन लिया जाए. देश के दस सर्वकालिक अभिनेताओं,गीतकारों,संगीतकारों और गायकों की सूची बने तो निश्चित रूप से यह चौकड़ी शुमार करनी ही पड़ेगी जिसका तानाबाना कल श्रोता बिरादरी के गीत के इर्द गिर्द घूमा है.
आज संगीत में शोर का जो आलम है उसमें शब्द और स्वर कराहते सुनाई देते है जबकि कल इस गीत को सुनियेगा तो आप महसूस करेंगे कि हमने इन बीते पचास बरसों में जो जो भी गँवाया है उसमें बेशक़ीमती है संगीत का वह मासूम अहसास जिससे ज़िन्दगी को नये आयाम और नज़रिये मिलते रहे हैं.
बहरहाल चलते चलते आगामी सप्ताह में प्रारंभ हो रहे महापर्व गणेश उत्सव और रमज़ान की अग्रिम शुभकामनाएँ आप सभी श्रोता-बिरादरों के प्रति.
कल रविवार 31 अगस्त श्रोता-बिरादरी टाइम पर मुलाक़ात होती है.आ रहे हैं न....
Saturday, August 30, 2008
मख़मली आवाज़ में वेदना की सर्वप्रिय गाथा का अनमोल गीत
Posted by यूनुस खान, संजय पटेल, सागर चन्द नाहर at 6:51 PM
श्रेणी चित्रपट गीत, श्रोता-बिरादरी, संगीत
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