Sunday, August 17, 2008

एक अदभुत नृत्य गीत-तेरे नैना तलाश करे जिसे वो है तुझ ही में कहीं दीवाने.

साठ का दशक समाप्ति पर था.सचिनदेव बर्मन अपने मजरूह सुल्तानपुरी के गीतों साथ एक नयी फ़िल्म का संगीत रच रहे थे. अब दोस्तो वह दौर आयटम सांग का तो नहीं था लेकिन फ़िर भी फ़िल्म में कभी कभी ऐसी सिचुएशन निकलती थी जब गीत या नृत्य के ज़रिये फ़िल्म का कथानक और मज़बूत होता था. अरे हाँ फ़िल्म का नाम तो बताना ही भूल गए...फ़िल्म थी तलाश.जुबलीकुमार जी की एक और क़ामयाब फ़िल्म.


आइये संगीत के लिहाज़ से इस गीत की चर्चा हो जाए.सचिन दा ने इस नृत्य गीत को गवाया अपने समय के सिध्दहस्त गायक मन्ना डे से. मन्ना दा इसके पहले भी शास्त्रीय संगीत पर आधारित कई लाजवाब गीत लेकर अपनी गायकी का लोहा मनवा चुके थे और इस गीत की धुन तो निश्चित रूप से उनके स्वर की विशेष दरकार रखती थी. मन्ना दा ने अपने संगीतकार के साथ पूरा न्याय किया है इस गीत में.


ये गीत फ़िल्माया गया है या यूँ कह सकते हैं पर्दे पर जिन्होंने इस गीत पर अभिनय किया है वह हैं अपने ज़माने जानेमाने कलाकार शाहू मोडक पर. इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान मोडक जी का कैरियर लगभग ढ़लान पर था. एक समय था जब धार्मिक फ़िल्मो में उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली थी. अब इस गीत में उनके एक्सप्रेशन और देहभाषा देखिये , आपको लगेगा हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के किसी घराने का कोई बड़ा गायक आपसे रूबरू है. हाँ शास्त्रीय संगीत की बात निकली तो बताते चलें कि तेरे नैना तलाश करे जिसे ये गीत राग छायानट पर आधारित है. नृत्यगीत में शास्त्रीय संगीत का बेजोड़ काम सचिन दा ने फ़िल्म गाइड में भी पेश किया था (पिया तोसे नैना लागे रे)

तेरे नैना तलाश करें जिसे

मन्ना डे ने गाने की शुरूआत के संक्षिप्त आलाप से ही अपनी क़ाबिलियत इस गीत में साबित कर दी है.मन्ना डे सुर में मुखर होतीं छोटी छोटी मुरकियाँ मोहक बन पड़ीं हैं. शुरूआती तबले की तिहाई मन मोह लेती है.हाँ ये बता देना भी मुनासिब होगा कि इस गीत में ताल वाद्य के रूप में तबला तरंग और मृदंगम का श्रेष्ठ प्रयोग हुआ है. तबला तरंग एक तरह से तबले पर बजने वाले पूरे सात स्वर हैं जो अपने आप में एक अलग वाद्य का आभास देते है.सरोद , सितार और वीणा को भी सचिन दा ने बहुत लाजवाब तरीक़े से समोया है इस बंदिश में.
गीत की दृष्टि से आपको लगेगा कि नायक को संबोधित करते हुए बात कही जा रही है लेकिन साथ ही इन शब्दो में जीवन दर्शन भी व्यक्त किया गया है. मजरूह साहब की शायरी का बेजोड़ नमूना है यह गीत और एक शायर की समर्थता को भी अभिव्यक्त करता हुआ सा. जो कहा गया है व्यक्त रूप में उसके अलावा भी कवित विद इन लाइंन्स कह जाए तो क्या बात है.

फ़िल्में यदि लोकप्रिय है तो उसमें बड़ा योगदान संगीत का है और सचिनदेव बर्मन जैसे संगीतकारों के हाथ में जब कमान हो तो वे साबित कर देते हैं वे लोक-संगीत,शास्त्रीय संगीत और पाश्चात्य संगीत की गहरी समझ रख कर काम करने वाले इंसान थे. ज़िन्दगी का यर्थाथ देखिये शाहू मोडक,राजेन्द्र कुमार,मजरूह सुल्तानपुरी,सचिनदेव बर्मन कोई अब इस दुनिया ए फ़ानी से रूख़सत हो चुके हैं.

अगर आपके संगीतप्रेमी मन को ये गीत छूता है तो निश्चित रूप से यह श्रोता-बिरादर होने के नाते आपकी सच्ची श्रध्दांजली है इन सर्वकालिक महान कलाकारों के प्रति.
चलने से पहले सुनिए संतूर पर इस गाने की धुन । हमें नहीं पता कि इसे किसने बजाया है ।
ये रहे इस गाने के बोल---
खोई खोई आंख है झुकी पलक है
जहां जहां देखा तुझे वहीं झलक है
तेरे नैना तलाश करे जिसे वो है तुझी में कहीं दीवाने
यहां दो रूप हैं हर एक के
यहां नज़रें उठाना ज़रा देख के
जब उसकी मुहब्‍बत‍ में गुम है तू
वही सूरत नज़र आएगी चार सूं
कौन क्‍या है....मन के सिवा ये कोई क्‍या जाने ।।
तेरे नैना ।।
ये जवान रात ले के तेरा नाम
कहे हाथ बढ़ा कोई हाथ थाम
काली अलका के बादल में बिजलियां
गोरी बांहों में चाहत की अगड़ाईयां
जो अदा है इशारा है प्‍यार का
ओ दीवाने तुझे चाहिए और क्‍या
पर रूक जा मन की सदा भी सुन दीवाने
तेरे नैना ।।

आप इस प्लेयर पर भी सुन सकते हैं ये नृत्य-गीत.


अगले हफ़्ते फ़िर मुलाक़ात होगी.....नमस्कार

6 टिप्पणियाँ:

Smart Indian said...

बहुत शुक्रिया मेरे प्रिया गीत की जानकारी, विडियो व ऑडियो देने के लिए.

Ramesh Ramnani said...

अति सुन्दर मन्ना दा का जवाब नही सच में।

रमेश

दिलीप कवठेकर said...

आपने यह गीत सुना कर और दिखा कर पुरानी यादों को ताज़ा कर दिया.

अब तक इस गानें को कई बार सुन चुका हुं , कहीं गाया भी है, लेकिन सच कहूं, स्थाई की लाईन में एक शब्द को लेकर हमेशा शंका रहती थी..

तेरे नैना तलाश करें जिसे वो है , तुझी में कहीं दिवाने.. यहां तुझी में की जगह कहीं किसी ने गाया था तु जिन्हे कहे दिवाने..
जो तर्कसंगत नही लगता था, मगर अब यह लग रहा है.शुक्रिया.

यही गाना किसीने जब यहां इंदौर में गाया था तो म्रिदंगम और पखावज़ की मीलीजुली आवाज़ तबला और ढोलक से स्थानीय कलाकार इंद्रेश नें बखूबी एक साथ निकालकर मन मोह लिया था.वह भी याद आ गया, और ऎंकर महोदय नें की हुई हौसला अफ़ज़ाई भी.

कभी जमा तो पूरे गाने की जगह वह संक्षिप्त भाग अपने ब्लॊग पर शाया करूंगा.

मन्ना दा तो क्या कहें - संपूर्ण कलाकार, बेजोड, सबसे सूरीला, गले में लोच इतना, कमांड इतना की जिस जगह चाहें , जितना भी चाहें वह सरगम निकाल कर रख देते थे.सूर की गोलाई में कमाल की तासीर डालने का फ़न सिर्फ़ उनमें ही था.

तु है मेरा प्रेम देवता.. गीत में उनकी जुगलबन्दी रफ़ी जी के साथ जो आपने सुन ली है तो उसके आगे जहां और नहीं.

स्वर्ग है कहीं तो यहीं ,यहीं यहीं..

Harshad Jangla said...

फिर आया इतवार और एक मनभावन गीत सुननेका मौका मिला | तलाश के और गीतो को भी दाद देनी चाहिये | मन्ना जी का स्वर , सचीनदा का सँगीत इस ओ पी रल्हन की फिल्मको एक यादगार नमूना बना गये | श्रोता बिरादरी के सभी सदस्योँको बधाइयाँ |
-हर्षद जाँगला
एटलांटा युएसए

Anonymous said...

अति सुन्दर समीक्षा । पर इसी धून के संतूर वादन के कलाकार राजू बंगाली है ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.

Unknown said...

भाई साहब नमस्कार
मन्ना दा का ये गाना मेरा पसंदीदा गाना है।
इसके अलावा रफ़ी साहब और मन्ना दा के गाने बहुत पसंद है।

 
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