फ़र्स्ट लव फ़िल्म का ये गीत रेडियो सिलोन से रात दस बजे शुरू होने वाले पुराने गीतों के कार्यक्रम जब बजा करता था तो मध्यमवर्गीय हिन्दुस्तान के कितने ओटलों,छ्तों और पान की दुकानों पर सुरीलापन महक उठता था. शब्द की सरलता की ऊंची पेंग लेता ये गीत सुमन कल्याणपुर के उस युवा कंठ की परवाज़ था जब सुनने वालों का दीवानापन चेहरे पर बनावटी नहीं होता था. साठ के दौर तक के भारत का संगीतप्रेमी आर्थिक रूप से कमज़ोर था लेकिन उसके कान सुमन हेमाड़ी यानी सुमन कल्याणपुर के इन गीतों से उसे मन से रईस होने की एक प्यारी ख़ुशफ़हमी बनाए रखते थे.सीधी-सादी तबियत की हमारी घर की बहने – बेटियों के युवा मन में महक रहे ख़्वाबों को कितनी तसल्ली दी इन गीतों ने.
दत्ताराम जैसा बेजोड़ संगीतकार शंकर-जयकिशन जैसे जीनियस के साये में काम करता रहा. कितनी धुनों को दत्ताराम की ढोलक की थाप ने मालामाल किया यदि इसकी फ़ेहरिस्त बनाने बैठें तो शायद काफ़ी वक़्त लग जाए.इस गीत में भी देखिये दत्ताराम किस तबियत से ढोलक बजा गए हैं.शुरूआत में बीते हुए दिन के दर्द को वॉयलिन से टेर दी है इस संगीत सर्जक ने.इंटर्ल्यूड में एकॉर्डियन के छोटे छोटे पीस गीत के मार्दव में इज़ाफ़ा करते सुनाई दे रहे हैं .गोवा की पृष्ठभूमि वाले दत्ताराम जी से से एकॉर्डियने के सटीक इस्तेमाल की उम्मीद संगीत जगत करता ही था सो उन्होंने यहाँ साबित भी किया है.
शब्द की नफ़ासत पर श्रोता-बिरादरी हमेशा तवज्जो देती रही है ,कारण यह है कि गीत की लोकप्रियता में शब्द की जो भूमिका रही है उसे आप – संगीतप्रेमी तो समझें और रेखांकित करें.
गायकी के बारे में इतना ही कि आज पेश किये गए गीत जैसे कई गीतों का कौमार्य सुमन कल्याणपुर की आवाज़ ने बढ़ाया है. कमाल की बात ये है कि सुमन कल्याणपुर की आवाज़ लता जी से इतनी मेल खाती है कि ज़माना इसे लता मंगेशकर की ही आवाज़ समझ लेता है । सुमन जी के कई कई गानों को सुनने वाले बेख़बरी में लता जी का गाना मानते रहते हैं । शायद कभी कोई ऐसा ज़माना आए जब सुमन कल्याणपुर की गायकी का सही मूल्यांकन हो सके । तब शायद हमें कोई ऐसा सूत्र मिल जाए जब हम इन दोनों आवाजों का सही सही फर्क कर पाएं । इतनी गहरी समानता हो तो भला कोई संशय में क्यों ना पड़े । आईये इस गाने की इबारत पढ़ी जाए ।
7 टिप्पणियाँ:
कमाल किया भाई ..... न जाने कितने अर्से बाद सुना ये खूबसूरत गीत. जब से cassettes सुनना बंद हुआ है .... शायद तब से. बहुत बहुत शुक्रिया इतवार की इतनी अच्छी शुरुआत करवाने का.
KBH (Kya Baat Hai!!!)
बीते हुए दिनों के गानें कुछ ऐसे ही है,
याद आते ही, और सुनते ही दिल मचल जाये....
नशे का वो आलम तारी किया है इस अनसुने से गीत ने कि बयां करने के पार है. खुदा तआला आपको लम्बी उम्र दरज़ करे, ताकि हमें ऐसे नायाब, कालजयी गीतों से नवाज़ते रहें, और हम भी अपनी उम्र दराज़ करें.
अकई में सुमन कल्याण्पुर और लताजी की आवाज़ के टिम्बर में अन्तर बहुत कम था. (अनुराधा के टोनल रेंडरिंग में तोदी सी तीक्ष्णता का पुट था, खस कर तार सप्तक के सुरों में)
मेरे अल्प समझ से सुमन्जी और लताजि की आवाज़ में एक मामुली फ़र्क मैने मेहसूस किय. वह यह कि लता के स्वर में मिठास , स्वच्छता, गोलाई, कण, एक रूहानी हद से शुरु हो कर पार्लौकिकता की हदों को लांघ जाता है, और सुमन का स्वर इन सभी खूबियां मौजुद होने के साथ एक ज़मीनी , पार्थिव धारणा से , सुख दुख के कलेवर में लिपटी हुई नश्वरता का मौलिक का एहसास देता है.
यहां कोइ नंबर गेम नही, या लताजी के लियी कशीदा करी नही, मगर, सुमन जी के बारे कही अपूर्णता का जो दुख सालता है, उसकी कैफ़ियत का प्रमणिक विष्लेशण मत्र है.
प्रस्तुत गीत लता जी के स्तर से कतई कम नही है. दुखों के भावों की अभिव्यक्ति भरे शब्द,दत्ताराम के बेहतरीन कंपोझिशन , पूर्णता से भरा वाद्यव्रिंद प्रयोग, और उसपे आपकी सुरमई टिप्पणी, सभी अप्रतीम!!
इस गीत इंटर्ल्युड में अकोर्डियन का प्रयोग भी मौजुं है. अक्सर , इसकी उपस्थिती आल्हादायक या आनन्दी वातावरण या Ambiance का अहसास दिलाने के लिये होति है. फ्रिलुड मे मौजुद वओलिन की टेर इस गीत का स्थाई भाव है, तो इंटर्ल्युड का अकोर्डियन दिल के मचलने के बाद की मन की अवस्था का expression है, और उन बीते हुए पल के नोस्टेल्जिया की सुखमई क्षणिक जुगालि का फ़ीलिंग है.
इसिलिये यह गीत आनन्द और अवसाद की भवना के रोलरकोस्टर पर चलता है, हमें भी चलाता है.
वाकई ढोलक कि जो थाप जो बीच में आती है वो एक ठसक उठा जाती है, कभी बचपन में सुना था ये गीत, सुमन जी कि आवाज़ है या जादू, पानी में जले जैसे गीतों की शोखी याद कीजिये, एक बार फ़िर शानदार प्रस्तुति,
बहुत्त बार सुनने के बाद लिख रही हूँ -आभार --
क्षमा करें, लेखन में कई त्रुटियां रह गयी है. जब मुझे ही इतनी पीडा हो रही है तो आप श्रोताओं का क्या हाल होगा.विनम्रता से मुआफ़ी की गुज़ारिश.
दरअसल , TFT screen वाले नये Monitor में कुछ analog v/s digital setting का प्रोब्लेम है, इसलिये दिल को दलि दिखा रहा है.
एक बात कहना रह गयी. लत और सुमन में फ़र्क सिर्फ़ इतना , की जैसे, किसी तानपूरे के जव्हारी की fine tuning लता जी की पूरी, मुकम्मिल है, और सुमन जी कि थोडी कसर रह गयी, बस.
Again a request to pardon.
Another Sunday and another sweet song.Dattaram has done a good job here, giving good Bandish and musical interludes.
We can never forget his compositions of Parvarish.If I have heard it correct, the last days of this musical man were passed in a very poor situation in terms of finance.Sumanji has rendered a beautiful voice.
Thanx Shrota Biradari Team.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
आपकी टीमने फिर एक रसभरा गुलदस्ता पेश किया है ~
इस मीठे, रसीले,
नवयौवन से मधुर ,
सुमन कल्याणपुर की आवाज़ का जादू बिखेरता दत्ताराम जी की थपक के सँग झूलता, सुमधुर गीत ,
गुलशन बावरा के सुन्दर शब्द से गुँथा , बडा प्यारा लगा -
बरसोँ बाद फिर सुना 1
शुक्रिया आप सभी का
- लावण्या
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