योगायोग ही कहिये कि पिछले रविवार और सोमवार लगातार दो दिन तक आपसे सुरीली मुलाक़ात होती रही. प्रतिक्रियाएँ भी मिलीं,ई-मेल्स,समस और आपके फ़ोन कॉल्स भी. मन भर आता है आपके प्रतिसाद से और इरादा पक्का बनता है कि संगीत के सुनहरे दौर की ये बातें आपके कोमल मन को छू रही हैं.
बात करते करते फ़िर आ गया रविवार या कहें श्रोता-बिरादरीवार.सुबह के नौ बजेंगे और १० अगस्त को फ़िर एक बार मिल बैठेंगे हम एक ऐसे संगीतकार की रचना लेकर जो मूलत: एक ख्यात संगीतकार जोड़ी का सहयोगी रहा. बेताज बादशाह रहा तालवाद्यों का लेकिन जब भी ख़ुद बतौर म्युज़िक डायरेक्टर काम किया तो बता दिया वह किस पाये का कलाकार है.गीत के क्या कहने , सुनते ही लगे कि ये तो मेरे मन की बात है और गायकी ...माशाअल्लाह देश की इस सुर महारानी का स्वर तो जैसे भगवान ने कुछ ऐसा गढ़ा है कि उसकी उम्र ही नहीं बढ़ती ...सुनते सुनते एक पीढ़ी बूढ़ी हो गई लेकिन वह है एक अखण्ड कैशोर्य स्वर.....समझ तो गए हैं आप ...बिलकुल ठीक ...भल आपका अंदाज़ ग़लत कैसे हो सकता है ....बस आपकी इसी अदा पर तो क़ुरबान है हम तीनों यानी यूनुस,सागर और संजय का दिल.आप से ही है श्रोता-बिरादरी के सुरीलेपन की महफ़िल रोशन.आदाब.
Saturday, August 9, 2008
अखण्ड किशोर स्वर में डूबी श्रोता-बिरादरी की रविवासरीय पेशकश
Posted by यूनुस खान, संजय पटेल, सागर चन्द नाहर at 8:54 PM
श्रेणी श्रोता-बिरादरी, हिन्दी फ़िल्मी गीत
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