Monday, August 4, 2008

किशोर कुमार अपने जन्‍मदिन पर कुछ कह रहे हैं ।।

 
किशोर कुमार 1929-1987 
सन 87 से अब तक कितने बरस बीत गए,‍ गिनती करना मुश्किल नहीं है । लेकिन ये बहस दुनिया में लगातार चलती रही कि किशोर बेहतर थे या रफ़ी या मुकेश । दुनिया भर में किशोर कुमार के नग़मे भी बजते रहे । और इस बीच ना जाने कितनी पीढियां किशोरावस्‍था से जवानी और जवानी से अधेड़ होने की तरफ़ बढ़ चलीं । लेकिन श्रोता-बिरादरी मानती है कि जो 'किशोर' के गाने सुनता है वो किशोरावस्‍था में ही है । 
किशोर के जन्‍मदिन पर हम कोई भी खिलंदड़ गाना चुन सकते थे और फिर किशोर दा की शान में क़सीदे काढ़ सकते थे । लेकिन श्रोता-बिरादरी संस्‍कारों पर ज़ोर देती है और लीक से हटकर काम करने पर विश्‍वास रखती है । तो चलिए आज एक ऐसा गाना सुनें जिसमें अपनी बात कहने की हिचक है । जिसमें प्‍यार की तरंगों के बीच दिल में उठता संकोच का ज्‍वार है । जिसमें बेक़रारी के साथ हल्‍का-सा डर है । उफ़ ऐसे गाने आज क्‍यों नहीं बनते । 
इस गाने को सुनते हुए सोचिए कि आज का नायक तुषार कपूर परदे पर चिल्‍ला चिल्‍लाकर कह रहा है-'मुझे कुछ कहना है' । और यहां परदे पर किशोर बड़े संकोच से वहीदा रहमान से अपने मन की बात कह रहे हैं । कितना विरोधाभास है दोनों स्थितियों में । इससे आपको अंदाज़ा लग जायेगा कि ज़माना कितना बदल गया है । 
आज मुझे कुछ कहना है ! इतने से भी काफ़ी कुछ कह दिया है इस गीत ने.
और हेमंत दा की दृष्टि देखिये कि जहाँ साहिर कहने में समर्थ हैं वहाँ एक संगीतकार ने धुन की एक परिपक्व ज़मीन देने के अलावा कुछ नहीं कह है.जहाँ शब्द और गायकी सब कुछ कह रही हो वहाँ साज़ की ज़रूरत नहीं है नहीं है.और ऐसा कर के संगीतकार हेमंतकुमार काफ़ी कुछ कह गए हैं.श्रोता-बिरादरी के आपके मेज़बान यानी हम तीनो इस बात को रेखांकित करना चाहेंगे कि किशोर दा में बसे संजीदा गायक को ज़माने ने गंभीरता से नहीं लिया. कई गीत ऐसे हैं जिनमें से आज का गीत विशिष्ट है जहाँ आप शिद्दत से महसूस करते हैं कि किशोर कुमार एक परिपूर्ण गायक थे और हर रंग , सिचुएशन और स्टाइल का गीत उनके स्वर को फ़बता था. वे एक भरी-पूरी म्युज़िकल रूह थे और जिस तरह से उन्होंने संगीत जगत में आमद ली उससे सहज ही अंदाज़ लगाया जा सकता है कि बिना किसी उस्ताद या औपचारिक तालीम के परिदृश्‍य पर छा जाने वाला ये खिलंदड़ गायक एक एक कुदरती करिश्मा था.

बहरहाल आपको बता दें कि ये गाना किशोर कुमार और सुधा मल्‍होत्रा ने गाया है और साहिर ने लिखा है । इस गाने के संगीतकार हैं हेमंत कुमार । विलक्षण है ये गीत । पहले रचना पक्ष की बात कर लें । तो साहिर ने पूरा समां बांधा है--कश्‍ती का खामोश सफर, शाम, तन्‍हाई, लहरों की तन्‍हाई.....लेकिन दिल की बात ज़बां पर आ नहीं रही है । इस गाने में ग़ज़ब की सूक्ष्‍म नाटकीयता है । अगर आप पहली बार गाना सुनें तो लगेगा कि नायक अब अपनी बात कहेगा, अब कहेगा...शायद आखिर में जाकर कह ही देगा । पर किशोर आखिरी पंक्ति में कहते हैं.........छोड़ो अब तो संग ही रहना है । ना कहते हुए भी कितना कुछ कह गए हैं साहिर । गाने ऐसे लिखे जाते हैं ।

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कश्‍ती का ख़ामोश सफर है शाम भी है तन्‍हाई भी
दूर किनारे पर बजती है लहरों की शहनाई भी
आज मुझे कुछ कहना है ।।
लेकिन ये शरमीली निगाहें मुझको इजाज़त दें तो कहूं
खुद मेरी बेताब उमंगें थोड़ी फुरसत दें तो कहूं
आज मुझे कुछ कहना है ।।
जो कुछ तुमको कहना है वो मेरे ही दिल की बात ना हो
जो है मेरे ख्‍वाबों की मंजिल उस मंजिल की बात हो ।
कहते हुए डर सा लगता है कहकर बात ना खो बैठूं
ये जो ज़रा-सा साथ मिला है ये भी साथ ना खो बैठूं ।
कब से तुम्‍हारे रस्‍ते में मैं फूल बिठाए बैठी हूं ।
कह भी चुको जो कहना है मैं आस लगाए बैठी हूं ।
दिल ने दिल की बात समझ ली अब मुझे क्‍या कहना है
आज नहीं तो कल कह लेंगे अब तो साथ ही रहना है ।
कह भी चुको, कह भी चुको जो कहना है
छोड़ो अब क्‍या कहना है ।।

समय तो बीतता ही जाता है और हम सब अपनी व्यस्तताओं को बढ़ाते ही जाते हैं
लेकिन ये गुज़रे ज़माने का संगीत या कहिये आज मुझे कुछ कहना है जैसे गीत ही
हैं जो समय की गति को थामें हुए हैं . हमें स्मरण दिलाते हुए से कि हम बीत रहे
हैं लेकिन संगीत हमें कुछ पलों को बीतने से रोक रहा है. दिन रात तेज़ और तेज़
तत्काल और तत्काल की तरफ़ भाग रहे समय में ये गीत हमें साइलेंट मैसेज भी दे
रहे हैं कि इंसान नहीं रहता उसका हुनर उसकी क़ाबिलियत के चर्च हमेशा बने रहते हैं
किशोर दा भी करोड़ों संगीतप्रेमियों के बीच बने रहे हैं ; बने रहेंगे.सोच,संगीत,समझ
बदलेगी लेकिन किशोर कुमार जैसा गायक हमेंशा हमारी स्मृतियों में बना रहेगा.

किशोर दा को कोई अच्छी बंदिश पसंद आ जाए तो.... क्या बात है कहने के बजाय
उसको एब्रीवेट करके कहते थे...के.बी.एच....क्या ये गीत सुनने के बाद आप नहीं
के.बी.एच .रमाकु रशोकि (किशोर दा इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में अपने मित्रों को
अपना नाम उल्टा कर के ही बताते थे और हाँ सहगल साहब के कई गाने भी उल्टे गाते
थे)......हेप्पी बर्थ डे टू यू किशोर दा !

9 टिप्पणियाँ:

रंजू भाटिया said...

. हमें स्मरण दिलाते हुए से कि हम बीत रहे
हैं लेकिन संगीत हमें कुछ पलों को बीतने से रोक रहा है. दिन रात तेज़ और तेज़
तत्काल और तत्काल की तरफ़ भाग रहे समय में ये गीत हमें साइलेंट मैसेज भी दे
रहे हैं कि इंसान नहीं रहता उसका हुनर उसकी क़ाबिलियत के चर्च हमेशा बने रहते हैं

बिल्कुल सही कहा आपने ..यह गीत सदाबहार हैं और रहेंगे ...उनके जन्मदिन कि यह बेहतरीन यादगार है ..

Sajeev said...

वाह वाकई नायब नगमा, आनंद आ गया, आवाज़ पर आज हमने याद किशोर दा को और कुछ नायाब तस्वीरों, ज़रा मदद करें इन्हे पहचानने में http://podcast.hindyugm.com/2008/08/blog-post_04.html

कामोद Kaamod said...

kishor da aaj bhi amar hai. aaj bhi unke gaye geet utne hi taze our yatharth se jude lagte hai .
achchi prastuti...

दिलीप कवठेकर said...

क्या बात है ? K B H !!!

मैं सोच ही रहा था कि आप लोग किशोर दा पर क्या पेश करने जा रहे हैं? उनके हज़ारों गानोंं में से क्या चुनते है?

मगर क्या कहूं, जो गाना चुना वह बिलकुल यहां रखने के लायक है, माफ़िक है.

इस पर कुछ लिखने के लिये समय चाहिये, मगर , दिल में उमडे विचारों का क्या करें? सो लिख दिया. त्वरित टिप्पणी.

फ़िर लिखेंंगे, बार बार लिखंेंगे, फ़िर भी कम है, दादा के लिये!!

ओ मेरे दिल के चैन, चैन आये मेरे दिल को दुआ किजीये.

अब आफ़िस वसिफ़ भाड मे जाये,अब यहीं धूनी रमाता हुं.

दिल तुझको ही चाहे तो क्या किजीये?>

Udan Tashtari said...

हेप्पी बर्थ डे टू यू किशोर दा !

Unknown said...

आपनें यह जो किशोर की आवाज़ को किशोरावस्था से जोड़ा ,वह बहुत सही है |
मुझे किशोर कुमार के गीत उन ही दिनों की याद दिलाते हैं जो बचपन के दिन थे,सबसे ख़ूबसूरत, ,बेफिक्र और उन्मुक्त थे|

Harshad Jangla said...

One of the best duets of KK.
One small correction in your lyrics: Dilne dilki baat samaz lee ab MOOHSE kya kahna hai....
MUJHE word in not spoken.
Nice selection.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

दिलीप कवठेकर said...

किशोर दा को सुन सुन के जो समझा, गा कर उससे भी अलग समझा जो शेयर करूंगा.

किशोर कुमार की आवाज़ उन्के व्यक्तित्व का आईना थी,. मस्त मौला, खिलंदड भाव भंगिमायें, और देह ्मुद्रायें,body language,इन सब में एक चीज़ common है, उन्की जीवंतता, और उन्का एक अभिनेता होना.( खिलंदड शब्द का बेहद खूब्सूरत उपयोग किया है आपने)

यही वज़ह है की उनके हर गाने में, हर शब्दों में उसके पीछे का अर्थ सुरों के माध्यम से प्रकट होता था.His rendering of any song, be it a comic song, or a sad one, he always added his liveliness into it, supported by his acting prowess and therefore that song also ACTED.(in audio form of course)

His first inning was commemorated with his own songs where he acted and sang, and those for which he gave play back, mostly for SDBurman, and Dev Anand.But he was definitely not taken seriously.

However, his second innings after Aaradhana, saw an emergence of a powerful Acting Singer, well timed by change of basic traits requirement of Heroes. From submissive characters of main heroes like Bharat Bhooshan, and to soft , romantic not so loud , partially subdued heroes like Rajendra kumaar , etc, which was domain of Rafiji, Mukeshji, Talatjee etc, film Era saw powerful hero Characters, with Violent streaks,yet romantic and anti heroes too, like Amitabh Bacchan, or happy go lucky youths with newer ,musical , & dance oriented culture.

His type of Voice , and timber of Voice, supported characters with newer generation demands.

However, all said and done, his soft melodeous renderings were also out of world, and every music director fell for it.

Kalyanjee Anandjee gave many great soft numbers like jeevan se bharee teri , pal pal dil ke paas,(Where I felt he was more towards Rafijee)

For RD , hame tumse pyaar kitana, o mere dil ke chain, raat kali ek khwab me. (endless)

Not to mention all others, whose mention is not there due to time & space restraint.(may be I will try on mu blog)

No issue for not being able to sing Classical based songs. Then what can you say about Pag ghungru bandh meera?

There is a little Nasal tone embedded in his voice that added some extra taste into his मिठाई या चट्पटे व्यंजन.

While singing , a singer has to take precaution. He is to be ready for any form of acrobat in his voice or a steady stance, like a 5 day test or 50 over match or even 20-20.

किशोर दा पर इज़हारे अकीदत पेश करने का एक और तरीका मैने सोचा है, उनका गीत गुन्गुनाउं.

तो अपने ब्लोग पर हंस की चाल चलने की कोशिश की है. उचित लगे तो सुन लिजिये.यह भी तो एक श्रध्धांजलि हो सकति है , क्यों नही? ना लगे तो कह दिजिये, अपन तो back to the pavallion!

अमिताभ मीत said...

One of my all time favourites, and forever. और ... कोई इस से भी अच्छी भाषा में ये जादू कर सकता है ?? "साहिर" सच में साहिर था.

 
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