Friday, August 15, 2008

कल श्रोता बिरादरी बाबुल को भेज रही है एक दर्दीली सुर पाती.

जानकार उस आवाज़ को गायकी की आत्मा कहते हैं. वे सुरों की महारानी हैं . उम्र का कोई असर उनकी गायकी पर नहीं पड़ता. श्रोता-बिरादरी के रक्षाबंधन संस्करण में सुनिये कविता और संगीत के लिहाज़ से एक मार्मिक बंदिश. राखी की रूटीन गीतों से हट कर एक ऐसे गीत की पेशकश जिसे हिन्दी के एक समर्थ कवि ने लिखा और लोकधुनों के चितेरे ने अपने संगीत से सजाया.

वे बहनें जो इस बार किसी वजह इस सावन मास में अपने भाई तक नहीं पहुँच पाईं हैं उनके कोमल मन को समर्पित है श्रोता-बिरादरी की ये पेशकश.ये गीत सुनते वक़्त आप महसूस करेंगे कि हमारे फ़िल्म संगीत को रचने वाले गुणी कारीगरों जिनमें गायक,संगीतकार,गीतकार और तमाम वाद्यवृंद कलाकार शामिल हैं ; किस शिद्दत से तीन मिनट में एक पूरा नॉवेल रच देते हैं.इस बंदिश को सुनते वक़्त यह विचार भी मन में आता है कि ये गीत न होते तो फ़िल्मों के कथानक कितने रूखे होते.और ये गायक/गायिकाएं न होतीं तो न जाने कितनी तारिकाएं मौन रह जातीं.

एक बार फ़िर याद दिला दें रविवार 17 अगस्त को भी श्रोता-बिरादरी यानी आप-हम सब मिल ही रहे हैं ...तमाम बहन श्रोताओं को रक्षाबंधन की शुभकामनाएं.

2 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari said...

स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आजाद है भारत,
आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
पर आजाद नहीं
जन भारत के,
फिर से छेड़ें, संग्राम एक
जन-जन की आजादी लाएँ।

 
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