Friday, August 15, 2008

झंकारो अग्निवीणा: ये गीत आपको याद दिलाएगा कि पन्द्रह अगस्त महज़ एक छुट्टी का दिन नहीं है !


आज़ाद हिन्द फ़ौज का ये तराना आपके हमारे जज़बातों को ललकारता है. स्वतंत्रता की लड़ाई में हमेशा संगीत ने एक अहम किरदार निभाया था.

आज़ादी के परवानों के लिये इस तरह के गीत तो हथियारों से ज़्यादा जोश जगाते आए हैं.सुभाष बाबू की आज़ाद हिन्द फ़ौज में तो बाक़यदा एक संगीत एकांश था जिसने बहुत लाजवाब क़ौमी तरानों को कम्पोज़ किया. इन गीतों का मोल आज की पीढ़ी तो लगभग जानती ही नहीं लेकिन तीस से साठ के दशक के बीच पैदा हुए लोग या अपवादस्वरूप उसके बाद ऐसे लोग जिनकी दिलचस्पी संगीत या राष्ट्र रहा हो वे ज़रूर इन गीतों का मर्म भाँप सकते हैं.मार्च पास्ट ट्यून पर कम्पोज़ किये गये अधिकांश गीत किसी देश के सपूत का पुरूषार्थ,स्वाभिमान और मातृभूमि प्रेम जगाने में हमेशा महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुए हैं.

शिवाजी महाराज के ज़माने में लिखे गए पवाड़े हों,या रामप्रसाद बिस्मिल,सोहनलाल द्विवेदी,सुभद्राकुमारी चौहान,चंद्रशेखर आज़ाद के लिखे गीत,इप्टा के कॉयर सांग्स हों , सुभाष बाबू की आज़ाद हिन्द फ़ौज के तराने या राष्ट्रीय फ़िल्मों के चित्रपत गीत, हमेशा इनमें छुपा जज़बाती भाव हमारी जन्मभूमि या क़ुरबानी दिलाने रंणबाँकुरों का पावन स्मरण करवाता आया है,जोश जगाता आया है.

श्रोता बिरादरी ने अपनी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए स्‍वतंत्रता दिवस पर ये गीत आपके लिए इसलिए प्रस्‍तुत किया क्‍योंकि ये बहुत ज्‍यादा बजता नहीं है । हो सकता है कि आपमें से कुछ लोग इसे पहली बार सुनें । आपको बता दें कि ये गीत 'नेताजी सुभाषचंद्र बोस' नामक उस फिल्‍म का है जो सन 1966 में आई थी । हेमेन गुप्‍ता की इस फिल्‍म में अभि भट्टाचार्य ने नेताजी की भूमिका निभाई थी । प्रदीप के गीत और संगीत सलिल चौधरी का । इस गाने में आपको मन्‍नाडे, सुबीर सेन, सबिता चौधरी और साथियों की आवाज़ें सुनाई देंगी । 'मार्च-पास्‍ट' की ट्यून पर बना ये गाना आपकी रग रग में जोश भर देगा । कोरस के बेहतरीन इस्‍तेमाल के लिए वैसे भी सलिल दा याद किये ही जाते हैं ।

स्वाधीनता दिवस की पावन बेला में श्रोता-बिरादरी की बिछात पर आपको सुनाई दे यह गीत आपकी संवेदनाओं को कितना छूएगा लेकिन इसमें छुपा राष्ट्रीयता का शाश्वत भाव अपनी अहमियत रखता है. ये दु:ख की बात है प्रगति के प्रवाह में हमारे लिये राष्ट्र प्रेम अंतिम प्राथमिकता रह गया है.हम इतने आत्मकेंद्रित हो चुके हैं हैं कि आज़ादी की जंग और उसके लिये दी गई प्राणों की आहूतियाँ हमें अब झकझोरती नहीं हैं.लेकिन इतना ध्यान रहे कि राष्ट्रप्रेम जब जब भी हमारे लिये एक औपचारिकता या ढोंग रहेगी हम और हमारी अगली नस्लें मुश्किलों का सामना करेगी.आइये स्वतंत्रता दिवस की इस पवित्र भोर में इस गीत को सुनते हुए हमारे मन में सुप्त हो चुकी भावनाओं को जागृत करें क्योंकि हम ज़ाहिर करें न करें ; हमे अपने भारत पर गर्व है.जय हिन्द !
शहीदों ने मातृभूमि के
लिये ख़ून दिया
देशवासियों ने लगभग
उसे भुला दिया
आज फ़िर माँ की
आँखों में आँसू हैं
आओ मिल कर कहें
मत रो माता.


झंकारो झंकारो झनन झन झन झंकारो अग्निवीणा  
आजाद होकर जियो बंधुओं ये जीना क्‍या जीना ।।
बज गया बिगुल दीवानों चलते चलो
मंजिल की तरफ मस्‍तानों चलते चलो
आजादी है अपना हक
जब तक ना मिले तब तक
आजादी के परवानों चलते चलो
झंकारो झंकारो ।।

ओ सिर कटवाने वालो आगे बढ़ो
फांसी पे लटकने वालो आगो बढ़ो
बंधन में है अपनी मां
ज़ंजीर में अपनी मां
ओ खून बहाने वालो आगे बढ़ो
झंकारो झंकारो ।।

तुम हो शेरों की टोली तुम ना डरो
चाहे लात चले या गोली तुम ना डरो
शमशीर हो देश की तुम
तकदीर हो देश की तुम
तुम इंक़लाब की बोली तुम ना डरो
झंकारो झंकारो ।।





4 टिप्पणियाँ:

रंजू भाटिया said...

पहली बार ही सुना है यह गाना ...जोश से भरा हुआ है ..शुक्रिया इसको सुनवाने का ..
आजादी दिवस की बधाई .जय हिंद

दिनेशराय द्विवेदी said...

बिलकुल रणखेत का गीत है...


आजाद है भारत,
आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
पर आजाद नहीं
जन भारत के,
फिर से छेड़ें, संग्राम एक
जन-जन की आजादी लाएँ।

Udan Tashtari said...

स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Sajeev said...

jabardast geet nayaab

 
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