अब तक तो आपको श्रोता-बिरादरी की आदत पड़ ही गई होगी.हम
आपके प्रेमपूर्ण प्रतिसाद से अभिभूत् हैं और उम्मीद है कि आप
सुरीलेपन को महदूद रखने के इस सिलसिले के हमसफ़र बने रहेंगे.
देश के कई अंचलों में बारिश की आमद हो चुकी है तो कई जगह
सावन अभी भी सूना सूना है. लेकिन संगीत में वह ताक़त है कि
जो मिल जाए उसका उत्सव मनवा देता है और जो नहीं मिला
उसका दर्द भुला देता है. समझ लीजिये कुछ इसी तरह का मजमा
जमा देगी श्रोता बिरादरी की 20 जुलाई की प्रविष्टि.
एक सर्वकालिक गुणी और रचनाशील संगीतकार की बेजोड़ रचना है
यह. श्वेत श्याम कलेवर के दौर में भी संगीत का इन्द्रधनुष रचाती सी.
गीत के बोल ऐसे कि आपको लगे कि ये भाषा तो आप घर में
बोलते आए हैं.....और गायकी...शायद उसे व्यक्त करने के लिये
हमारे शब्द उतने सुरीले नहीं हो सकते; जितनी ये आवाज़ें.
याद रखियेगा; रविवार की सुबह नौ बजे के अनक़रीब श्रोता-बिरादरी
मुख़ातिब होती है आपसे.कल भी ये सिलसिला जारी रहेगा.
हाँ आपको इस पोस्ट से बाख़बर करने का मकसद
इतना भर है कि आप एस.एम.एस. या ई मेल के
ज़रिये श्रोता-बिरादरी की नई पायदान की सूचना
अपने देस-परदेस में बसे मित्रो/परिजनों तक पहुँचा सकें....
आप ख़ुद भी तो श्रोता-बिरादरी का हिस्सा हैं न ?
आइये सुरीलेपन
को संक्रामक बनाएँ.
Saturday, July 19, 2008
रविवारीय सुबह में झरेंगी गीत/संगीत की मनभावन बूँदें.
Posted by
यूनुस खान, संजय पटेल, सागर चन्द नाहर
at
6:36 PM
श्रेणी बरसात, श्रोता बिरादरी, हिन्दी गीत, हिन्दी फ़िल्म संगीत
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 टिप्पणियाँ:
संक्रमणता बढ रही है
Post a Comment