Tuesday, July 26, 2011

श्रोता-बिरादरी पर मोहम्मद रफ़ी का भावपूर्ण स्मरण



३१ जुलाई को हरदिल अज़ीज़ गायक मोहम्मद रफ़ी साहब की बरसी आती है. शायद ही देश का कोई ऐसा भाग हो जहाँ रफ़ी साहब को इस दिन पूरी शिद्दत से याद न किया जाता हो. श्रोता-बिरादरी एक लम्बे अंतराल के बाद आपसे रूबरू है और इसका नेह बहाना बन गये हैं मोहम्मद रफ़ी साहब।

आज से ३१ जुलाई तक प्रतिदिन एक गाना और रफ़ी सा.के जीवन से जुड़ा कोई रोचक तथ्य श्रोता-बिरादरी पर जारी होगा. कोशिश होगी कि इन नग़मों में वे हों जो कम सुने जाते हैं। उम्मीद करते हैं कि एक बार फ़िर श्रोता-बिरादरी अपने सुरीलेपन के साथ आपके मन-आँगन में बनी रहे।

तो आज शुरू करते हैं संगीतकार नौशाद साहब द्वारा सिरजे गये ऐसे शब्दों से महान रफ़ी साहब को समर्पित हैं। जग-ज़ाहिर है कि मो.रफ़ी के करियर को बनाने में नौशाद की धुनों का बहुत बड़ा योगदान है. मुलाहिज़ा फ़रमाएँ:
अल्लाह अल्लाह रफ़ी की आवाज़
रूहे-महमूदो-जान-ए-बज़्मे अयाज़
उसकी हर तान,उसकी हर लय पर
बजने लगते थे ख़ुद दिलो के साज़

महफ़िलों के दामनों में साहिलों के आसपास
यह सदा गूँजेगी सदियों तक दिल के आसपास
मोहम्मद रफ़ी,मोहम्मद रफ़ी,मोहम्मद रफ़ी.



कितनी राहत है दिल टूट जाने के बाद-२
जिंदगी से मिले मौत आने के बाद..
कितनी राहत है....
लज्जते सज़दा-ए-संग-ए-डर क्या कहें
होश ही कब रहा सर झुकाने के बाद
क्या हुआ हर मसर्रत अगर छिन गई
आदमी बन गया ग़म उठाने के बाद
रात का माज़रा फिर से पूछो शमीम
क्या बनी बज़्म पर मेरे आने के बाद
जिंदगी से मिले मौत आने के बाद
शायर: शमीम जयपुरी
संगीत: ताज़ अहमद खान

कल फ़िर मिलते हैं;रफ़ी साहब के एक और लाजवाब गीत के साथ.अल्ला-हाफ़िज़.

चित्र मो. रफ़ी.कॉम से साभार

1 टिप्पणियाँ:

दिलीप कवठेकर said...

श्रवणीय गज़ल और रफ़ी साहब की मीठी आवाज़, लज़्ज़त तो आयेगी ही.

 
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