लता स्वर उत्सव में अब तक कोशिश रही है कि कुछ अनसुने या कमसुने गीत सुनवाए जाएँ. आगे कुछ लोकप्रिय गीत भी आपको सुनने को मिल सकते हैं.जो भी गीत आपको सुनवाये जा रहे हैं या हमारी सूची में शुमार हैं उनमें दो चीज़े स्थायी हैं.लता मंगेशकर और मेलडी; वैसे लता और मधुरता बात एक ही है. लताजी की गान-यात्रा की मीमांसा करना हमारे बूते के बाहर है बल्कि किसी के भी लिये भी मुश्किल है क्योंकि गीत बन जाने के बाद उस पर टीका टिप्पणी कर देना बहुत आसान है लेकिन संगीतकार बनकर आसमान में से धुर सिरजना किसी पराक्रम की दरकार रखता है. लता मंगेशकर गीतों को गाते समय आशिंक रूप से ख़ुद एक नायिका का रूप भी धर लेतीं हैं. इस स्वांग में वे कभी विरहिणी हैं,कभी याचक,कभी प्रेमिका,कभी बहन और कभी ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा रचतीं एक विदूषी.
आज लता स्वर उत्सव के चौथे दिन जारी किये जा रहे गीत में वे चाँद की उपमा देते हुए अपने प्रेमी को आह्वान कर रहीं है कि “जब तक गगन में चाँद के जगने तक मेरे चाँद तुम मत सोना”. हिन्दी प्रेमल गीतों की भावधारा में पं.भरत व्यास के शब्द एक गरिमामय मादकता पैदा करते हैं. इन शब्दों को सुनें तो आपको लगे कि यह गीत श्रंगार रस का बेहतरीन उदाहरण हो सकता है. तू छुपी है कहाँ, आ लौट के आजा मेरे मीत, आधा है चंद्रमा और तुम गगन के चंद्रमा जैसे हिन्दी गीतों से चित्रपट जगत में एक सम्माननीय गीतकार के रूप में पं. भरत व्यास हम सबके लिये अनजाना नाम नहीं हैं. चाँद या चंद्रमा को केन्द्र में रख कर उनके दो गीतों का उल्लेख तो ऊपर ही हो चुका है
“लता उस स्वच्छमना,कोमल और आदर्श प्रेमिका की याद दिलाती है जिसे अनादि से पुरूष खोजता आया है. लता उस अमूर्त नारी को सिरज देती है जो ब्रह्मरस है, सृष्टि में ईश्वर के होने का दमदार हलफ़नामा है. लता न होतीं तो शायद हमें इतनी शिद्दत से अहसास भी नहीं होता कि यह क़ायनात सत्यं, शिवं, सुन्दरम से भीगी हुई है. प्रणाम लता मंगेशकर; तुम ईश्वर की सबसे पावन भेंट हो.” -अजातशत्रु
आज सुनवाया जा रहा गीत हिन्दी कविता का बेजोड़ नमूना है. इस गीत के शब्दों के अलावा चौंका रहा है दादा मन्ना डे का संगीत संयोजन. हम मन्ना दा के गायन से ही परिचित रहे हैं लेकिन भक्ति-धारा की इस फ़िल्म का यह प्यारा गीत महमोहक है. लता मंगेशकर ने यहाँ भी चिर-परिचित कारनामा किया है और वे अपने संगीतकार की विनम्र अनुगामिनी बन गईं हैं. तुम खोना नहीं पंक्ति के पंच को सुनते हुए आपको लग जाएगा कि ये मन्ना डे की छाप वाली रचना है. गीत की सिचुएशन, कविता और धुन के निर्वाह में सुकंठी लता मंगेशकर इस सृष्टि की शायद सबसे विलक्षण स्वर अभिव्यक्ति हैं. मन्ना दा ने पूरे गीत में मेण्डोलिन का आसरा लिया है.मुखड़े में ही झिलमिल तारे करते इशारे पंक्ति के बाद लताजी का संक्षिप्त सा आलाप आसमान में बिजली सा चमका है. गीत की बंदिश हो या क्लिष्ट; वे संगीतकार की चुनौती पर हमेशा खरी उतरतीं आईं हैं.लताजी अपने समकालीन गायक-गायिकाओं से कुछ आगे इसलिये भी नज़र आतीं हैं कि वे अपनी आवाज़ से शालीनता,कोमलता,स्वच्छता,स्निग्धता,और पवित्रता की अनोखी इबारत रच देतीं हैं. उनको सुनते हुए लगता है कि एक भारतीय नारी किसी तीर्थ-स्थल पर साफ़-सुथरे पाँवों से विचर रही है जिसके तलुवों को अभी तक किसी भी संसारी धूल ने स्पर्श नहीं किया है. आप तो इस शब्द-विलास को छोडिये गीत सुनिये.
गीत: जब तक जागे चाँद गगन में..
फिल्म: शिव कन्या 1954
गीत: भरत व्यास
संगीत: मन्ना डे
1 टिप्पणियाँ:
अजातशत्रु सा. ने क्या खुब नवाजा है "सृष्टि में ईश्वर के होने का दमदार हलफ़नामा है लता जी" क्या ही कमाल है देवी देवताओं ने क्या बोला था सिर्फ़ पुराणॊं में है.....हमारी लता दीदी के अमर स्वर तो साक्षात हवाओं में है........
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