चित्रपट संगीत जगत के तीन बहुत क्लिष्ट रचनाकारों की फ़ेहरिस्त बनाई जाए तो सलिल चौधरी,ह्रदयनाथ मंगेशकर के बाद तीसरा नाम बिल शक सज्जाद हुसैन का ही होगा. जैसी क्लिष्ट उनकी धुनें वैसा ही उनकी तबियत. सिवा लता मंगेशकर और नूरजहाँ उन्हें कोई गायिका रास ही नहीं आती थी. मालवा की पूर्व रियासत सीतामऊ (मंदसौर से लगभग ८० किमी दूर) दरबारी सितारियों के परिवार में जन्मे सज्जाद साहब को संगीत घुट्टी मे मिला. सितार,वॉयलिन जैसे कई वाद्यों में सिध्दहस्त सज्जाद हुसैन एक बेजोड़ मेंण्डोलिन वादक के रूप में भी प्रतिष्ठित थे. कहते हैं यह पाश्चात्य साज़ उनके हाथों में आकर कुछ और ही बन जाता था.
प्रस्तुत गीत में लताजी को जिस मासूमियत से सज्जाद साहब ने गवाया है वह सुनने से ही महसूस किया जा सकता है. श्रोता-बिरादरी आहूत लता स्वर उत्सव में सज्जाद साहब की यह मेलोड़ी लताजी के उस कारनामें की सैर करवाती है जिसमें वे शब्द को श्रेष्ठतम स्वरूप में बरतते हुए कविता पर धुन का वरक़ चढ़ा कर दमका देतीं हैं.
मालवा की सरज़मीन के संगीतकार की चर्चा हो रही हो तो पं.कुमार गंधर्व का स्मरण हो आना स्वाभाविक ही है. श्रोता बिरादरी की श्रोता निधि जैन ने सुनकारों के लिये सन २००४ में नईदुनिया में छपा लताजी पर कुमारजी का एक वक्तव्य भिजवाया है जिसका उपयोग आज की इस बंदिश के साथ करना यानी लता स्वर उत्सव के सुरीलेपन को दोबाला करना है.
कुमारजी कहते हैं ....
आज संजोग देखिये इस पोस्ट के बहान मालवा के तीन दिग्गजों का स्मरण हो गया है.लता मंगेशकर (जन्मस्थली:इन्दौर) सज्जाद साहब(सीतामऊ) और कुमार गंधर्व (देवास)
फिल्म सैयां
संगीत: सज्जाद हुसैन
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(अजातशत्रुजी के वक्तव्य लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय के प्रकाशन बाबा तेरी सोन चिरैया से साभार एवं फोटो Cineplot से साभार)
प्रस्तुत गीत में लताजी को जिस मासूमियत से सज्जाद साहब ने गवाया है वह सुनने से ही महसूस किया जा सकता है. श्रोता-बिरादरी आहूत लता स्वर उत्सव में सज्जाद साहब की यह मेलोड़ी लताजी के उस कारनामें की सैर करवाती है जिसमें वे शब्द को श्रेष्ठतम स्वरूप में बरतते हुए कविता पर धुन का वरक़ चढ़ा कर दमका देतीं हैं.
“लता मंगेशकर हमारे विशेषणों के आगे जाकर अपना चमत्कार दिखाती आईं हैं.उन्हें काया माना जाए यही भ्रम जैसा है.उनके कंठ में ईश्वर गाता है. नहीं नहीं;दुख-दर्द,ख़ुशी और माधुर्य जो कि भाव मात्र है,उनके कंठ से गाते हैं.लता में ’अनादि’ख़ुद गाता है,जिसका न ओर है न छोर.बल्कि लता की आवाज़ के रूप में परमात्मा की सुखद लीला है.
-अजातशत्रु
-अजातशत्रु
मालवा की सरज़मीन के संगीतकार की चर्चा हो रही हो तो पं.कुमार गंधर्व का स्मरण हो आना स्वाभाविक ही है. श्रोता बिरादरी की श्रोता निधि जैन ने सुनकारों के लिये सन २००४ में नईदुनिया में छपा लताजी पर कुमारजी का एक वक्तव्य भिजवाया है जिसका उपयोग आज की इस बंदिश के साथ करना यानी लता स्वर उत्सव के सुरीलेपन को दोबाला करना है.
कुमारजी कहते हैं ....
“मेरा स्पष्ट मत है कि भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका हुई ही नहीं.लता के कारण चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई. यही नहीं;लोगों का शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी बदला है. तीन घंटों की रंगदार महफ़िल का सारा रस लता की तीन मिनट की रचना में आस्वादित किया जा सकता है. संगीत के क्षेत्र में लता का स्थान अव्वल दर्ज़े के ख़ानदानी गायक के समान ही मानना पड़ेगा.क्या लता तीन घंटे की महफ़िल जमा सकती है ऐसा संशय व्यक्त करने वालों से मुझे भी एक प्रश्न पूछना है.क्या कोई पहली श्रेणी का कोई गायक तीन मिनट की अवधि में कोई चित्रपट गीत इतनी कुशलता और रसोत्कृष्टता से गा सकेगा.लता मंगेशकर चित्रपट संगीत क्षेत्र की अनभिषिक्त सामाज्ञी है.गानेवाले कई है लेकिन लता की लोकप्रियता इन सब से कहीं अधिक है.उसकी लोकप्रियता के शिखर का स्थान अचल है. ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है.”
आज संजोग देखिये इस पोस्ट के बहान मालवा के तीन दिग्गजों का स्मरण हो गया है.लता मंगेशकर (जन्मस्थली:इन्दौर) सज्जाद साहब(सीतामऊ) और कुमार गंधर्व (देवास)
फिल्म सैयां
संगीत: सज्जाद हुसैन
Download Link
(अजातशत्रुजी के वक्तव्य लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय के प्रकाशन बाबा तेरी सोन चिरैया से साभार एवं फोटो Cineplot से साभार)
1 टिप्पणियाँ:
उनके कंठ में इश्वर गाता है...
पढ़ कर यूं लगा
जैसे इबादत हो गयी हो,,, पूजा/अरचना हो गयी हो
लताजी के बारे में भरपूर आलेख पढ़ कर
आलौकिक आनंद मिला
गीत नहीं सुन पा रहा हूँ ..!?!
आभार .
"दानिश"
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