श्रोता-बिरादरी लता जन्म उत्सव के पहले गीत को पेश करते हुए अभिभूत है. यूँ लताजी के गीत सुनने के लिये किसी ख़ास मौक़े की ज़रूरत नहीं होती. क्योंकि जब यह पावन स्वर गूँज रहा हो तब हमारे कानों में उत्सव की आमद होना ही है. आज जब हम ट्विटर के 140 शब्द वाले युग में प्रवेश कर गये हैं;हमने तय किया कि आपके और लताजी के बीच में शब्दों की दीर्घ औपचारिकता आवश्यक नहीं. 28 सितम्बर तक कोशिश होगी कि श्रोता-बिरादरी अपने सुरीले श्रोताओं के साथ एक से बढिया एक गीत साझा करे. हर रंग का गीत इसमें शुमार करने का इरादा है और प्रति दिन आपको एक अलग संगीतकार की बंदिश सुनने को मिले ऐसा प्रयास रहेगा. इस उत्सव के लिये लिखी जाने वाले पोस्ट्स के अंत में लताजी के गायन और चित्रपट संगीत पर जादुई क़लम चलानेवाले जाने माने स्तंभकार और लेखक अजातशत्रु की टिप्पणी जारी की जाएगी. उम्मीद है अजातशत्रु के शब्द इन इस उत्सव की मधुरता को द्विगुणित करेंगे.
फ़िल्म: बड़ी बहू
वर्ष: 1951
गीतकार:प्रेम धवन
(लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय प्रकाशित पुस्तक “बाबा तेरी सोन चिरैया” से साभार)
लता जी का फोटो "चन्द्रकांता" से साभार
"लता के दर्दीले नग़में कलेजे का माँस तोड़ ले जाते हैं.उनकी कमसिन आवाज़ से जो मार्मिकता पैदा होती है,
हम में यह खेद पैदा करती है कि हाय ! हाय ! हमारे सामने से एक मासूम जीवन बर्बाद हो गया और हम कुछ न कर सके"-अजातशत्रु
हम में यह खेद पैदा करती है कि हाय ! हाय ! हमारे सामने से एक मासूम जीवन बर्बाद हो गया और हम कुछ न कर सके"-अजातशत्रु
लता स्वर उत्सव 2011 प्रथम रचना संगीतकार अनिल विश्वास की है. अनिल दा वह पहले व्यकि हैं जिन्होंने लताजी को मराठी नाट्य संगीत और मलिका-ए- तरन्नुम के प्रभाव से मुक्त किया. अच्छी कविता और उसमें संगीत का विलक्षण प्रभाव अनिल दा की ख़ासियत रही है. यहाँ प्रस्तुत ग़ज़ल प्रेम धवन की रची हुई है
जिनकी अनिल दा के साथ बढ़िया समझ रही. सिने संगीत जगत में अनिल विश्वास का वह दर्जा है जो अदाकारी में अशोककुमार का.दोनो गरिमामय,परिष्कृत और बौध्दिक-मानसिक तौर पर एकदम स्तरीय.अनिल विश्वास के संगीत की सबसे बड़ी ख़ासियत रही है भद्रता,मिठास,मेलोड़ी के साथ कुछ नया और अनोखा रच देने का जुनून. प्रस्तुत गीत में देखिये हवाइन गिटार से उपजा आलाप कैसी बेचैनी पैदा कर रहा है और उसे परवाज़ देती है लताजी की पवित्र आवाज़.
अनिल विश्वास-लता मंगेशकर की जुगलबंदी से उपजे मोतियों की लड़ी में दमकता ये मोती...
फ़िल्म: बड़ी बहू
वर्ष: 1951
गीतकार:प्रेम धवन
(लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय प्रकाशित पुस्तक “बाबा तेरी सोन चिरैया” से साभार)
लता जी का फोटो "चन्द्रकांता" से साभार
10 टिप्पणियाँ:
bahut achchhee post hai..Geet to lajawab hai hi...Lata ji ki yeh tasveer behad khubsurat lagi.
bahut hi madhur shuruaat.
लता जी के जन्मदिन पर यह अनोखा उपहार अद्भुत है उम्मीद है कि लताजी को भी आप का यह प्रयास अद्भुत लगेगा .बाबा तेरी सों चिरया में जो गीत सिर्फ पढने को मिले वे अब सुनाने को भी मिलेंगे . ईस अनूठे प्रयास के लिए शुभकामनाएं
और ! और !!
लता जी के सुरॊ के अंतराल पर अपने दोनो घुटने मोड कर सवारी कर ली है बस अब उनके आलाप,तान,मुरकियो पर तैर रहा हुं.......बडा ही विस्मयकारी संसार है यहां कहीं कोई सितार की स्ट्रिंग पास से गुजरती है तो कहीं एकार्डियन गुदगुदी कर जाता है...तबले की तिहाई ,ढोलक की थाप चौंका देती है....बीच में हवाई गिटार का पीस ढकेल देता है....वही से वायलिन का कारवां तेजी से लता जी की आवाज के पास छोड आता है....ये सारे वाद्य उत्सवी नाद में रंगे है कि कैसे-कैसे लताजी का "स्वर-जन्म" मनाया जाए....अब ऐसे में कौन उतरे इन सुरो की सवारी से.....बस उनिंदा सा हूं.......
आपका तीनो महानुभावो का बहुत-बहुत स्वरीला धन्यवाद!
हम तो फिलहाल गीत सुनने का आनंद ले रहे हैं. सुझाव बस इतना सा है कि यहाँ भरसक ऐसे गाने पोस्ट किये जाएँ, जो कम सुने गए हों या गैर फ़िल्मी सुगम संगीत.
श्रोता बिरादरी पर ये प्रस्तुति स्वागत योग्य है. लता जी के पचपन से पहले के गीत (अनिल बिस्वास, हुस्नलाल भगतराम, सी रामचन्द्र, सजाद हुसैन, खेमचन्द्र प्रकाश, सुधीर फड़के) कम लोकप्रिय हैं मगर उनकी आवाज़ का जादू और असर उन गीतों में, बाद के गीतों से कहीं ज्यादा है..
(पुस्तक पढ़ी है कई बार..अजातशत्रु का आकलन उम्दा है मगर लेखन में एकरसता है.)
कितना खूबसूरत गाना है... पहली बार सुना! लगता है लता उत्सव में ऐसे अनसुने मगर बेहतरीन गाने सुनने को मिलेंगे !
मौसम वैसे ही आशिकाना हो रहा है, ऊपर से ये सुरीली फ़ुहारें. कौन ना मर जाये ए खुदा. वाह
यहाँ आई....पहली बार और....यहीं की हो कर रह गई.अब तक क्यों नही बताया इस ब्लॉग के बारे में मुझे? लताजी के लिए शब्द नही है मेरे पास.आँखे बंद कर बस सुनती रहूँ.कुछ न बोलू... एक स्वर्गिक आनंद...परमान्द की अनुभूति होती है इनके कुछ गीतों को सुन कर तो.
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