पहले एक वाक़या इस गीत के बारे में सुन लें बाद
में इस गीत में महदूद मिठास की बात.
साहिर लुधियानवी पूरे देश में एक शायर के रूप में अपनी ख़ास पहचान रखते थे. नज़्मों,नग़मों और ग़ज़लों के ज़रिये साहिर साहब ने हमेशा चित्रपट गीतों की गरिमा में इज़ाफ़ा किया. चित्रलेखा की भावभूमि एक भारतीय राजवंश और उसकी राजनर्तकी की थी.आपको याद होगा कि यह भगवतीचरण वर्मा का लिखा उपन्यास था.. बीते दौर में भी मनुष्य की फ़ितरतें तो वहीं थीं जो आजकल है ; यानी लॉबिंग,ईर्ष्या,द्वेश.किसी ने चित्रलेखा के निर्माता के कान भर दिए कि साहिर साहब तो उर्दू के शायर हैं और वे तो गीत लिख ही नहीं सकते वे तो ग़ज़ल के खिलाड़ी हैं.लिखेंगे भी तो उर्दू शब्दों का ताना-बाना रचकर..इस लिहाज़ से इस फ़िल्म का जो बैकड्रॉप है वह तो साकार ही नहीं होगा .जनाब गीत ही तो तय करेंगे इस फ़िल्म का भविष्य.निर्माता ने संगीतकार रोशन से बात की.
रोशन साहब बोले मैं तो साहिर साहब के अलावा किसी और से इस फ़िल्म का काम ही नहीं करवा सकता और जो आपको ये मशवरा दे रहे हैं उनसे पूछिये तो कि किससे लिखवाऊँ चित्रलेखा के गीत.निर्माता बोले मेरे पास भरत व्यास,शैलेन्द्र और कवि प्रदीप के नाम आए हैं.रोशन साहब ने कहा हुज़ूर ये अपने इलाक़े के बड़े नाम हैं और मैं ख़ुद इन सब की ख़ासी इज़्ज़त करता हूँ लेकिन इस फ़िल्म में मेरे संगीत को जिस तरह की कहन की ज़रूरत है ये सारे नाम उस साँचे में फ़बेंगे नहीं. जब बात हाथ से जाने लगी तो रोशन साहब ने निर्माता को सुझाया कि बेहतर होगा आप संगीतकार ही बदल दें.निर्माता को लगा बात अब बिगड़ गई है और कहा रोशन साहब आपकी जो मर्ज़ी मे आए कीजिये पर ये जो इल्ज़ाम है कि चित्रलेखा में साहिर जैसा शायर गीत कैसे लिखेगा ; इसका क्या
करेंगे.रोशन साहब ने कहा मुझ पर छोडिये ये सब.
शाम को रोज़ की तरह साहिर , रोशन साहब के म्युज़िक रूम में नमूदार हुए.रोशन ने पूरा माजरा बताया और कहा साहिर भाई अब सारी ज़िम्मेदारी आपकी है. कहते हैं रोशन साहब नें साहिर के लिये रस-रंजन का इंतज़ाम किया और कहा आज रात यहीं रूककर आप गीत पूरे कीजिये.साहिर साहब ने भी चैलेंज क़ुबूल किया और देखिये क्या बात बनी है.कई लोगों को ये ग़लतफ़हमी रहती है कि गीत साहिर नहीं किसी और के लिखे हुए हैं.साहिर साहब ने चुनौती के रूप में इन गीतों को रचा है.अब आप ही श्रोता-बिरादरी की दूसरी पायदान पर प्रस्तुत इस गीत पर कान लगाइये तो और महसूस कीजिये की हिन्दी गीती परम्परा का कितना अनमोल गीत है यह .एक एक शब्द हीरे जैसे तराशा सा. शब्दकोश में छपने से शब्द और भाषा समृध्द नहीं होती . उसे चाहिये अच्छी कविताओं,गीतों,अफ़सानों और निबंधों का आसरा.ये काम कवि और साहित्यकार ही करता है. फ़िल्म संगीत को इस लिहाज़ से बहुत ज़्यादा श्रेय नहीं दिया जाता कि उसने भाषा की कोई सेवा
की है लेकिन जब ’छा गए बादल’जैसे गीत कान पर पड़ते है तो चित्रपट संगीत के आलोंचकों के कान के जाले झड़ जाते हैं . ये गीत साहित्य की नई इबारत रचता सा मालूम होता है.
अब थोड़ी चर्चा रोशन साहब की.कम लोगों को मालूम है कि वे लख़नऊ के मैरिस कॉलेज के विद्यार्थे रहे थे.राग-रागनियों का उजास उनकी रचनाओं का स्थायी भाव है. कविता की लाजवाब समझ वाले इंसान थे रोशन साहब.पढ़ने लिखने वालों से अच्छी सोहबतें थीं उनकी.रोशन संगीत के पंजाब स्कूल की रिवायत की नुमाइंदगी करते थे लेकिन अपनी मौलिकता को भी बरक़रार रखते. उनकी यह बंदिश एक कालजयी रचना ही नहीं बल्कि संगीत और कविता का एक अज़ीम दस्तावेज़ कहिये इसे.
रफ़ी.आशा जब साथ साथ हों तब पूरा आलम जैसे ख़ूशबूदार हो उठता है. युगल गीत गाते समय इन दोनों में
किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नहीं एक सुहाना संगसाथ सुनाई देता है. मानो एक दूसरे के हुनर को तस्लीम कर रहे हैं.आशा-रफ़ी शब्द प्रधान गायकी के महारथी गूलूकार हैं.रोशन साहब की इस धुन में कहीं कोई ताने , हरकतें नहीं हैं...एकदम सादा मिज़ाज की कम्पोज़िशन है.कम से कम वाद्य हैं.
हरिप्रसाद चौरसिया की बाँसुरी फ़ॉलो भी कर रही है और इंटरल्यूड (स्थायी और अंतरे के बीच का संगीत) भी बन रही है.जहाँ गायन हो रहा है वहाँ तबला है और जैसे ही वॉयलिन्स का कोरस है या इंटरल्यूड तो सादा ढोलक चल पड़ी है.एक बात ये भी नोट करने की
है कि आशा-रफ़ी ने इस गीत में अपनी आवाज़ को एक सॉफ़्टनेस देकर अपने को अपेक्षाकृत अधिक युवा साबित किया है.
कविता,संगीत और गायकी के लिहाज़ से यह एक अमर गीत हैं लेकिन कम सुना गया है, गोया अंडर प्ले हुआ सा लगता है.ये एक ख़ालिस हिन्दुस्तानी गीत है जिसमें हमारी संस्कृति,पावनता और गरिमा का दीदार है.इन्हीं गीतों की उंगली पकड़कर तो हम अपनी उदात्त तहज़ीब के गंगाजल में स्नान सा सुख पा लेते हैं.
और चलते चलते उस क़िस्से को याद कर लीजिये जिससे हमने अपनी बात शुरू की थी और
साहिर साहब को प्रणाम करते हुए यह प्रश्न कि क्या इस महान शायर को नील-गगन,बेचैन,रैन,ह्र्दय,स्वपन,कजरा, सांझ,व्याकुल और दीप जैसे हिन्दी शब्दों के उर्दू पर्याय नहीं मालूम थे ?आप मेरा इशारा समझ गए न ?
यहां आपको ये भी बताते चलें कि हिंदी सिनेमा में चित्रलेखा के साथ एक दुर्लभ तथ्य जुड़ा हुआ है । केदार शर्मा ने चित्रलेखा के नाम से सन 1941 में एक फिल्म बनाई थी । जिसमें मेहताब थीं । संगीत झंडे खां और ए0एस0ज्ञानी का था । सन 1964 में उन्होंने फिर से चित्रलेखा बनाई । एक ही निर्देशक ने ऐसा शायद ही कभी किया होगा । चित्रलेखा संगीकार रोशन के करियर की भी एक बेहद महत्त्वपूर्ण फिल्म थी । और इसके संगीत ने रोशन को भी कालजयी बना दिया था । तो चलिए रोशन, साहिर, रफी, आशा सबको सलाम करते हुए सुनें ये गीत । चलते चलते इतना कहना चाहूंगा कि आज के गीतकारों ने कजरा, बादल और सांझ जैसे शब्दों को अपने सस्ते गीतों में कितना डी-ग्रेड कर दिया है । गीत ऐसे भी हुआ करते थे । इस गाने को फुरसत निकालकर यू ट्यूब पर देखें ।
छा गये बादल नीलगगन पर घुल गया कजरा सांझ ढले
देख के मेरा मन बेचेन
नैन से पहले हो गयी रैन
आज हृदय के स्वप्न फले
घुल गया कजरा सांझ ढले ।।
रूप की संगत और एकांत
आज भटकता मन है शांत
कह दो समय से थमके चले
घुल गया कजरा सांझ ढले ।।
अंधियारों की चादर तान
एक होंगे दो व्याकुल प्राण
आज ना कोई दीप जले
घुल गया कजरा सांझ ढले ।।
Sunday, July 6, 2008
रोशन का कालजयी गीत : छा गए बादल नील गगन पर घुल गया कजरा शाम ढ़ले.
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8 टिप्पणियाँ:
वाह ! अनमोल गीत है साहब. साहिर सच में "साहिर" थे. उन का सानी नहीं. इसी फ़िल्म का एक गीत मैं ने पोस्ट किया था वो भी कमाल का है. गीत यहाँ है :
http://kisseykahen.blogspot.com/2008/03/blog-post_04.html
आज सुबह सुबह ये गीत सुनवा दिया, बहुत बहुत शुक्रिया.
वाह इतनी अच्छी जानकारी के साथ इतना सुंदर गीत ..बहुत अच्छा लगा .शुक्रिया
बेहद विकल होते हुए भी आपकी प्रस्तुति को सुन/देख नहीं पा रहा। संभवतः कोई टेक्नीकल प्राब्लम है। कोई महानुभव बताएं कि मुझे क्या करना होगा?
मेरा मतलब है कोई प्रोग्राम तो लोड नहीं करना होगा मुझे??
कृपया...
अवधेश प्रताप सिंह
इंदौर, 98274 33575
geet to abhi nahin suna par aapne iske peeche ki jaankari yahan rakhi hai use padh kar man abhibhoot ho gaya.
asha hai ye safar isi terah hum sab ka gyan badhata rahega.
Your selection of a song is superb, the info behind meking of it is very interesting,the hindi writings are just excellent.
How gorgious looking is Meenaji. Pradipji is well known for his king looking characters.
Overall a "Surila Silsila ki Shuruaat".
Thanx for the pain you are taking for all of us.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
चाशनी जैसा मीठा गीत और उससे सवाई उसकी कमेंट्री ..सुरों का ये सिलसिला जारी रहे.
बहुत बढिया.....ईस फिल्न का जोगी जाओगे कहां ...हो सके तो सुनवाईए।
यह गीत किस राग पर आधारित है
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