मित्रो;
नमस्कार। सावन के भीगे भीगे मौसम में ये ख़ुशख़बर आपको देते हुए अपार प्रसन्नता है। एक लम्बे समय की ख़ामोशी के बाद आपका सुरीला और मनपसंद ब्लॉग श्रोता-बिरादरी फिर शुरू हो रहा है. अब ये क्यों बंद रहा और एकदम क्यों शुरू हो गया ये ना पूछिये....ज़िन्दगी है..और उसके पीछे हज़ार ज़िल्लतें,विवशताएं और अड़चनें।
बहरहाल ! श्रोता-बिरादरी फिर मुख़ातिब हो रही है. और एक नेक बहाना बनी है मोहम्मद रफ़ी साहब की याद। जुलाई का महीना और इसकी ३१ तारीख़ हम सबको इस सर्वकालिक महान गायक की रूहानी स्मृतियों की सैर करवाती है। सोचा रफ़ी साहब को याद करते हुए ही श्रोता-बिरादरी की जाजम बिछा दी जाए। रफ़ी साहब का चित्रपट संगीत इतना सुदीर्घ और विस्तृत है कि उसमें क्या चुना जाए....और क्या नहीं, दुनिया का सबसे मश्किल काम है।
सो श्रोता-बिरादरी की स्वरांजली कुछ अलग ही है और इसमें फ़िल्मी गीतों से अलहदा कुछा ग़ैर फ़िल्मी गीतों का शुमार किया गया है. हो सकता है इस बहाने कई नये श्रोता मो. रफ़ी के इस फ़न से रूबरू हों। तो साथ बने रहियेगा..
श्रोता बिरादरी आपकी मुहब्बत की मुंतज़िर है।
यूनुस ख़ान, सागर नाहर, संजय पटेल
10 टिप्पणियाँ:
intezaar rahega
श्रोता बिरादरी की मुहब्बत के हम मुंतज़िर हैं ....
खुशामदीद.......
"Mitron" ... aur "Fir" shabd bahut akhrey. Ye "Mitro" aur "Phir" hone chahiye.
सागर भाई,अज्ञात भाई की बात ठीक है.मेरी टायपिंग ग़लती को ठीक कर दें जिससे मित्रो को फिर नहीं अखरे...
अरे वाह!
धन्यवाद यूनुस भाई, पटेल साहेब और सागर जी आप सबका,
श्रोता बिरादरी की रफ़ी साहेब से जुड़ी और अन्य आनेवाली सभी कड़ियों का स्वागत और आगामी पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी,
आभार सहित,
अवध लाल
पुनश्च: anonymous जी या अज्ञात भाई की यह बात तो सही है कि सही वर्तनी 'फिर' (phir) है 'फ़िर' (fir) नहीं.
पर दूसरी तरफ़ उच्चारण के हिसाब से 'मित्रों'(mitron' ही उचित लगता है 'मित्रो'(mitro) ग़लत है.
agyaatji(anonymous)aap ki ye bhasha sajagata purvagrah se nahi hai to theek hai kyonki hindi ki vartani ko lekar jo durdasha blog aur akhbaroN ki duniya me ho rahi hai vaha aap jaise chaukidar ki sakht zaroorat hai.avadhji ne jo kaha vah sahi hai ki mitroN hoga,mitro nahi..
वाह स्वागत है
bahut khoob, hamesha intzar rahega
wah!
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