पिछले कई दिनों से लगातार संदेश आ रहे थे कि श्रोता-बिरादारी क्यों निष्िक्रिय हो गया । इसे फिर से सक्रिय किया जाए । दरअसल श्रोता-बिरादरी की महफिलें दीपावली के बाद से थोडी अनियिमित हुई हैं पर अब कोशिश यही रहेगी कि इस मंच से सुर लगातार छेड़े जाते रहें । और कुछ ऐसे गाने आपको सुनवाए जाएं जिनकी वजह से श्रोता-बिरादरी आपकी जिंदगी का ज़रूरी हिस्सा बन जाए ।
पिछले दिनों मुंबई में जाने-माने रिकॉर्ड संग्रहकर्ता सुमन चौरसिया की पुस्तक का विमोचन किया हुआ । सुमन चौरसिया को अगर आप ना जानते हों तो पहले उनका परिचय करा दिया जाए । इंदौर के नज़दीक राऊ के गांव पिगडंबर में रहने वाले सुमन चौरसिया देश के जाने माने रिकॉर्ड संग्रहकर्ता हैं । उन्होंने अपना तन मन धन रिकॉर्ड जमा करने में लगा दिया है ।
सुमन चौरसिया के संग्रहालय से लता जी के अस्सीवें जन्मदिन पर अस्सी गीत चुने गए और जाने माने गीत समीक्षक अजातशत्रु ने उनकी मीमांसा
की । कुल मिलाकर इस पुस्तक में साढ़े पांच सौ पेज हैं और है गीतों के इतिहास का अनमोल ख़ज़ाना । अरे मैंने आपको इस पुस्तक का नाम तो बताया ही नहीं । 'बाबा तेरी सोनचिरैया' ।
जब मुझे इस पुस्तक का नाम पता चला तभी से दिमाग़ में घंटी बज रही थी कि हो ना हो ये किसी गाने का मुखड़ा है । आखिरकार इंटरनेट पर खोजा तो ये गीत मिल गया । सन 1956 में आई फिल्म आवाज़ का गीत है ये संगीत सलिल चौधरी का है । और गीत शैलेंद्र का । ये फिल्म जिया सरहदी ने बनाई थी ।
आईये ये गीत सुनें और वैसे सुनें जैसे सुना जाना चाहिए ।
मुझे लगता है कि ये गीत शैलेंद्र के सिवाय और कोई लिख ही नहीं सकता था । जाने कितने घरों में बेटी को लाड़ से दादा दादी सोन चिरैया और मैना पुकारते रहे हैं । ये हमारी परंपरा का और हमारी मान्यताओं का हिस्सा रहा है । बेटी की विदाई के कातर पल और उन पलों का उजाड़ दुख, शैलेंद्र बता रहे हैं कि कैसे बेटी के जाने से घर ही नहीं........पनघट ताल तलैया सब सूने हो जायेंगे । सलिल दा ने इस गाने का अद्भुत संयोजन किया है । लगता है हमारे गांव-घर का कोई लोकगीत है जिसके कच्चेपन को 'पका' दिया गया है । लता जी की आवाज़ के तो कहने ही क्या । जिस तन्मयता और जिस इनवॉल्वमेन्ट से लता जी ने इस गीत को निभाया है उसने इस गाने को अनमोल बना दिया है ।
आईये सुनें और सोचें कि ये गीत 'बाबुल की दुआएं लेती जा' जैसा लोकप्रिय क्यों नहीं हआ ।
बाबा तेरी सोनचिरैया, जावै अनजाने की नगरिया ।
कौन देस से ये सौदागर आया
सोने का पिंजरा दिखला के मैना को ललचाया
सूने भए पनघट ताल तलैया
बाबा तेरी सोनचिरैया ।।
जान बूझ के दिल का बंधन का तोड़ा
अनजाने से नाता जोड़ा साथ हमारा तोडा
रोवत बहना रोवत भैया
बाबा तेरी सोन चिरैया ।।
10 टिप्पणियाँ:
इस श्रंखला को पुन: प्रारंभ करने का शुक्रिया!
नव वर्ष की शुभकामनायें।
नव वर्ष की शुभकामनायें.
आपका स्वागत. जिसे आदर्श मानकर इस राह पर चले थे, उस पथ प्रदर्शक को फिर पाया, खूब पाया.
गीत लाजवाब है.परिवार के नाज़ुक और भावुक रिश्तों का ये बाबुल गीत मन द्रवित कर देता है.
निस्सन्देह गीत सुन्दर, मीठा और मोहक है । किन्तु इसमें 'विदाई की पीडा' के स्थान पर उल्लास और प्रसन्नता अधिक है । शायद नहीं, निश्चय ही इसी कारण यह गीत, 'बाबुल की दुआएं लेती जा' जैसा लोकप्रिय नहीं हुआ ।
हां, स्थगित क्रम निरन्तर करने हेतु धन्यवाद ।
Sanjaybhai
Welcome back.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
suman chaursiya ji ki jankari k liye shukriya
behad surila blog hai ..sur me le aaya mujhe bhi.
अजातशत्रु जी की पारखी नज़र और
गीत चयन की मैँ भी फैन हूँ
- ये पुस्तक वाकई बढिया होगी
और विष्णु बैरागी जी के लिखे से मैँ भी सहमत हूँ -
इस गीत मेँ उल्लास है
विदाई का दर्द कम है
कोई अनब्याही कन्या ,
अनजाने मेँ बाबा को चिढा रही हो
ऐसा लगता है :)
- गीत के भाव मासूम हैँ
सुनवाने का और पुन: दर्शन देने के लिये
शुक्रिया जी :)
स्नेह सहित
- लावण्या
अब तो काफी दिन हो गए सोते-सोते। विरादरी के लिए जाग जाइए।
हमें भी ये बात समझ में नहीं आई।
कैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
नयों को हौसला भी दो, फकत ग़लती ही ना ढूँढो
बड़े शाइर का भी हर इक शिअर आला नहीं होता
बिलकुल सही कहा आपने
हर नए लिखने वाले को
प्रोत्साहन मिलता रहना चाहिए ....
आपकी रचना बहुत पसंद आई .... मुबारकबाद !
Post a Comment