tag:blogger.com,1999:blog-1756501962577338784.post3919657096093174121..comments2023-06-28T13:48:07.003+05:30Comments on श्रोता बिरादरी: लता/८०: स्वर उत्सव: ग्यारहवीं कड़ी: नैन सौं नैन नाही मिलाओ-पं वसंत देसाईयूनुस खान, संजय पटेल, सागर चन्द नाहरhttp://www.blogger.com/profile/13435133372033558713noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1756501962577338784.post-31400794045218396962008-09-25T21:31:00.000+05:302008-09-25T21:31:00.000+05:30I totally agree with Dilipbhai-it is an extremely ...I totally agree with Dilipbhai-it is an extremely memorable duet of old time.The picturisation of the song was done in Mysore garden and after the release of the movie, the visitors to this beautiful garden increased to manifolds.<BR/>Thanks for the wonderful presentation.<BR/>-Harshad Jangla<BR/>Atlanta, USAHarshad Janglahttps://www.blogger.com/profile/00844983134116438245noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1756501962577338784.post-33749093700431608922008-09-24T20:10:00.001+05:302008-09-24T20:10:00.001+05:30स्व. व्ही शांतारामजी की फिल्मोंमें वसंत देसाई के अ...स्व. व्ही शांतारामजी की फिल्मोंमें वसंत देसाई के अलावा स्व सी. रामचंदजी का भी काफ़ी फिल्मोंमें योगदान रहा है और जल बीन मछली नृत्य बीन बिजली का संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलालजी का था । गीत गाया पथ्थरोंने तथा सेहरा में रामलालजी, बूंद जो बन गये मोतीमें सतीश भाटीया का संगीत था । <BR/><BR/>पियुष महेता ।<BR/>सुरत-395001Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1756501962577338784.post-30396127942702343432008-09-24T20:10:00.000+05:302008-09-24T20:10:00.000+05:30स्व. व्ही शांतारामजी की फिल्मोंमें वसंत देसाई के अ...स्व. व्ही शांतारामजी की फिल्मोंमें वसंत देसाई के अलावा स्व सी. रामचंदजी का भी काफ़ी फिल्मोंमें योगदान रहा है और जल बीन मछली नृत्य बीन बिजली का संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलालजी का था । गीत गाया पथ्थरोंने तथा सेहरा में रामलालजी, बूंद जो बन गये मोतीमें सतीश भाटीया का संगीत था । <BR/><BR/>पियुष महेता ।<BR/>सुरत-395001Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1756501962577338784.post-47814498841424989592008-09-24T11:05:00.000+05:302008-09-24T11:05:00.000+05:30सौदंर्य के साथ माधुर्य की जुबलबंदी...कितना चोख और ...सौदंर्य के साथ माधुर्य की जुबलबंदी...<BR/><BR/>कितना चोख और खालिस जुमला है ये. यह गीत तो फ़िल्म संगीत के इतिहास में बने सर्वश्रेष्ठ युगल गीतों की फ़ेहरिस्त में अग्रिम पंक्ति में रखने लायक है.<BR/><BR/>हसरत जयपुरी साहब, जिनकी पुण्यतिथी १७ सेप्टेम्बर को थी, ऐसे गीत रच जायेंगे यह हम कल्पना नही कर सकते, क्योंकि उनका झुकाव उर्दु आधारित शब्दों पर ज़्यादा था.(उनपर मेरा आलेख मेरे ब्लॊग पर)<BR/><BR/>उन दिनों की पावनता , platonic traits, आज कहां दिखेगी? जहां मात्र सूरत देखने से भी नायिका को लाज आती है.इस मधुर मिलन के सदके.<BR/><BR/>मुझे याद आ रहा है वह वक्तव्य, जिसे आप की टीम के एक सदस्य श्री संजय पटेल नें कहीं किसी कार्यक्रम की एंकरिंग के समय कही थी.कोशिश करूंगा वही पंक्तियां आप तक पहूंचाऊं , जो अपने आप में भी एक साहित्यिक वज़न लिये हुए है.दिलीप कवठेकरhttps://www.blogger.com/profile/16914401637974138889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1756501962577338784.post-61413280298355230272008-09-24T10:58:00.000+05:302008-09-24T10:58:00.000+05:30पंसदीदा गानों में से एक है यह मेरे ..जितना सुंदर य...पंसदीदा गानों में से एक है यह मेरे ..जितना सुंदर यह गाया गया है उतना ही सुंदर इसको फिल्माया भी गया हैरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.com