Sunday, October 12, 2008

कई किशोर कुमार प्रेमी पहली बार ही सुनेंगे ये मार्मिक ग़ैर फ़िल्मी गीत

बलिहारी हो आपकी सुमन भाई (श्री सुमन चौरसिया) कैसी अदभुत और सुरीली सौग़ात दे दी आपने आज किशोर कुमार प्रेमियों के लिये. सबसे पहले श्रोता बिरादरी के असंख्य श्रोता-पाठकों की ओर से साधुवाद स्वीकारें.उम्मीद है आपसे ऐसे ही कई अनमोल हीरे उपहार के रूप में संगीतप्रेमियों को मिलते रहेंगे.
श्रोता-बिरादरों,  

किशोर कुमार । इस नाम के साथ कौन सी तस्‍वीर उभरती है आपके दिल में । एक मसखरे की । एक खिलंदड़ व्‍यक्ति की । एक ऐसा व्‍यक्ति जो बेहद जिंदादिल था और शरारतों का हिमालय था । जिसके स्‍क्रीन प्रेजेन्‍स के 
सामने अच्‍छे अच्‍छे कलाकार 'नरभसा' जाते थे । ऐसा क्‍यों है कि किशोर कुमार को सामान्‍य श्रोता और दर्शक केवल और केवल हास्‍य-कलाकार के रूप में याद करते हैं । मीडिया में किशोर दा का सही आकलन नहीं किया गया । सभी ने कहा कि वो बहुत मज़ाकिया थे, अपनी तरंग में रहते थे वग़ैरह वग़ैरह । पर उस भाई के बारे में सोचिए जो अपने दादामुनि के कहने पर उनके घर पर गाना गा रहा है 'जिंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं'। दादा मुनि अपनी पत्‍नी के जाने से दुखी हैं । 
जिंदगी के एकाकीपन को महसूस कर रहे हैं । और दादा‍मुनी के जन्‍मदिन पर उन्‍हें अकेला देखकर किशोर उनके घर उनकी फ़रमाईश पर 13 अक्‍तूबर के दिन गा रहा है--'जिंदगी का सफ़र'। ये वही किशोर है जो मुंबई की भागदौड़ से वापस लौटना चाहता है । जिसे फिल्‍म उद्योग के नकली रिश्‍तों से ऊब हो गयी है । जिसे खंडवा पुकार रहा है । पर बंबई उसे रोक रहा है । बंबई और खंडवा की खीचमतान में एक दिन काल अपनी चाल चलता है और किशोर कुमार को ईश्‍वर अपने पास बुला लेते हैं । वही किशोर जिससे दादामुनि अपने जन्‍मदिन पर 'सफर' का वो गीत सुनते थे, 
दादामुनि के जन्‍मदिन को ही दुनिया से गया । कैसी विडंबना थी ये । 

13 अक्टूबर 1987 को किशोर दा हमसे बिछुड़े,यानी कल उनकी बीसवीं बरसी होगी.मित्रों क्या लगता है कि यह हरफ़नमौला और ज़िन्दादिल कलाकार हमारे बीच से अनुपस्थित है.उनके गीतों का जादू ही कहिये कि गुज़रे पच्चीस बरसों में संगीत का रंग,तेवर और मिज़ाज बदल गया होगा लेकिन किशोर कुमार कभी अप्रासंगिक नहीं हुए. ख्यात स्तंभकार और गुज़रे ज़माने के संगीत टीकाकार श्री अजातशत्रुजी एक जगह लिखते हैं.....किशोर कुमार जैसा इंन्टेलीजेंट, अलर्ट,फ़ुर्तीला गायक कलाकार आज तक नहीं हुआ.फ़िल्म आराधना के बाद अगर किशोर कुमार युवावर्ग पर छा गए तो इसलिये कि उनकी आवाज़ में ग़ज़ब का खिलंदड़पन था,ग़ज़ब की उर्जा थी और ग़ज़ब की उन्मुक्तता थी.

आज श्रोता बिरादरी पर सुनाया जा रहा गीत राजा मेहंदी अली ख़ाँ ने लिखा है और संगीतबध्द किया है भोला श्रेष्ठ ने जो अपने ज़माने के लाजवाब अरेंजर थे.उनकी बेटी सुषमा श्रेष्ठ ने एक ज़माने में मम्मी बोलो बोलो...पापा बोलो बोलो,मम्मी को पापा से पापा को मम्मी से प्यार है गाकर धूम मचा दी थी. बाद में यही सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा के नाम से पार्श्वगायन करने लगीं

बहरहाल किशोर दा ने इस गीत में एक ग़ज़ब का दर्द सिरजा है. निसंदेह इस दौर में के.एल.सहगल और पंकज मलिक का स्वर फ़िजाँओं में गूँज रहा था जिसका असर किशोर दा की आवाज़ पर भी नज़र आ रहा है.सादी सी धुन है जिसके अंतरों में भी एकरूपता है और राजा साहब के शब्द हमेशा की तरह बेजोड़ शायरी का पता दे रहे हैं.लेकिन इस रचना में किशोर कुमार की गायकी अपनी पराकाष्ठा पर है.सनद रहे कि ये किशोर दा की गान-यात्रा के एकदम शुरूआती दौर का गीत है लेकिन दर्द को उकेरने हुनर बेमिसाल है. हाँ ये ज़रूर कहना चाहेंगे कि किशोर कुमार को सुनते वक़्त हमेशा ध्यान रखें कि इस कुदरती कलाकार ने कभी किसी उस्ताद से तालीम हासिल नहीं कि और गली-मुहल्ले के गवैये की तरह शुरूआत कर देश के शीर्षस्थ पार्श्वगायक के रूप में बेहिसाब शोहरत हासिल की.

भूलने वाले मुहब्बत का ज़माना याद कर
आ मेरी उजड़ी हुई दुनिया को फ़िर आबाद कर,


फूल मुरझा हुए हैं और रोती है बहार
जाने वाले ढूँढती है तुझको आँखे बार बार
आँख कहती है कि रो
कहता है दिल फ़रियाद कर

बाग़ में बेताब देखा है बहारों ने मुझे
रात को बेख़्वाब देखा है सितारों ने मुझे
दिल तो ऐसी ज़िन्दगी की क़ैद से आज़ाद कर

याद तेरी जा नहीं सकती दिले बरबाद से
पहले तुझसे थी मुहब्बत अब है तेरी याद से
मेरे अरमानों की दुनिया शौक़ से बरबाद कर



किशोर दर्द की गाढ़ी आवाज़ । किशोर उमंग की उछलती आवाज़ । किशोर प्रेम की उन्‍मत्‍त आवाज़ । कितने रूप थे, कितने रूप हैं किशोर के । किशोर दा....हम तुम्‍हें भूल ना पाएंगे । किशोर दा तुम एक ध्रुव तारे की तरह हमारी तन्‍हाईयों को रोशन करते रहोगे । 

Saturday, October 11, 2008

कल सुनिये किशोर कुमार का एक दुर्लभ ग़ैर-फ़िल्मी गीत

श्रोता-बिरादरी का सौभाग्य है कि जाने माने ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संकलनकर्ता श्री सुमन चौरसिया के सौजन्य से किशोर कुमार प्रेमियों के लिये एक दुर्लभ ग़ैर-फ़िल्मी रचना
सुनवाने जा रही है. आपकी जानकारी के लिये बता दें कि सुमन भाई म.प्र.की सांस्कृतिक
राजधानी इन्दौर के उप-नगर पिगडम्बर में रहते हैं और तक़रीबन 28,000 ग्रामोफ़ोन
रेकॉर्ड्स के संकलनकर्ता हैं.अभी अभी गए भारतरत्न लता मंगेशकर के जन्म दिन(28 सितम्बर) की पूर्व संध्या पर उन्होंने अपने निवास को लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय के रूप में तब्दील कर दिया है. सुमन भाई ने श्रोता-बिरादरी के संगीतप्रेमियों के लिये एक सौग़ात के रूप में यह रचना उपलब्ध करवाई है जिसके लिये आप-हम सभी उनके आभारी है. 13 अक्टूबर को किशोर दा की पुण्यतिथि है सो एक दिन पहले इस रचना को सुनना वाक़ई रोचक होगा.

रविवार 12 अक्टूबर की सुबह के नौ बजे के आसपास श्रोता-बिरादरी ज़रूर तशरीफ़
लाएँ और सुनें ये अनमोल गीत

Sunday, October 5, 2008

इसे कहते हैं कविता और सुरों का लालित्‍य-- श्‍यामल श्‍यामल बरन कोमल कोमल चरण-

पिछले शनिवार को पार्श्‍व-गायक महेंद्र कपूर ने इस संसार को अलविदा कह दिया । महेंद्र कपूर एक विविध रंगी गायक थे । ये अलग बात है कि उनके करियर के दूसरे हिस्‍से में उन्‍हें केवल देशभक्ति गीतों का गायक मान लिया गया था । अगर आप सिने-संगीत के क़द्रदान हैं और ध्‍यान से संगीत सागर में डुबकी लगाते आए हैं तो आपको भली-भांति पता होगा कि महेंद्र कपूर केवल देशभक्ति गीतों का स्‍वर नहीं थे । उनके कुछ फुसफसाते बेहद धीमे स्‍वर वाले गीत बड़े ही अनमोल रहे हैं । आप आये तो ख्‍याले दिले नाशाद आया, दिल के भूले हुए ज़ख्‍मों का पता याद आया । जैसा गाना इसी की मिसाल है ।

महेंद्र कपूर ने सन 57 में मुंबई में मेट्रो मरफी प्रतियोगिता में हिस्‍सा क्‍या लिया, वो इस प्रतियोगिता के निर्णायकों की नज़र में 'चढ़' गए । प्रतियोगिता में ये पहले से तय था कि विजेता गायक गायिका को निर्णायक अपनी फिल्‍मों में गायन का मौक़ा देंगे । निर्णायकों के नाम तो देखिए--नौशाद, वसंत देसाई, सी रामचंद्र और रवि । नौशाद ने महेंद्र कपूर से सोहनी महिवाल में गवाया । तो अण्‍णा यानी सी. रामचंद्र ने गवाया नवरंग में । 

                       Lp-Navrang

'नवरंग' पेशकश थी राजकमल कला मंदिर की । इस फिल्‍म का संगीत भी इसकी अनगिनत खासियतों में से एक था । नवरंग का संगीत हमें दिखाता है कि कलात्‍मकता किसे कहते हैं । गीतों का लालित्‍य क्‍या होता है । शुद्ध हिंदी शब्‍दों से रस-भीनी कविता को जब स्‍वर दिया जाता है तो उसका प्रभाव कितना दूरगामी और कितना सुरीला होता है । यही कारण है कि आज श्रोता बिरादरी महेंद्र कपूर को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आपके लिए प्रस्‍तुत कर रही है ये गीत । जिसे भरत व्‍यास ने लिखा । सी रामचंद्र की धुन और आवाज महेंद्र कपूर की  । इसके बोले सुनिए और गायकी पर ध्‍यान दीजिये ।

खासतौर पर वाद्य संयोजन देखिए । आपको बाकायदा पश्चिमी जैज़ वाद्य सुनाई देंगे ठेठ ग्रामीण वाद्यों के साथ । रविवार की इस सुबह इस गाने को धीरे धीरे अपने भीतर उतरने दीजिये और फिर हमें बताईये आप पर इसका क्‍या असर हुआ ।

 

श्‍यामल श्‍यामल बरन कोमल कोमल चरण
तेरे मुखड़े पे चंदा गगन का जड़ा
बड़े मन से विधाता ने तुझको गढ़ा ।।

तेरे बालों में सिमटी सावन की घटा
तेरे गालों में छिटकी पूनम की छटा,
तीखे तीखे नयन मीठे मीठे बयन
तेरे अंगों पे चंपा का रंग चढ़ा
बड़े मन से विधाता ने तुझको गढ़ा ।।

ये उमर ये कमर सौ सौ बल खा रही
तेरी तिरछी नजर तीर बरसा रही
नाजुक नाजुक बदन धीमे धीमे चलन
तेरी बांकी लचक में है जादू बड़ा
बड़े मन से विधाता ने तुझको गढ़ा ।।

किस पारस से सोना ये टकरा गया
तुझे रचके चितेरा भी चकरा गया
ना इधर जा सका, ना उधर जा सका,
देखता रह गया वो खड़ा ही खड़ा
बड़े मन से विधाता ने तुझको गढ़ा ।।

 
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